२ जून के अंतिम सत्र में श्री. रमेश शिंदे द्वारा किया गया मार्गदर्शन
भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र होते हुए भी वर्तमान में भारत में स्वयं का (हिन्दुआें का) कोई भी तंत्र नहीं है । न्यायतंत्र, शिक्षातंत्र, अर्थव्यवस्था, राज्य करने की व्यवस्था इनमें से कोई भी हमारा नहीं है, तो यह भारत ‘स्व’तंत्र कैसा ? भारत को वास्तविक दृष्टि से स्वतंत्रता प्राप्त होने के लिए ही हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता है, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने किया । अखिल भारतीय अधिवक्ता अधिवेशन के पहले दिन के अंतिम सत्र में ‘हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता’ इस विषय पर वे बोल रहे थे ।
श्री. रमेश शिंदे द्वारा रखे गए अन्य महत्त्वपूर्ण सूत्र . . .
१. भारत में मौर्य, गुप्त, पांडियन, चोल, सातवाहन, पल्लव, कदंब, चालुक्य, राष्ट्रकुट, यादव, विजयनगर, वड्डियार, भोसले इस प्रकार के हिन्दुआें के अनेक पराक्रमी राजवंश तथा साम्राज्य हुए; परंतु हमारा इतिहास आज केवल तुघलक, खिलजी, घोरी, बाबर, अकबर, जहांगीर, औरंगजेब तथा उसके पश्चात ब्रिटीशों तक ही सीमित रहा है ।
२. जिस गणराज्य के विषय में बोला जाता है, उस गणराज्य का उल्लेख ऋग्वेद में ४० बार, तो अथर्ववेद में ९ बार मिलता है ।
३. जिस प्रकार के मनुष्य के जीवन में आत्मा का स्थान है, उसी प्रकार से राष्ट्र के जीवन में धर्म का स्थान महत्त्वपूर्ण माना गया है । इस राष्ट्र को नष्ट करने के लिए, उससे उसके प्राण अर्थात धर्म को नष्ट करने का षड्यंत्र रचा गया । वास्तव में धर्मनिरपेक्षता हिन्दुआें ने नहीं, अपितु शासन ने स्वीकार करनी अपेक्षित थी ।
प्राचीन हिन्दू राष्ट्र विकसित था !
एंगस मेडिसन नामक अर्थविशेषज्ञ द्वारा वर्ष २००१ में प्रकाशित ‘वर्ल्ड इकॉनॉमी : ए मिलेनियल पर्स्पेक्टिव्ह’ इस ग्रंथ में अपने व्यापक अध्ययन के पश्चात ‘वर्ष १ में भारत का जीडीपी विश्व की अपेक्षा ३४ प्रतिशत था तथा वह पहले क्रम का था ।’, इस प्रकार का निरीक्षण अध्ययन के बाद रखा गया है । वर्ष १९४७ के पहले भारत में ५६२ राजा-संस्थान थे; परंतु स्वतंत्रता के समय अंग्रेजों ने उनकी पाश्चात्त्य विचार धारा पर आधारित लोकतंत्र भारत पर थोप दिया तथा प्रधानमंत्रि-मंत्रि बनने के लिए उतावले राजनेताआें ने उसको स्वीकारा ।
कम्युनिस्ट पार्टी, मायावती, ओवैसी जैसे लोग हिन्दू राष्ट्र का विरोध कर रहे हैं । उनका कहना है कि, ‘हम हिन्दू राष्ट्र बनने नहीं देंगे ।’ श्रीकृष्णजन्म से पहले कंस को भी श्रीकृष्ण के जन्म का भय लग रहा था । उसी प्रकार से आज हिन्दूधर्मविरोधियों को भी हिन्दू राष्ट्र का भय लग रहा है । इसे इस अधिवेशन की सफलता ही कहनी चाहिए ।
‘जस्टिसिया’ नहीं, अपितु शनिभगवान ही हिन्दुआें के न्यायदेवता !
न्यायदेवता की मूर्ति के रूप में आंखों पर पट्टी बांधी हुई तथा एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार ली हुई जिस मूर्ति को हम देखते हैं, वह मूर्ति रोमन राज्य के ‘जस्टिसिया’ देवता की मूर्ति है । वह हिन्दुआें की न्यायदेवता नहीं है । शनिभगवान ही हिन्दुआें के न्यायदेवता है । दर्शनशास्त्रों में से ‘न्यायदर्शन’ यह एक दर्शन है । उसमें ४ विद्याआें का अंतर्भाव है । उसमें से आज केवल दंडनीति का अवलंब किया जाता है ।
क्रांतिकारियों को दंडित करने के लिए ‘इंडियन पीनल कोड’ की निर्मिति
अंग्रेजों द्वारा वर्ष १८६० में बनाया गया ‘इंडियन पीनल कोड’ यह कानून, स्वतंत्रता के ७० वर्ष पश्चात भी लागू है । भारतीय क्रांतिकारियों को दंडित करना संभव हो; इसके लिए अंग्रेजों ने यह कानून बनाया । वर्ष १८५७ में जब मंगल पांडे तथा अन्य क्रांतिकारियों ने विद्रोह किया, तब उनको दंडित करना संभव हो; इसके लिए इस कानून को बनाया गया ।
किसी उदात्त उद्देश्य से नहीं, अपितु पोप के आदेश को ठुकराने के लिए इंग्लैंड में धर्मनिरपेक्षता !
इंग्लैंड द्वारा वर्ष १८५१ में धर्मनिरपेक्षता का स्वीकार किया गया; क्योंकि उस समय राजा हेन्री (८वां) को अपनी पत्नी से विवाहविच्छेद (Divorce) करना था और उसके लिए पोप की अनुमति आवश्यक थी । पोप ने इसकी अनुमति नहीं दी । स्वयं राजा होते हुए भी पोप उसके लिए अपेक्षित आदेश नहीं देते देख हेन्री ने अपने राज्य को धर्मनिरपेक्ष (अर्थात चर्च का आदेश न माननेवाला राज्य) घोषित किया । हम आज उसी अंग्रेजों का अंधानुकरण कर रहे हैं ।