संत, ऋषि, वेद, पुराण तथा भगवान शिवजी के संकल्प से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना निश्चित होगी । आज कालानुसार हमारी संस्कृति परिवर्तित हो रही है, तब भी उसमें वैदिक तत्त्व है; और वेदों में क्षात्रतेज भी है । आज अन्य पंथीय उनके धर्म पर आस्था रखते हैं; परंतु हिन्दू स्वधर्म पालन नहीं करते । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए हिन्दुआें से चिंतन और आत्ममंथन होकर उनमें बौद्धिक सुस्पष्टता आनी चाहिए । इसके लिए धर्म की अवधारणा स्पष्ट होना आवश्यक है । आज देश के हिन्दू कूपमंडूक बन गए हैं । दूसरी ओर महिलाआें पर अत्याचार हो रहे हैं । वर्तमान में चारों दिशाआें में आग लगी है । महिलाआें को झांसी की रानी की भांति सक्रिय होकर आगे आना चाहिए । देश में भीतर और बाहर से आक्रमण हो रहे हैं । अपने साथ समाज का क्षात्रतेज भी अध्यात्म द्वारा जागृत होना चाहिए । इसके लिए हिन्दुआें को कर्तापन त्यागकर अधर्म के विरुद्ध कार्य करना चाहिए । हमें महिलाआें के साथ आगे आकर दोषों का निवारण करते हुए एकत्र कार्य करना चाहिए । इस प्रकार स्वयं में अग्नि जागृत कर कार्य करने से अंधःकार नष्ट हो सकता है । हिन्दुआें के ब्राह्मतेज के साथ क्षात्रतेज जागृत करने से भारत सहित पूरे विश्व में सर्वत्र ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना होगी, ऐसा ओजस्वी मार्गदर्शन श्री लालेश्वर महादेव मंदिर, बिकानेर (राजस्थान) के महंत स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज ने उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को किया । वे रामनाथी, गोवा के श्री रामनाथ देवस्थान के श्री विद्याधिराज सभागृह में आयोजित सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए क्षात्रतेज की उपासना की आवश्यकता’ इस विषय पर बोल रहे थे ।
स्वामी संवित सोमगिरीजी महाराजजी ने कहा,
१. ईश्वर का अस्तित्व भूलाने के कारण ही आज अपनी स्थिति दयनीय है ।
२. सज्जनों को यदि एकत्र करना है, तो वैचारिक सुस्पष्टता होनी चाहिए । यह वैचारिक सुस्पष्टता वेद-पुराण-स्मृति के अध्ययन तथा उसके अनुकरण से ही आएगी ।
३. आज सर्व जगत में हिन्दू संस्कृति की मांग है । संपूर्ण जगत आयुर्वेद की ओर मुड रहा है और हम हैं कि अपनी इस संस्कृति की उपेक्षा कर रहे हैं । इसकारण ही आज भारत की दयनीय अवस्था हो गई है ।
४. हिन्दुत्व का कार्य करनेवाले कुछ संगठन कार्य करते समय भटक गए हैं । उसके कारण ढूंढने पडेंगे और उन्हें टालकर आगे जाना होगा ।
५. भारत की मूल भाषा संस्कृत है । जगत की सर्व भाषाआें की जननी भी संस्कृत है, यह हमें सदैव ध्यान में रखना चाहिए ।
६. कहते हैं ‘विज्ञान ने प्रगति की है ।’ ‘बिग बँग’ने सृष्टि की उत्पत्ति के मूल तक जाने का प्रयत्न किया; परंतु वही विज्ञान आज ‘उसके आगे क्या’, ऐसा प्रश्न अध्यात्म से कर रहा है । इससे विज्ञान की मर्यादा ध्यान में आती है ।
सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति के साथ मैं इसके आगे भी सदैव कार्य करूंगा ! – स्वामी संवित सोमगिरीजी महाराज
हिन्दू राष्ट्र स्थापना के पवित्र कार्य हाथ में लेने के संबंध में मैं सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति को धन्यवाद देता हूं । यह कार्य मौलिक होने से आपके साथ मैं इसके आगे भी सदैव कार्य करूंगा !
क्षणिकाएं
१. स्वामी संवित सोमगिरीजी महाराज द्वारा प्रारंभ में कुछ श्लोकों का उच्चार करने पर संपूर्ण सभागृह में नवचैतन्य फैल गया । वातावरण में उत्साह बढ गया और सभागृह में शांत तरंगें प्रक्षेपित हो गईं हैं, ऐसा प्रतीत हुआ ।
२. स्वामी संवित सोमगिरीजी महाराजजी द्वारा मार्गदर्शन प्रारंभ करने के पूर्व उन्होंने अत्यंत भावपूर्ण रीति से कहा, ‘आज हिमालय, सप्तनदियां, सप्ततीर्थ यहां उपस्थित हैं और यहां की चेतना और उत्साह को मैं प्रणाम करता हूं ।’