यूरोप में कोई भी देश धर्मनिरपेक्ष नहीं है । प्रत्येक देश का एक स्वतंत्र धर्म है । यूरोप में धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र नहीं है, चर्च अधीन शासकों का राज्य है । वहां की न्यायव्यवस्था, शिक्षाव्यवस्था पर भी चर्च व्यवस्था का प्रभाव है । केवल भारत ही ऐसा देश है, जो धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) लोकतंत्र है । भारत में लोकतंत्र है, यहां कोई भी स्वतंत्र शासक नहीं है । राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केवल अंग्रेजों द्वारा बनाई व्यवस्था के प्रतिनिधि हैं । लोकतंत्र को जनता का राज्य भले ही कहा जाता है, तब भी भारत के लोकतंत्र में लोगों को केवल मतदान करने का अधिकार है, राज्य करने का नहीं । संविधान के हिंदी के अधिकृत कागदपत्रों में ‘सेक्यूलर’ का अर्थ ‘धर्मनिरपेक्ष’ नहीं ‘पंथनिरपेक्ष’ है । इसलिए पंथनिरपेक्षता हटाकर, धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी होगी । इस स्थापना के उद्देश्य से धर्मनिष्ठ हिन्दुआें को संगठित कर, भ्रष्ट एवं अत्याचारियों को दंड देने की आवश्यकता है, ऐसा प्रतिपादन प्रा. रामेश्वर मिश्र ने किया ।
अधिवेशन के प्रथम दिन ‘संप्रदाय एवं हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों का शासन द्वारा किया जा रहा दमन’, ‘ज्ञाती संस्था एवं संप्रदाय के माध्यम से धर्म एवं संस्कृति की रक्षा’ आदि विषयों पर उपस्थित मान्यवरों ने हिन्दुत्वनिष्ठों का उद्बोधन किया । अधिवेशन के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना की आवश्यकता’ इस विषय पर भोपाल (मध्यप्रदेश) की धर्मपाल शोध पीठ के प्रा. रामेश्वर मिश्र, ओडिशा के भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय सचिव श्री. अनिल धीर, कोलकाता की शास्त्र धर्म प्रचार सभा के डॉ. शिवनारायण सेन, पुणे स्थित ‘यूथ फॉर पनून कश्मीर’ के राष्ट्रीय संयोजक श्री. राहुल कौल, वाराणसी (उत्तरप्रदेश) के हिन्दू विद्या केंद्र की पूर्व निदेशक प्रा. कुसुमलता केडिया सहित अन्य मान्यवर उपस्थित थे । इस अधिवेशन में देश-विदेश के १५० से अधिक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के ३५० से अधिक हिन्दुत्वनिष्ठ उपस्थित थे । कार्यक्रम का सूत्रसंचालन समिति के श्री. सुमीत सागवेकर ने किया ।