मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, कलियुग वर्ष ५११६
१. देवताओंका अनादर करनेवाला तथा सामाजिक लेनदेन न होनेवाले वर्तमानके चित्रपट तथा नाटिकाओंके माध्यमसे देवताओंका अनादर किया जाता है अथवा उसमें जातीय अनबन उत्पन्न होगी, ऐसे प्रसंग प्रकाशित किए जाते हैं । नाटिका अथवा चित्रपटका निर्माण करनेवालोंका मूल उद्देश्य केवल धनप्राप्ति रहता है । उन्हें समाजसे कुछ भी लेनदेन नहीं होता । अतः उनकेद्वारा धार्मिक भावना आहत होती है । दूसरी बात यह है, उनमें राष्ट्र, धर्म तथा समाजके प्रति प्रेमका अभाव रहता है; इसलिए उनकी ओरसे होनेवाले कृत्य राष्ट्र, धर्म एवं समाजके लिए पोषक होनेकी अपेक्षा हानिकारक होते हैं ।
२. यदि नीतिमत्ताकी शिक्षा देनेवाले चित्रपट अथवा नाटिकाका निर्माण किया गया, तो समाज नीतिमान एवं आदर्श जीवन जीनेके लिए प्रवृत्त होगा । वास्तविकरूपसे नाटिका अथवा चित्रपटके माध्यम ही समाजको उचित दिशा देनेका कार्य कर सकते हैं; किन्तु चित्रपट तथा नाटिकाके माध्यमसे समाजको दिशा देकर लोगोंपर सुसंस्कार अंकित करना अथवा समाजको नीतिमान बनानेकी अपेक्षा उसपर कुसंस्कार ही किए जाते हैं, यह सर्वथा अनुचित है । रामायण तथा महाभारतके माध्यमसे यह शिक्षा प्राप्त होती है कि आदर्श समाज कैसा होना चाहिए ? आदर्श जीवन कैसे जीना चाहिए ? यदि उन आदर्शोंके माध्यमसे प्रसंगानुरूप नीतिमत्ताकी शिक्षा देनेवाले चित्रपट अथवा नाटिकाका निर्माण किया गया, तो उन चित्रपटों अथवा नाटिकाओंको देखनेवालोंपर उचित परिणाम होगा तथा समाज नीतिमान एवं आदर्श जीवन जीनेके लिए प्रवृत्त होगा । इससे समाजकी बिगडी हुई स्थिति सुधरनेमें सहायता ही प्राप्त होगी । इस प्रकारकीनीतिमत्ताकी शिक्षा देनेवाले तथा समाजको दिशा देनेवाले चित्रपट अथवा नाटिकाओंको ही हम वास्तविकरूपसे चित्रपट अथवा नाटिका कह सकते हैं । चित्रपटोंका वैध मार्गसे विरोध करना ही चाहिए । रामायण अथवा महाभारत, इन ग्रंथोंके आधारके अतिरिक्त उस विषयपर आधारित चित्रपट अथवा नाटिका प्रबोधनके माध्यम नहीं हो सकते; अतः जिस चित्रपट तथा नाटिकाके माध्यमसे देवताओंका अनादर हो रहा हो अथवा लोगोेंकी धार्मिक भावना आहत हो रही हो, उन्हें वैध मार्गसे विरोध करना चाहिए, यही हमारा कर्तव्य है । यदि ऐसा कृत्य किया, तभी हम आंशिक रूपसे समाजऋणकी भरपाई कर सकते हैं एवं उससे हमारी समष्टि साधना भी होगी ।
नाटिकाओं एवं चित्रपटोंके निर्माताओंको समाजको दिशा देनेवाली नाटिका अथवा चित्रपट प्रकाशित करनेकी बुद्धि प्राप्त हो, ऐसी प.पू. गुरुदेवजीके चरणोंमें प्रार्थना, साथ ही यह विचार लिखनेकी प्रेरणा दी, इसके लिए कृतज्ञता ।
– (पू.) श्री. सत्यवान कदम, कर्नाटक (१०.८.२०१४)