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संविधान को ‘धर्मनिरपेक्ष’ बनाना भ्रष्टाचार ही है – अधिवक्ता गोविंद के. भरतन्

सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के अंतर्गत ‘अधिवक्ता अधिवेशन’ का द्वितीय दिवस

अधिवक्ता गोविंद के. भरतन्

रामनाथी (गोवा) : भ्रष्टाचार का अर्थ केवल आर्थिक लेन-देन तक सीमित नहीं है, अपितु संविधान को धर्मनिरपेक्ष बनाना भी भ्रष्टाचार ही है । ‘धर्मनिरपेक्षता’ इस शब्द को संविधान में घुसेडा गया है और वहीं से संविधान तथा अध्यात्म में दूरी उत्पन्न हुई । आज न्यायतंत्र का संबंध भ्रष्टाचार के साथ आने से राष्ट्र तथा समाज गंभीररूप से प्रभावित हो रहे हैं, ऐसा दिखाई देता है । आज न्यायाधीशों की नियुक्ति किसप्रकार होती है ?, इसकी प्रक्रिया में सुस्पष्टता नहीं है । इस प्रक्रिया में गुणवत्ता तथा राष्ट्रवाद जैसे महत्त्वपूर्ण गुणों की उपेक्षा की जाती है । आज गुणवत्ता के स्थान पर सिफारिश के आधार पर नियुक्तियां की जाने से न्यायतंत्र में भ्रष्टाचार फैलने लगा है । इस स्थिति में यदि परिवर्तन लाना है तो उसके लिए इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति तथा ज्ञानशक्ति की आवश्यकता है । ये तीनों धर्म से ही प्राप्त हो सकती हैं । अतः धर्माभिमानी नागरिक ही ‘आदर्श न्यायतंत्र’ बनाकर, उसे कार्यरत बना सकते हैं । उसके लिए धर्मप्रेमी अधिवक्ताआें को प्रयास करने चाहिए, ऐसा प्रतिपादन केरल के सरकारी अधिवक्ता गोविंद के भरतन् ने किया । वे फोंडा, गोवा के रामनाथी क्षेत्र में स्थित श्री रामनाथी देवस्थान के श्री विद्याधिराज सभागार में आयोजित
७ वें अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के अंतर्गत २ दिवसीय ‘अधिवक्ता अधिवेशन’ के समापन के दिन अर्थात ३ जून को बोल रहे थे । उन्होंने ‘न्यायतंत्र में चल रहे भ्रष्टाचार के विरुद्ध करने योग्य आवश्यक कृत्य’ विषय पर उपर्युक्त मार्गदर्शन किया । इस अवसर पर अधिवक्ता पंडित शेष नारायण पांडे, ‘हिन्दू फ्रन्ट फॉर जस्टिस’ के अधिवक्ता हरि शंकर जैन, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता नीलेश सांगोलकर आदि मान्यवर उपस्थित थे । इस अधिवेशन में सामाजिक दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध सूचना अधिकार का उपयोग करने की दृष्टि से अधिवक्ताआें का संगठन, राष्ट्र एवं धर्म पर हो रहे आघातों को रोकते समय अधिवक्ताआें को प्राप्त अनुभव जैसे विविध विषयों पर चर्चा की गई ।

आदर्श न्यायव्यवस्था के लिए अधिवक्ताआें ने प्रयास करना आवश्यक ! – अधिवक्ता नीलेश सांगोलकर

आज का न्यायतंत्र ब्रिटीश पद्धति से चलता है । उसमें न्याय मिलने के लिए लगनेवाला विलंब अन्यायकारी है । अतः इस त्रुटि को दूर करने के लिए अधिवक्ताआें को प्रयास करने चाहिए । न्यायतंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाज के सामने उजागर कर जनता के द्वारा आदर्श व्यवस्था बनाने का दायित्व हम पर है । आज के दिन उपलब्ध कानून का उपयोग कर अन्यायपीडितों को न्याय दिलाने तथा निरपराधों के विरुद्ध झूठे आरोप प्रविष्ट करनेवाले पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही के लिए हमें प्रयास करने चाहिएं ।

देश की संपत्ति पर पहला अधिकार हिन्दुआें का है ! – अधिवक्ता हरि शंकर जैन

स्वतंत्रता के पश्‍चात राज्यकर्ताआें ने अनेक बार संविधान के साथ छेडछाड की है । कुछ निधर्मी राज्यकर्ताआें ने देश की संपत्ति पर मुसलमानों का पहला अधिकार होने की बात कही थी; परंतु यह देश देवताआें का, हिन्दू धर्म का तथा यहां के मूलनिवासी हिन्दुआें का है । अतः यह भूमि तथा साधनसंपत्ति पहले हिन्दुआें की है; इसलिए उस पर अल्पसंख्यकों का अधिकार नहीं बनता । अधिवेशन के समापन के अवसर पर सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में अधिवक्ताआें का योगदान, साथ ही आनेवाले समय में संगठित रूप से करनेयोग्य प्रयास’ आदि के विषय में मार्गदर्शन किया ।

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