सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के अंतर्गत ‘अधिवक्ता अधिवेशन’ का द्वितीय दिवस
रामनाथी (गोवा) : हिन्दूजागृति के लिए कार्य करना और धर्मरक्षा करना, हिन्दुआें का कर्तव्य है । वह अधिकार भी है; परंतु लालसा के कारण कहें, राजनीति के कारण कहें अथवा अन्य कुछ कारणों से हिन्दू समाज इस कर्तव्य से पीछे हटा है । हिन्दुआें के पास शस्त्र, शास्त्र होते हुए भी हिन्दुआें को भीरू (डरपोक) बनाया गया है । हिन्दुआें के मन में अभी भी मुसलमानों के वर्चस्व की भावना है । वह अब उखाड फेंकनी चाहिए । अतिसहनशीलता अब बस । मैं कट्टर हिन्दू हूं । धर्मरक्षा के कार्य के लिए निकला हूं । व्यवसाय वगैरे बाद में.. पहले मैं हिन्दू हूं । भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं, धर्मराष्ट्र है और जो कोई इसका विरोध करेगा, उसे हम दंड देंगे, ऐसा अब अभिमान से कहना होगा, ऐसा क्षात्रवृत्तीपूर्ण आवाहन अधिवक्ता हरि शंकर जैन जी ने किया । ‘सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन’ के अंतर्गत आयोजित, ‘अधिवक्ता अधिवेशन’ के दूसरे दिन ‘वर्तमान न्यायतंत्र की त्रुटियां एवं उनका निराकरण’ इस विषय पर आयोजित उद्बोधन सत्र में वे बोल रहे थे । इस समय अधिवक्ता पंडित शेष नारायण पांडे, केरल के सरकारी अधिवक्ता गोविंद के भरतन्, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता नीलेश सांगोलकर आदि मान्यवर उपस्थित थे ।