‘नेपाल का वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य और हिन्दू राष्ट्र आंदोलन की आगामी दिशा’ इस विषय पर आयोजित एक पत्रकार परिषद
हिन्दू राष्ट्र नेपाल धर्मनिरपेक्ष होने के लिए यूरोपीय यूनियन और कांग्रेस शासन उत्तरदायी ! – डॉ. माधव भट्टराई, अध्यक्ष, राष्ट्रीय धर्मसभा नेपाल, काठमांडु
रामनाथी (गोवा) :‘भारत में जिस प्रकार मुसलमान आक्रमणकारियों के विरुद्ध युद्ध कर छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य स्थापित किया, उस प्रकार नेपाल के महाराजा पृथ्वीनारायण शाह ने ३०० वर्ष पूर्व नेपाल को एकत्रित किया । जिस समय ब्रिटिश भारत में हुडदंग मचा रहे थे, उस समय महाराजा पृथ्वीनारायण ने ब्रिटिशों को नेपाल की भूमि पर कदम भी नहीं रखने दिया । इसलिए नेपाल के एक भी हिन्दू का धर्म-परिवर्तन नहीं हो पाया । इसका प्रतिशोध लेने तथा कभी भी गुलाम न बने नेपाल की संस्कृति नष्ट करने के लिए यूरोपीय यूनियन गत कुछ दशकों से प्रयत्नरत है । लोकतंत्र के नाम पर आंदोलन करते हुए यहां का राजतंत्र नष्ट किया गया । नेपाल में रहनेवाले ९५ प्रतिशत लोग आज भी ‘हिन्दू राष्ट्र’ का समर्थन करते हैं । इस संबंध में जनमत लिया जानेवाला था; परंतु यूरोपीय यूनियन, साम्यवादी और ईसाइयों के षड्यंत्र के कारण यह नहीं हो पाया तथा नेपाल के संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द घुसेड दिया गया । परिणामस्वरूप संसार में विद्यमान एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नष्ट हो गया । भारत के तत्कालीन कांग्रेस शासन का भी इसके पीछे षड्यंत्र था ।’ यह जानकारी काठमांडू (नेपाल) की ‘राष्ट्रीय धर्मसभा नेपाल’ के अध्यक्ष डॉ. माधव भट्टराईजी ने दी । वे रामनाथी, गोवा में चल रहे सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के निमित्त ‘नेपाल का वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य और हिन्दू राष्ट्र आंदोलन की आगामी दिशा’ इस विषय पर आयोजित एक पत्रकार परिषद में बोल रहे थे । इस अवसर पर नेपाल सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता पवित्र खडका, नेपाल में कार्य करनेवाले और मुंबई के ब्रह्मांडीय उपचारी संघ के संचालक श्री. राजेंद्र अलख, हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे आदि मान्यवर भी उपस्थित थे ।
डॉ. भट्टराई आगे बोले, ‘‘नेपाल को पुनः हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के लिए हम समवैचारिक संगठनों का संगठन कर रहे हैं । इसके साथ ही राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर सभा, पंडित सम्मेलन, परिषदें आदि के माध्यम से हिन्दुआें में जनजागरण किया जा रहा है । इस पृष्ठभूमि पर हमें भारत के हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों से नैतिक सहयोग की अपेक्षा है ।’’
श्रीलंका के हिन्दुआें की परम्परागत भूमि में अन्य धर्मियों का अतिक्रमण !
अधिवेशन में प्रत्येक वर्ष उपस्थित रहनेवाले श्रीलंका के ज्येष्ठ हिन्दुत्वनिष्ठ मरवनपुलावू सच्चिदानंदन् इस बार उपस्थित नहीं रह पाए । उन्होंने अपने प्रतिनिधि अधिवेशन में भेजे । सच्चिदानंदन्जी ने श्रीलंका के तमिल हिन्दुआें की दुर्दशा विशद करते हुए कहा कि, ‘‘श्रीलंका की परम्परागत हिन्दू प्रदेश होनेवाली भूमि गत २५ से ३० वर्षों में मुसलमानों ने हडप ली है । इसके लिए उन्हें आखाती देशों से निधि मिल रहा है ।
आमपराई और त्रिंकोमाली ये हिन्दुबहुल जिले अब मुसलमानबहुल हो गए हैं । दूसरी ओर पश्चिमी चर्च समर्थित हजारों ईसाई मिशनरी संस्था स्थानीय हिन्दुआें का बडी मात्रा में धर्म-परिवर्तन कर रही हैं । भारत शासन से हमारी मांग है कि, वे श्रीलंका शासन पर दबाव बनाकर मुसलमान और ईसाई मिशनरियों को विदेश से मिलनेवाली संपूर्ण निधि पर निर्बंध लगाने के लिए विवश करें । उसी प्रकार श्रीलंका के यादवी युद्ध में जिन हिन्दू मंदिरों का विध्वंस हुआ है, उनका जीर्णोद्धार करने के लिए भारत से तज्ञ मूर्तिकार और शिल्पकार भेजें अन्यथा इन मंदिरों के स्थानों पर चर्च, मशिदी और बौद्ध विहार बनाए जाएंगे ।’’
इस समय सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी बोलें, ‘‘भारत में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर चल रहा अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण और हिन्दुआें पर हो रहे अन्याय पर ध्यान देते हुए मोदी सरकार नेपाल का निधर्मी संविधान निरस्त करने के लिए प्रयास करें । नेपाल को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करने सम्बन्धी नेपाली जनता की मांग को सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन का सम्पूर्ण समर्थन है । नेपाल में प्रलोभन दिखाकर अथवा बलपूर्वक किए जा रहे नेपाली हिन्दुआें के धर्म-परिवर्तन को रोक लगनी चाहिए । हम श्रीलंका के तमिल हिन्दुआें की व्यथा समझते हैं । उन्हें न्याय दिलाने के लिए भी सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन कटीबद्ध है ।’’