सलमान खान, संजय दत्त जैसे अभिनेता तो केवल ‘आभासी’ नायक हैं ! उनमें सच्चे नायक होने का साहस नहीं है ! ‘व्यक्तिनिष्ठता’ भारतीयों का मूल दुर्गुण है ! चलचित्र कलाकार अथवा लोकप्रिय व्यक्तियों के प्रति निहित व्यक्तिनिष्ठता के कारण भारतीय समाज ऐसे व्यक्तियोंद्वारा किए गए पापों के पर्वतों जैसे संग्रह की ओर अनदेखी कर रहा है ! जिन-जिन अपराधियों का चलचित्रों के माध्यम से उदात्तीकरण किया गया, उन सभी ने कभी भारतभूमि के साथ किए गए द्रोह के संदर्भ में न कभी क्षमायाचना की और न उन्होंने स्वयं को देशसेवा के लिए समर्पित किया !
मुंबई में वर्ष १९९३ में हुई बमविस्फोटों की शृंखला के समय अवैधरूप से शस्त्रास्त्र रखने के आरोप में सजा भुगतकर आए हुए अभिनेता संजय दत्त के जीवन पर आधारित चलचित्र ‘संजू’ का २९ जून को संपूर्ण भारत में प्रदर्शन हुआ । इस चलचित्र में संजय दत्त उनके जीवन के घटनाओं में तत्कालीन स्थिति के कारण कैसे फंसते गए, उससे वे कैसे बाहर निकले एवं उसके लिए उनको क्या-क्या सहना पडा, ये सब बातें दिखाई गई हैं । यह सब दिखाते समय उनकेद्वारा किया गया अमली पदार्थों का सेवन, उसके लिए उनकेद्वारा किए गए अयोग्य कृत्य एवं अवैधरूप से शस्त्र रखने के प्रकरण में भुगता गया दंड, इन घटनाओं को भी स्पर्श किया गया है । ये सब करते हुए संजय दत्त कैसा एक अच्छा व्यक्तित्व है, यह दिखाने का प्रयास किया गया है !
अभीतक फिरौती मांगना, हत्या, संगठित अपराध, आतंकवाद, हवालाकांड, धमकाना, अपहरण जैसे एवं और कितने अपराधों की बडी सूचीवाले गंभीर अपराधों के कारण जो अपकीर्त हो जाते हैं, उन पर आधारिक कथा बनाकर ऐसे लोग तत्कालिन स्थिति के कारण कैसे गुंडा बने ?, इसे मालमसाला लगाकर दिखाया जाता है । हिन्दी एवं मराठी चित्रसृष्टि में ‘सत्या’, ‘डी कंपनी’, ‘रईस’, ‘दगडी चाळ’; साथ ही कुख्यात गुंडा दाऊद इब्राहिम एवं उसकी बहन हसीना पारकर तक ऐसे अनेक गुंडे एवं तस्करों के जीवन पर आधारित चलचित्र बनाकर उन्हें ‘नायक’ के रूप में दिखाया जा रहा है ! इस माध्यम से अपराधियों का उदात्तीकरण किया जा रहा है, जो निश्चित रूप से राष्ट्रघातक है !
चलचित्र निर्माता : आधुनिक अंग्रेज !
वास्तव में ऐसी अपराध प्रवृत्ति पर आधारित चलचित्र बनाना, उसमें भी अधिकांश सभी चलचित्रों में मारपीट, गुंडागर्दी एवं अश्लीलता पर बल देनेवाले ही चलचित्र क्यों होते हैं ?, क्या यह उचित है ?, इसका भान आज के चलचित्र निर्माताओं में नहीं है ! ‘हमारेद्वारा बनाए जा रहे चलचित्रों में दिखाई जानेवाली अयोग्य बातों का बालमन, समाजमन एवं युवामन पर क्या परिणाम होगा, इस पर विचार भी नहीं होता । आज के दिन ‘इतिहास का विकृतीकरण’ एवं ‘अपराधों का उदात्तीकरण’ यही आज के चलचित्र निर्माताओं का लक्ष्य है, इसी पद्धति से ये चलचित्र बनाए जा रहे हैं ! सर्वदलीय शासनकर्ता एवं जनता, इन दोनों के द्वारा भी इसका विरोध किया जा रहा है, ऐसा नहीं दिखाई देता ! ऐसे चलचित्रों के संदर्भ में केंद्रिय चलचित्र परिनिरीक्षण विभाग की भूमिका तो सदैव ही केवल ‘आरंभ शूर’ एवं ऐसीतैसी ही रही है ! इस विभाग में कार्यरत सदस्यों में भी उपर्युक्त विखारी लक्ष्य का भान शून्य है !
अपराध जगतद्वारा शासन एवं प्रशासन इन दोनों स्तर पर निहित निष्क्रियता का अपलाभ उठाया जा रहा है ! इस उदात्तीकरण के पीछे भी अपराध विश्व का ही बडा षड्यंत्र है, इस ओर अनदेखी नहीं की जा सकती ! जिस प्रकार से अंग्रेजों ने भारत में चल रही गुरुकुल शिक्षाव्यवस्था को नष्ट कर मेकैले शिक्षापद्धति थोंप कर भारत की शिक्षा एवं समाजव्यवस्था को ध्वस्त किया और आनेवाली पीढी अपने मस्तिष्क का उपयोग न करनेवाली कारकून बने, इसका प्रयास किया, उसी प्रकार से अंतरराष्ट्रीय अपराध जगत भारत की युवा एवं आनेवाली पीढी को खोखला बनाकर उनमें अपराध प्रवृत्ति बढाने के लिए सक्रिय है ! विविध समाचारों से यह दिखाई देता है कि अपराध जगतद्वारा ही अधिकांश चलचित्र निर्माताओं को चलचित्र बनाने के लिए आवश्यक धन की आपूर्ति की जाती है । इसलिए ऐसे चलचित्र निर्माताओं को आधुनिक अंग्रेज कहना अनुचित नहीं होगा !
उदात्तीकरण पर लगाम लगाई जानी चाहिए !
दूसरी ओर आज चलचित्रों में महान राष्ट्रीय व्यक्तित्वों को हीनता से दर्शाकर भावी पीढी के बनने पर या बनने से पहले ही आघात किए जा रहें हैं ! प्रत्येक पीढी अपने पूर्वजों के दैदिप्यमान पराक्रम की धरोहर को साथ लेकर ही भविष्य के राष्ट्र का निर्माण करती है; परंतु अयोग्य इतिहास रखना एवं अपराधियों का उदात्तीकरण किया गया तो इस देश का भविष्य अंधकारमय है ! स्वातंत्र्यवीर सावरकर, लोकमान्य तिलक सहित अनेक क्रांतिकारकों ने केवल समाज की उन्नति एवं स्वतंत्रता के लिए तत्कालिन ब्रिटीश शासन के कानूनों को तोडकर उनके विरोध में आंदोलन चलाए; परंतु आज के अभिनेता और गुंडे कानून को तोडने का प्रयास करते हैं, तो वह केवल अपना स्वार्थ एवं देशद्रोह के लिए ही !
सलमान खान, संजय दत्त जैसे अभिनेता तो केवल ‘आभासी’ नायक हैं ! उनमें सच्चे नायक होने का साहस नहीं है ! ‘व्यक्तिनिष्ठता’ भारतीयों का मूल दुर्गुण है ! चलचित्र कलाकार अथवा लोकप्रिय व्यक्तियों के प्रति निहित व्यक्तिनिष्ठता के कारण भारतीय समाजद्वारा ऐसे व्यक्तियोंद्वारा किए गए पापों का पर्वतों जैसे संग्रह की ओर अनदेखी की जा रही है ! जिन-जिन अपराधियों का चलचित्रों के माध्यम से उदात्तीकरण किया गया, उन सभी ने कभी भारतभूमि के साथ किए गए द्रोह के संदर्भ में न कभी क्षमायाचना की और न उन्होंने स्वयं को देशसेवा के लिए समर्पित किया !
इससे ये अपराधी एवं उनका उदात्तीकरण करनेवाले चलचित्र निर्माताओं की मानसिकता एवं विषैली वृत्ति ही दिखाई देती है ! उस पर लगाम लगाया जाना आवश्यक है एवं उसके लिए राष्ट्रप्रेमी एवं चरित्रवान सुसंस्कारित लोगों का राज्य ही चाहिए !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात