१. हिन्दू समाज की संकटकालीन सहायता
आगामी काल में आनेवाली आपदाओं के कारण मनुष्यजीवन अस्थिर एवं संकटों से घिरा हुआ रहेगा । ऐसे समय में रुग्णों की सहायता करने के साथ ही उन्हें मानसिक आधार देने की भी बडी आवश्यकता होगी ! आज की स्थिति में भी किसी दंगे में अथवा बाढ, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा में हुई हानि से व्यक्ति का मनोबल टूट जाता है । भविष्य में हमें बडी मात्रा में जनहानि भी देखने को मिलेगी, उस समय उनकी क्या स्थिति होगी ? इसलिए इस स्थिति में हिन्दू समाज की सहायता के लिए चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों का संगठन, वर्तमान की आवश्यकता है !
२. चिकित्सा क्षेत्र की दुष्प्रवृत्तियों के निर्मूलन हेतु संगठित संग्राम
२ अ. चिकित्सा क्षेत्र की दुष्प्रवृत्तियों के उदाहरण : डॉक्टर एवं चिकित्सालयद्वारा रुग्णों से अतिरिक्त शुल्क लेना, महंगी औषधियां, वह भी निर्धारित औषधालयोंसे ही लेने को बाध्य करना, अकारण खर्चिली चिकित्सा जांच करवाना आदि अनुभव अनेक लोगों को बार-बार आते हैं ! कभी-कभी रुग्णों को ठगने के लिए शल्यकर्म की (‘ऑपरेशन’ की) आवश्यकता न होने पर भी उसे कराने के लिए बताया अथवा डराया जाता है, विशेषतः बच्चे के जन्म के समय नैसर्गिक प्रसूति होनेवाली है, फिर भी शल्यकर्म करने के लिए बताया जाता है ! आजकल तो किसी रुग्ण की मृत्यु के उपरांत भी वह जीवित है, ऐसा बताकर, उसे अतिदक्षता विभाग में रखकर ‘बिल’ बढाया जाता है ! कभी-कभी तो बताया हुआ पूर्ण शुल्क, रुग्ण के परिजन तत्काल न भर सकते हों, तो चिकित्सालय रुग्ण को भरती करने से भी मना कर देते हैं ! थोडी सी मानवता दिखाकर, उस पर प्राथमिक उपचार करना तो दूर ही रहा ! ऐसे प्रकरण में रुग्ण चिकित्सालय के बाहर ही तडप-तडप कर मर जाने के समाचार पढने मिलते हैं !
संक्षेप में चिकित्सा क्षेत्र से सेवाभाव घट गया है और उसमें व्यावसायिकता घुस गई है । इसलिए लोगों के मन में इस क्षेत्र के प्रति आदरभाव घट गया है और संतप्त भावनाएं बढने लगी हैं !
२ आ. डॉक्टर एवं रुग्ण के बीच की दूरी कम करना आवश्यक ! : रुग्ण को जीवदान देने के कार्य के कारण, आज भी हमारे समाज में डॉक्टरों को देवता के समान माना जाता है; परंतु आजकल स्वार्थी प्रवृत्ति ने चिकित्सा क्षेत्र में भी प्रवेश किया है, इस कारण डॉक्टरों की अपकीर्ती हो रही है और संपूर्ण चिकित्सा क्षेत्र की विश्वसनीयता संकट में पड गई है ! इसीके परिणाम स्वरूप आजकल छोटी-छोटी शिकायतों पर, उपचार में लापरवाही के आरोप लगाकर रुग्णों के संबंधितोंद्वारा डॉक्टरों से मार-पीट की घटनाएं बढती जा रही हैं । चिकित्सा क्षेत्र का अन्याय दूर कर, डॉक्टर एवं रुग्ण के बीच की यह दूरी कम कर, पुनः उनमें घनिष्ठता बढाने के लिए किसी को तो आगे आना होगा !
३. ‘आरोग्य सहायता समिति’ की स्थापना
हिन्दुओं की संकटकालीन सहायता हो अथवा चिकित्सा क्षेत्र की दुष्प्रवृत्तियों को दूर कर, डॉक्टर एवं रुग्ण के बीच की दूरी कम करना हो, इन दोनों दृष्टिकोण से समाज के सज्जन एवं समाजसेवी डॉक्टरों को संगठित कर, उनकी इस कार्य में सहायता करने की दृष्टि से भी डॉक्टरों के एक संगठन के रूप में हिन्दू जनजागृति समिति आज से ‘आरोग्य सहायता समिति’ के नाम से कार्य आरंभ कर रही है ! यह एक अशासकीय स्वयंसेवी संस्था होगी !
‘संवैधानिक मार्ग से शासकीय एवं निजी चिकित्सालयों की दुष्प्रवृत्तियों के विरोध में किस प्रकार सामना करें ?’ इस संदर्भ में समविचारी डॉक्टर एवं परिचारकों का यह संगठन नियमित रूप से मागदर्शन करेगा !