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बलात्कार एवं अत्याचार रोकने हेतु स्व-रक्षा प्रशिक्षण चाहिए !


 

        देहलीमें एक युवतीपर सामूहिक बलात्कार कर उसकी हत्या करनेकी घटनाके पश्चात पूरे देशके युवक-युवतियोंमें बहुत जागृति देखनेमें आई । इस बार बिना किसी नेताके आवाहनके प्रचंड संख्यामें जो युवावर्ग एकत्र हुआ, वह उनके मनोंमें अनेक वर्षोंसे संचित निष्क्रिय शासनके विरोधमें व्यक्त आक्रोश था ! उसमें भी शासनने यह आक्रोश शांत करनेके स्थानपर आंदोलनको कुचलनेका प्रयास किया । इस कारण वह आंदोलन कुछ अधिक ही भडक गया और पूरे देशमें फैल गया । प्रत्यक्षमें इस आंदोलनकी फलनिष्पत्ति देखी जाए, तो सक्षम नेतृत्वके अभावमें न्यून रही । ऐसे समय हमें ही आगे बढकर बलात्कारसमान समस्याको समाप्त करनेके लिए दिशादर्शक कार्य करना आवश्यक है । इसके लिए यह असंतोष शांत होनेसे पूर्व ही निम्नांकित सूत्रानुसार तत्काल कार्यवाही होनी चाहिए ।

 

आंदोलनकी विफलताके लिए कारणीभूत घटक

१. अपराधियोंके मनमें कानूनका भय उत्पन्न करनेका प्रयास न होना

        बलात्कारके विरोधमें देशभर चले आंदोलनमें बलात्कारियोंको फांसी देनेकी मांग उठी । किंतु, प्रत्यक्षमें आजकल हत्याकी घटनाओंमें फांसीकी दंडव्यवस्था होने पर भी ऐसे अपराधोंकी संख्या निरंतर बढती जा रही है । इतना ही नहीं, प्रत्यक्ष देहलीमें जनआंदोलन चलते रहनेपर भी प्रतिदिन न्यूनतम ४ बलात्कारकी घटनाएं होती रहीं । इससे यह ध्यानमें आना चाहिए कि अपराधियोंके मनमें कानूनका भय उत्पन्न किए बिना अपराध रुकनेवाले नहीं हैं । आज अनेक अपराधी दोषपूर्ण कानून, पुलिस जांचकी त्रुटियां, आदि कारणोंसे न्यायालयद्वारा निर्दोष छोड दिए जाते हैं । उसीमें संसदपर आक्रमणका अपराधी तथा अन्य हत्यारे फांसीका दंड प्राप्त कर भी दयाका प्रार्थनापत्र प्रस्तुत कर वर्षोंसे ‘सरकारी बिरियानी’ खाते हुए सुखसे समय व्यतीत कर रहे हैं । राष्ट्रपति दयाके नामपर बलात्कारियोंको फांसीके दंडसे मुक्त कर देते हैं । इससे फांसीका केवल दंड सुना देनेसे भय कैसे उत्पन्न होगा ? अत: यह स्थिति परिवर्तित करनी ही होगी ।

 

२. उन स्थानोंपर प्रभावी जनांदोलनका अभाव

        देहलीके आंदोलनको प्रसार माध्यमोंद्वारा प्रसिद्धि देनेके कारण यह आंदोलन पूरे देशमें फैला । उसके पश्चात भी देशभरमें अनेक स्थानोंपर बलात्कारकी घटनाएं प्रकाशमें आती रहीं । किंतु, उन स्थानोंपर प्रभावी आंदोलन नहीं हुए । इस कारण शासनको बलात्कारपर प्रभावी उपाय करनेके लिए विवश नहीं किया जा सका । (शासनने भी केवल देहलीकी घटनाकी ओर लोगोंका ध्यान केंद्रित रखकर आंदोलनका प्रभाव अल्प करनेका अवसर साधा । शासनद्वारा अन्य स्थानोंपर हुए बलात्कारके समाचारोंको अधिक महत्त्व न देकर, देहलीमें बलात्कार रोकनेके लिए तत्काल ‘जलद गति न्यायालय (फास्ट ट्रैक कोर्ट)' स्थापित करना, देहलीके प्रत्येक पुलिस थानेमें १२ महिला आरक्षकोंकी नियुक्ति करना, ऐसे उपायोंद्वारा बलात्कार रोकनेके लिए बहुत संवेदनशीलता दिखाकर इस आंदोलनको राष्ट्रव्यापी नहीं होने दिया गया । वस्तुतः, इन उपायोंसे यदि देहलीमें बलात्कार रोका जा सकता है, तो इन्हें संपूर्ण देशमें क्यों नहीं लागू किया जाता, ऐसा प्रश्न करना अपेक्षित था ।)

 

३. उलटे-सीधे वक्तव्योंको ही प्रसिद्धि देकर भ्रम उत्पन्न करना

        आंदोलनकारियोंको शासनके राजनीतिक खेलका पर्याप्त अनुभव नहीं था । इस कारण शासनने कुछ प्रसार माध्यमोंसे हाथ मिलाकर बलात्कारकी घटनापर उपाय करनेकी अपेक्षा विविध नेताओंके विवादास्पद, भडकाऊ बयानोंको अनावश्यकरूपसे दिखाया । इससे जनताने भी उन बयानोंपर रोषपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की । परिणास्वरूप इस प्रकरणमें फंसी शासनकी गरदन अपनेआप छूट गई । ऐसे समय ‘नेताओंके बयानोंपर ध्यान देनेकी अपेक्षा उपायोंपर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए’, यह बात दृढतासे चर्चासत्रोंमें रखी जानी चाहिए ।

 

४. बलात्कारके कारणोंको ढूंढनेका प्रयास नहीं

        बलात्कारकी घटनाएं हो रही हैं और इसकी संख्या दिन-प्रति-दिन बढ रही है । किंतु, इसे रोकनेकी मांग करते समय उसके कारणोंको ज्ञात कर उसे समूल नष्ट करना सर्वाधिक आवश्यक है । रावणका वध करते समय प्रभु श्रीरामने उसके प्राणका स्थान ज्ञात कर उसपर बाण छोडा था; तब रावण मरा, यह बात ध्यानमें रखनी चाहिए ।

४ अ. कामवासना बढानेवाले तथा आपराधिक वृत्तिको उत्तेजित

करनेवाले कार्यक्रमोंपर  प्रतिबंध लगानेके लिए किसीका आगे न आना

        धर्मशास्त्रानुसार यदि किसीको सतत एक ही दृश्य दिखाया जाए, तो उसके मनपर उस दृश्यका संस्कार होनेसे उसीके विचार प्रबल होते हैं । एक सर्वेक्षणसे ज्ञात हुआ है कि दूरचित्र प्रणालोंपर (टीवी चैनलपर) धारावाहिक, विज्ञापन, चलचित्र देखनेवालोंको वर्षमें  ७०० से अधिक बलात्कार, चुंबन एवं कामवासना उत्तेजित करनेवाले कामुक दृश्य देखने पडते हैं । हाल ही में घटित कुछ हत्याओं एवं अपहरणकी घटनाओंमें संलग्न कुछ अवयस्क लडकोंने बताया कि उन्हें ये सब करनेका विचार और युक्ति दूरचित्रप्रणालपर ‘क्राइम डायरी’ देखकर सूझा था । इसका अर्थ यह हुआ कि दर्शकोंपर कामुक दृश्योंका प्रभाव निश्चित पडेगा । किंतु, इस कारण कामुकतापर प्रतिबंध लगानेकी मांग करनेवाला एक भी आंदोलन नहीं हुआ तथा एक भी समाचारप्रणालने अथवा समाचारपत्रने इसे बंद करनेकी मांग नहीं की । (ऐसे चित्र ही तो उनकी अर्थपूर्तिके साधन होते हैं ।) इसके विपरीत, कुछ अभिनेताओंने तो तत्काल यह कह कर कामुकताका समर्थन ही किया कि कामुक दृश्योंसे बलात्कारकी घटनाएं नहीं होतीं । आस्तीनके ऐसे सांपोंके जीवित रहने तक उनकी उत्पत्ति होती ही रहेगी !

४ आ. स्वतंत्रताके नामपर शरीर-प्रदर्शनकी मर्यादाका उल्लंघन होना

        आज स्वतंत्रता एवं मर्यादाका रूपांतर स्वैराचार एवं उच्छृंखलतामें हो गया है । ‘विद्यालयके पोशाक(स्कूल यूनीफॉर्म), लडकियोंके कपडे छोटे न हों’, ऐसा कहनेवालोंको कोसनेके लिए, दिल्लीकी इस घटनापर घडियाली आंसू बहानेके लिए आधुनिकतावादियोंमें होड-सी लग गई । अर्थात, ‘स्वैराचार तो हो, किंतु बलात्कार नहीं’, ऐसी कुछ विचित्र मांग ये लोग कर रहे हैं । मूलतः तंग-छोटे कपडे पहनने और आधुनिकतामें परस्पर संबंध है क्या ? इसका कोई उत्तर नहीं देता ।

४ इ. लडकियोंकी छेडछाड करनेवालोंपर कठोर  कार्यवाही न होना

        बलात्कार, अत्याचारके कृत्य करनेसे पूर्व गुंडोंका कार्य प्रारंभ होता है – विद्यालयों एवं महाविद्यालयोंके बाहर लडकियोंकी छेडछाडकी घटनाओंसे ! वहां लडकियोंको छेडनेपर कोई विरोध नहीं करता, यह ध्यानमें आनेपर उनका दुस्साहस बढता है । ऐसे समय यदि वहींपर उडनदल नियुक्त कर उन लडकोंपर कठोर कार्यवाही कर दी जाए, तो उनमें पुनः ऐसा कृत्य करनेका दुस्साहस नहीं होगा ।

          यहां दिए गए सर्व कारणोंको पढनेपर हम इस  निष्कर्षपर पहुंचते हैं कि वर्तमानमें कानूनका भय नहीं है; पुलिस सबको सुरक्षा नहीं दे सकती तथा हिंदू राष्ट्रकी स्थापना होनेसे पहले समाजका नैतिक एवं वैचारिक पतन रोकना असंभव है । अतः, हमारे समान सर्वसाधारण जनोंके पास एक ही विकल्प शेष रह जाता है –  अपनी रक्षा करनेमें आत्मनिर्भर होना । स्वरक्षा प्रशिक्षणवर्ग आरंभ करनेकी दृष्टिसे अभियान आरंभ किया जा सकता है । इसके लिए निम्न प्रकारसे कार्य किए जा सकते हैं –

१. पत्रक तथा भीतपत्रक बनाकर उनका उपयोग करना ।

२. फेसबुक, इ-मेल जैसे आधुनिक प्रसार माध्यमोंके द्वारा प्रशिक्षणवर्गका व्यापक स्तरपर प्रचार करना ।

३. साधक एवं कार्यकर्ताओंके बच्चोंके मित्रोंको एकसाथ बुलाकर १० से १२ जनोंका गुट बनाना तथा उनकी बैठके  लेकर उन्हें अपना उद्देश्य समझाना एवं प्रशिक्षणके लिए तत्पर करना ।

४. विद्यालय, निजी अनुशिक्षण केंद्रोंके बाहर पत्रक बांटना तथा वहां अनुमति लेकर विषय समझाना और प्रशिक्षणके इच्छुक युवक-युवतियोंके नाम तथा भ्रमणभाष क्रमांक लिख लेना ।

५. जहां लडके संगठित हो सकते हैं; किंतु उन्हें प्रशिक्षण देनेके लिए हमारे पास प्रशिक्षक नहीं हैं, तो वहां स्थानीय कराटे प्रशिक्षकोंको धर्मका महत्त्व समझाकर प्रशिक्षण देनेके लिए कुछ समय देनेकी विनती करना।

६. आत्मरक्षाके ५ – ६ प्रकार अच्छे ढंगसे अभ्यास कर हम विद्यालय, महाविद्यालय, अनुशिक्षणवर्ग, मार्गके महत्त्वपूर्ण चौक इत्यादि स्थानोंपर प्रस्तुत कर सकते हैं ।

७. उपर्युक्त सर्व कार्योंके लिए ‘रणरागिनी’ तथा ‘धर्मशक्तिसेना’के माध्यमसे अभियान चलाने हेतु संबंधित स्थानोंपर अच्छा नेतृत्व करनेमें सक्षम एक युवा साधकका चयन कर उसे दायित्व दिया जाए, तो वह सर्व समस्याओंका अध्ययन कर उनका निराकरण कर सकेगा ।

८. उपर्युक्त विषय अनेक कन्या विद्यालयोंमें प्रवचनके रूपमें प्रस्तुत कर सकते हैं ।

श्रीकृष्णने ही ये सूत्र बताए हैं, अतः उनके प्रति कृतज्ञ हूं ।’ श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिंदू जनजागृति समिति (पौष अमावास्या ११.१.२०१३)

क्या आप सुरक्षित जीवन जी रहे हैं ?…

नहीं ना ?.. ध्यान रखिए, जीवनमें अन्यायका प्रतिकार कब करना पडे कह नहीं सकते । दुर्जनोंसे अपनी रक्षा स्वयं ही कैसे करें ?, यह सीखनेके लिए अवश्य पढें…


  • कराटे प्रशिक्षण
  • लाठी प्रशिक्षण
  • प्रगत स्वरक्षा प्रशिक्षण
  • छेडछाड करनेवालेका प्रतिकार करनेकी विविध पद्धतियां

इस विषयमें सचित्र मार्गदर्शन करनेवाला सनातनका ग्रंथ 

स्त्रोत – हिंदी मासिक सनातन प्रभात

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