अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के अंतर्गत संपन्न हुए हिन्दू राष्ट्र संगठक प्रशिक्षण कार्यशाला के द्वितीय दिन का वृत्तांत
रामनाथी (गोवा) : १० जून को संपन्न हुई हिन्दू राष्ट्र संगठक प्रशिक्षण कार्यशाला में ‘भारत के शौर्य का इतिहास एवं शौर्यजागर की आवश्यकता’ इस विषय पर वाराणसी (उत्तरप्रदेश) की हिन्दू विद्या केंद्र की भूतपूर्व निर्देशिका प्रा. कुसुमलता केडिया संबोधित कर रही थी । अपने मार्गदर्शन में उन्होंने ऐसा क्षात्रतेजयुक्त प्रतिपादन किया कि, ‘हिन्दू समाज एक योद्धा समाज था, है एवं रहेगा ! वर्ष १८७८ में अंग्रेजों ने भारतीय शस्त्रास्त्र अधिनियम पारित कर भारतियों को शस्त्रविहीन किया । शस्त्र रखना, एक अपराध है, यह निश्चित किया गया । इस अधिनियम के पश्चात जिन्होंने अहिंसा का व्रत धारण किया, वे मोहनदास करमचंद गांधी, उन्होंने ऐसा कहा था कि, ‘अंग्रेंजों ने शस्त्रास्त्र अधिनियम पारित करने के कारण में उन्हें कभी भी क्षमा नहीं करूंगा !’
भारत प्राचीन कालावधी से सेनादल से परिपूर्ण था ! उस समय अनेक लोगों ने स्वयं के शौर्य का जागर करते हुए ‘व्हिक्टोरिया क्रॉस’ नामक सम्मानित पदक प्राप्त किया था । इससे यही स्पष्ट होता है कि, भारतीय समाज योद्धा समाज था !
शौर्यजागर करने के लिए वीररस से युक्त गीतों का गायन करें, पाठशालाओं में सैनिकी शिक्षण देना बंधनकारक करने की मांग करें । क्योंकि जब हमें देह पर नहीं, मन में केशरी माला परिधान करने की इच्छा होगी; तब ही हिन्दुओं का विजय सुनिश्चित होगा !’
उन्होंने आगे ऐसा भी कहा कि,
१. हिन्दुओं की देवता अस्त्र-शस्त्र धारण करनेवाली हैं ! अन्य किसी भी पंथ के श्रद्धास्थानों के हाथ में शस्त्रास्त्र नहीं हैं । ईसाईयों का येशु तो क्रूस पर लटका हुआ है !
२. रामायण-महाभारत यह युद्धप्रशंसक महाकाव्य है ! रामायण, रामचरितमानस इन ग्रंथों में तो युद्ध के विवरण को ‘सुंदरकांड’ ऐसा नाम दिया गया है ! हिन्दू धर्म में चारों वर्ण के लोगों ने युद्ध किया है !
३. यहां के ऋषि-मुनि भी अस्त्रधारी थे । रामायण में प्रभु श्रीराम को ऋषि-मुनि ने दिव्य अस्त्र देने का उल्लेख हैं !
४. कुंभपर्व में भी संन्यासी योद्धा नागा साधुओं को शाही स्नान का अधिकार है !
५. प्राचीन कालावधी में २० प्रतिशत पुरुषों की उपजिवीका का साधन शस्त्र ही था ! अर्थात २० प्रतिशत लोग सेना, पुलिस, गुप्तचर विभाग में कार्यरत थे । उस हिसाब से आज ५ से ६ करोड लोग सुरक्षा सेवा में होने चाहिए, किंतु आज उनकी संख्या केवल कुछ लक्ष इतनी ही है !
महिलाओं की शौर्य परंपरा के संदर्भ में प्रा. केडिया ने ऐसे प्रशसोंद्गार व्यक्त किए कि, ‘शौर्य की परंपरा में महिलाओं का स्थान न्यून नहीं है ! सनातन संस्था में तो वृद्ध महिला भी हिन्दू राष्ट्र के लिए गेंहू साफ करने की सेवा करती हैं !’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात