मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वादशी, कलियुग वर्ष ५११६
पणजी – हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा १७ नवम्बरको केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय, इफ्फीके अध्यक्ष एवं गोवा मनोरंजन सोसाइटीके पदाधिकारीसे एक निवेदनद्वारा भारतीयोंकी राष्ट्रीय भावना एवं हिन्दुओंकी धार्मिक भावनाओंको आहत करनेवाला ‘एलिजाबेथ एकादशी’ मराठी चलचित्र इफ्फीमेेंं न दर्शानेकी मांग की गई है । हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा इस सन्दर्भमेेंं १८ नवम्बरको सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालयसे सम्पर्क करनेपर बताया गया कि समितिद्वारा दिया गया निवेदन आगेकी कार्यवाहीके लिए मन्त्रालयके अतिरिक्त सचिवको दिया गया है ।
विशेषतः महाराष्ट्रमें वारकरियोंकी उपासनाकी विडम्बना करनेवाले ‘एलिजाबेथ एकादशी’ चलचित्रको अखिल भारतीय सन्त समितिके महामन्त्री तथा श्री वारकरी प्रबोधन महासमितिके संस्थापक ह.भ.प. रामेश्वर महाराज शास्त्रीने विरोध दर्शाकर इस चलचित्रपर प्रतिबन्ध लगानेकी मांग की है ।
इस निवेदनमें आगे कहा गया है कि हिन्दू पंचांग वैâलेंडरके अनुसार एकादशी भगवान श्री विष्णुसे सम्बन्धित एक तिथि है । प्रत्येक वर्षमें कुल मिलाकर २४ एकादशी तिथियां आती हैं । प्रत्येक तिथिका अलग अलग आध्यात्मिक महत्त्व है । चलचित्रको ‘एलिजाबेथ एकादशी’ नाम देकर चलचित्र निर्माताने एक नई एकादशी उत्पन्न कर हिन्दुओंको भ्रमित करने तथा धार्मिक भावनाओंको आहत करनेका प्रयास किया है । चलचित्रके भित्तीपत्रकपर ऐसा दर्शाया गया है कि एलिजाबेथ कमरपर हाथ रखकर एक र्इंटपर खडी हैं । यह छायाचित्र र्इंटपर खडे रहनेवाले श्री विट्ठल भगवानसे मिलता-जुलता है । चलचित्रके भित्तीपत्रकपर विट्ठल भगवानको साइकिलपर बिठाया हुआ दर्शाया गया है । यह हिन्दुओंकी धार्मिक भावनाओंको आहत करनेकी घटना है एवं मूल वास्तविकताकी विडम्बना है । चलचित्रमें संशोधक न्यूटनको सन्त सम्बोधित किया गया है । इसलिए दर्शकोमें विशेषत: चलचित्रके दर्शक बालवर्गमें अयोग्य सन्देश जा रहा है । एलिजाबेथ नाम ब्रिटेनकी रानी एलिजाबेथसे मिलता-जुुलता है तथा एलिजाबेथ नामके माध्यमसे अंग्रेजोंके काले इतिहासकी स्मृतियोंपर प्रकाश डाला जा रहा है । यह घटना राष्ट्राभिमान न होनेका द्योतक है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वादशी, कलियुग वर्ष ५११६
श्री विठ्ठल एवं संतोंका अनादर कर अंग्रेजोंका उदात्तीकरण करनेवाले ‘एलिजाबेथ एकादशी’ चित्रपटका प्रमाणपत्र निरस्त करें !
हिन्दुओ, आपके श्रद्धास्रोतोंका अनादर करनेवाले ऐसे चित्रपटका बहिष्कार करें !
चित्रपटके भित्तीपत्रकपर श्री विठ्ठल दुपहिएपर खडे हैं, ऐसा छायाचित्र प्रकाशित किया है ।
धर्माभिमानी हिन्दू निम्ननिर्देशित सम्पर्क क्रमांकपर निषेध पंजीकृत कर रहे हैं ।केन्द्रीय चित्रपट परिनिरीक्षण मण्डल, भारत भवन, ९१ ई, वाळकेश्वर रोड, मुंबई |
मुंबई – अंग्रेजोंका उदात्तीकरण करनेवाला परेश मोकाशी दिग्दर्शित ‘एलिजाबेथ एकादशी’ यह चित्रपट हाल ही में प्रदर्शित हुआ है । उसमें हिन्दू देवता, विठ्ठल, वारकरी सम्प्रदाय, साथ ही जानबूझकर एकादशीके समान हिन्दुओंकी उपासना पद्धतिका अनादर किया गया है । इस सन्दर्भमें हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा केन्द्रीय चित्रपट परिनिरीक्षण मण्डलको निवेदन प्रस्तुत किया गया है । उसमें इस चित्रपटका प्रमाणपत्र निरस्त करनेकी मांग की गई है । (हिन्दुओ यह ध्यानमें रखें कि आपके श्रद्धास्रोतोंकी रक्षा हेतु केवल हिन्दू जनजागृति समिति ही वैध मार्गसे प्रयास करती है ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात)
निवेदनमें यह प्रस्तुत किया गया है कि…
१. सर्व वारकरी, भक्त तथा वैष्णव समाज श्रीविष्णु देवताकी उपासना करने हेतु एकादशीका व्रत भक्तिभावसे करते हैं । उसमें अनशन कर ईश्वरका चिन्तन-स्मरण किया जाता है । वारकरी सम्प्रदायमें २४ प्रकारकी एकादशियां हैं, ऐसा होते हुए भी उसमें एलिजाबेथ नामकी २५ वीं एकादशी घुसेडकर वारकरी सम्प्रदायकी धार्मिक भावनाएं आहत की हैं । चित्रपटके निर्माता क्या कभी अहिन्दुओंकी धार्मिक विधिकाविद्रुपीकरण करनेका दुस्साहस कर सकते हैं ? उसे क्या चित्रपट परिनिरीक्षण मण्डलकी स्वीकृति प्राप्त होगी ?
२. रानी एलिजाबेथ ब्रिटिश अत्याचारी सत्ताकी प्रतीक हैं । मराठी चित्रपटको उसका नाम देकर देशकी अस्मिताका अनादर किया गया है । इस चित्रपटके नामसे अत्याचारी एलिजाबेथका नाम निकालें !
३. इस चित्रपटके विज्ञापनमें श्रीविठ्ठल विटकी अपेक्षा दुपहिएपर तथा एलिजाबेथ रानी विटपर खडी प्रकाशित की गयी हैं । इसमें ‘सुंदर ते ध्यान उभे सायकलवरी’, ऐसा विद्रुपीकरण कर उसका अनादर किया गया है ।
४. कुछ हिन्दूनिष्ठ संगठन तथा कुछ लोग अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून निरस्त करें, ऐसा आंदोलन करते हुए प्रकाशित किया है । साथ ही आन्दोलनके समय पुलिस लाठीसे आन्दोलनकारियोंकी पिटाई करती है । इस गलबलीके कारण व्यवसायिकोंको अधिक मात्रामें हानि पहुंची है, ऐसा चित्रित किया है । प्रत्यक्षमें हिन्दुद्रोही अंधश्रद्धा निर्मूलन कानूनके विरुद्ध एक भी आन्दोलनमें हिंसक प्रकारकी घटना, आर्थिक हानि होना अथवा पुलिसकर्मियोंद्वारा आंदोलनकारियोंपर लाठीका आक्रमण, ऐसे प्रकरण आजतक कभी नहीं हुए हैं ।
५. इस चित्रपटमें न्यूटनको संत कहा गया है, यह वास्तविक संतोंका अनादर है । वास्तविक संत कौन हैं, वे क्या करते हैं, यदि यह प्रकाशित किया जाता, तो छोटे बालकोंपर अच्छे संस्कार होते । सारांशमें देव-धर्मके सन्दर्भमें नास्तिक विचारसारणीके लोगोंने इतिहास एवं अध्यात्मका विद्रुपीकरण कर चित्रपटमें संवेदनशील विषयोंको अनुचित मार्गसे प्रस्तुत किया है ।
६. १४ नवम्बरको बालदिवसके दिन ही यह चित्रपट प्रसारित कर छोटे बालकोंपर धर्मविरोधी एवं हिन्दूविरोधी कुसंस्कार डालनेका प्रयास किया गया है ।
७. चित्रपटमें पंढरपुरके मंदिरमें धनके स्वरूपमें इकट्ठा होनेवाले अर्पणकी गिनती करनेका दृश्य लगातार प्रकाशित किया गया है । उसमें ‘दगड-दगड पैशाचा पूर रग्गड’ इन शब्दोंका गाना प्रकाशित किया गया है । पत्थरके देवताको लोग अनावश्यक धन अर्पण करते हैं, ऐसा प्रकाशित कर हिन्दू श्रद्धालुओंकी श्रद्धाको आहत किया गया है ।
८. एक प्रसंगमें मन्नत पूरी करनेके लिए अनेक देवताओंके दर्शन करनेवाली स्त्रीके मुंहमें मेरी मन्नत कौनसे देवताद्वारा पूरी हुई, इस बातका मुझे पता नहीं; इसलिए वह सभी मन्दिरोंमें जाती है, ऐसा प्रकाशित कर हिन्दुओंकी श्रद्धा आहत की है ।
९. संत कान्होपात्रा गणिका थी । उस समय गणिकाकी परिभाषा बताते समय उसका गणित अच्छा होगा, बालकोंके मुंहमें ऐसे उत्तर देकर संतोंकी हंसी उडाई है ।
१०. एक प्रसंगमें यात्राके समय वेश्याव्यवसाय करनेवाली स्त्रीके मुंहमें गत यात्राके समय अकाल था; इसलिए गत यात्रा अच्छी नहीं हुई, ऐसा बताकर यह स्पष्ट किया है कि इस वर्ष वेश्याव्यवसाय अच्छा हुआ है । कुछ वर्ष पूर्व वारकरी बांधवोंद्वारा ‘थरारली वीट’ नाटिकाका अधिक मात्रामें विरोध हुआ था, ऐसा होते हुए भी पुनः एक बार इस चित्रपटमें यात्रामें वेश्याव्यवसाय अच्छा हो रहा है, ऐसा प्रकाशित कर यात्राका तथा वारकरियोंका अनादर किया गया है ।
११. इस प्रकारके अनेक आपत्तिजनक प्रसंग तथा संवाद इस चित्रपटमें प्रकाशित किए गए हैं । ऐसे चित्रपटोंके कारण हिन्दू संत, परम्परा एवं धर्मश्रद्धाओंका अनादर होता है । इससे हिन्दुओंकी भावना आहत होती है । इसलिए इस चित्रपटका प्रमाणपत्र त्वरित निरस्त करें ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात