जर्मनी में जब शरणार्थियों को लेकर गर्मागर्म बहस छिडी है, तब १४ साल की एक लडकी की हत्या ने आग में घी डालने का काम किया है । हत्या से पहले सुजाना का बलात्कार भी किया गया । इस लडकी की हत्या का शक एक इराकी युवक अली बशर पर है जो शरण पाने के लिए जर्मनी आया था । परंतु जब उसने अपने आसपास शिकंजा कसते देखा तो वह रातों रात वापस इराक भाग गया । अब इराक के कुर्दिस्तान इलाके में उसे हिरासत में ले लिया गया है !
१४ साल की बच्ची के साथ हुए इस घिनौने अपराध के बाद लोगों का गुस्सा उफान पर है ! शरणार्थियों का खुले दिल से स्वागत करनेवाली चांसलर अंगेला मैर्केल फिर विरोधियों के निशाने पर हैं ! साथ ही पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों पर भी सवाल उठ रहे हैं । लोगों में खासकर इस बात को लेकर रोष है कि इतनी बडी घटना होने के बावजूद संदिग्ध भागने में कैसे कामयाब हो गया ? उसे एयरपोर्ट पर क्यों नहीं पकडा गया ? जबकि वह अकेला नहीं बल्कि वह आठ सदस्योंवाले अपने पूरे परिवार के साथ था !
सुजाना माइंत्स शहर में रहती थी जो फ्रैंकफर्ट के पास है । वह २२ मई से लापता थी, परंतु पिछले बुधवार को वीसबाडन शहर में ट्रेन की पटरी के पास उसका शव मिला । डीएनए परीक्षण से इस बात की पुष्टि हुई कि शव सुजाना का है । शव उसी रिफ्यूजी सेंटर के पास मिला, जहां संदिग्ध हत्यारा रह रहा था । पोस्टमार्टम की रिपोर्ट कहती है कि पीडिता का बलात्कार किया गया और फिर बर्बरता से उसकी हत्या कर दी गर्इ ! जर्मनी में यह इस तरह का पहला मामला नहीं है । इसी साल मार्च में एक अफगान रिफ्यूजी को एक जर्मन छात्रा के बलात्कार और हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई गई । इससे पहले दिसंबर में एक अफगान रिफ्यूजी ने अपनी पूर्व जर्मन गर्लफ्रेंड की चाकू घोंप कर हत्या कर दी थी !
इस तरह की घटनाओं के बीच शरणार्थियों के प्रति गुस्सा और नफरत की भावना भडक रही है ! खासकर धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी ऐसे मामलों को खूब तूल देती है, जो जर्मनी में तीसरी सबसे बडी पार्टी है । एएफडी जर्मन समाज शरणार्थियों और इस्लाम को लेकर पैदा हुई चिंता और भय का फायदा उठाना अच्छी तरह जानती है ! सुजाना हत्याकांड के बाद एएफडी को चांसलर मैर्केल पर हमला बोलने का नया हथियार मिल गया है ! पार्टी ने चांसलर का इस्तीफा मांगा है और शनिवार को बडे प्रदर्शनों का आयोजन किया है !
पिछले दिनों जर्मनी के ब्रेमेन शहर में शरणार्थियों पर फैसला लेनेवाली एजेंसी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे । कहा जा रहा है कि संभवतः रिश्वत लेकर १२०० लोगों को अनुचित तरीके से शरण दे दी गई ! एएफडी और एफडीपी ने एक संसदीय जांच समिति बनाने की मांग की, ताकि मैर्केल की शरणार्थी नीतियों की समीक्षा हो सके । संसद में यह मांग तो खारिज हो गई है । परंतु जनता के बीच शरणार्थियों को लेकर बढ़ रहे असंतोष को अनदेखा करना चांसलर मैर्केल के लिए आसान नहीं है । इस असंतोष के मैर्केल के खिलाफ असंतोष में बदलने का खतरा है !
२०१५ के शरणार्थी संकट के दौरान चांसलर मैर्केल ने सीरिया और मध्य पूर्व से आनेवाले दस लाख से ज्यादा लोगों को जर्मनी में जगह दी । ऐसा नहीं है कि जर्मनी का शरणार्थियों या इस्लाम से पहली बार सामना हुआ था । बडी संख्या में यहां तुर्क मूल के लोग रह रहे थे । परंतु ८ करोड की जनसंख्या में जब रातों रात १० लाख से ज्यादा लोग जुड जाएं, और वे भी अलग धर्म और अलग संस्कृतिवाले, तो लोगों में संशय और चिंता दिखने लगी है !
बेघर और बेसहारा लोगों को अपने देश में जगह देकर चांसलर मैर्केल ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर जितना नाम कमाया, घरेलू मोर्चे पर वह सियासी तौर पर उतनी ही कमजोर होती गईं ! बतौर चांसलर वह अपनी चौथी पारी खेल रही हैं, परंतु शरणार्थियों से जुडे गंभीर अपराध बार बार लोगों को उनके फैसले पर सवाल उठाने के लिए उकसाते हैं ! विश्लेषक कहते हैं कि मैर्केल अपनी सियासी करियर के अंतिम सालों में हैं ! परंतु लगता है कि अब जितने साल भी वह पद पर रहेंगी, उन्हें शरणार्थियों के मुद्दे पर बैकफुट पर ही रहना होगा !
स्त्रोत : जनसत्ता