एक अधिवक्ता के रूप में व्यवसाय करते समय सतर्क रहकर सत्य के अर्थात धर्म के पक्ष में कार्य करना चाहिए ! – अधिवक्ता श्री. विवेक भावे, हिन्दू विधिज्ञ परिषद
कल्याण (मुंबई) : एक अधिवक्ता के रूप में व्यवसाय करते समय ‘आरोपी दोषी है’, यह ज्ञात होते हुए भी ‘मैं दोषी का अधिवक्ता हूं; इसलिए उसको बचाना मेरा कर्तव्य है’, ऐसा कहते हुए हम उसका पक्ष लेकर उसे छुडवाते हैं । इसके कारण उस दोषीद्वारा किए गए पापकर्म के फल में हम भी भागीदार बन जाते हैं ! हम अपनी बौद्धिक क्षमता का उपयोग कर अपराधियों को छुडवाते हैं; परंतु उसके पश्चात भी वह अपराधी अपराध करना चालू ही रखता है । यह गंभीर बात है एवं ऐसी वृत्ति को रोकना, हमारा प्रथम धर्मकर्तव्य है ! ‘अधिवक्ता’ इस व्यवसाय में हमें सतर्क रहकर सत्य के अर्थात धर्म के पक्ष में अग्रसर रहना चाहिए । अधिवक्ता श्री. विवेक भावे ने कल्याण में आयोजित अधिवक्ताओं की बैठक में ऐसा प्रतिपादित किया ।
हिन्दू विधिज्ञ परिषद की ६वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ८ जुलाई को अधिवक्ताओं से एक बैठक ली गई । इस बैठक में अधिवक्ता श्री. किरण जोशी, श्री. अशोक अवस्थी, श्री. प्रदीप ताडमारे, श्रीमती किशोरी कुलकर्णी, श्री. विवेक भावे; साथ ही हिन्दू जनजागृति समिति की श्रीमती वेदिका पालन एवं श्री. सतीश कोचरेकर आदि उपस्थित थे ।
अधिवक्ता श्री. भावे ने आगे कहा, ‘‘हम यदि अधर्म के साथ जुड गए, तो हमें भी कर्म, फल एवं न्याय के अनुसार दंड मिलकर रहेगा ! अतः हमें संगठित होकर साधना करते हुए सत्य के पक्ष में खडे होकर हिन्दू विधिज्ञ परिषद के कार्य में सहभागी होना चाहिए !’’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात