श्री सिद्धिविनायक मंदिर में अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति का एक और नया घोटाला उजागर !

मुंबई में हिन्दू जनजागृति समिति की पत्रकार परिषद

सरकारीकरण किए गए मंदिरों में हो रहे घोटालों को रोकने में असफल सरकार किस आधार पर और नए मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले रही है ? – अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

जो कार्य शासन को करना चाहिए था, वह कार्य हिन्दू विधिज्ञ परिषद को करना पडे, यह भाजपा सरकार के लिए लज्जास्पद ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात

बाईं ओर से डॉ. उदय धुरी, अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर एवं डॉ. उपेंद्र डहाके

मुंबई : श्री सिद्धिविनायक मंदिरों के पूर्व न्यासियों ने सरकारद्वारा आकृतिबंध के अनुसार (स्वीकृत किया गया संख्याबल) दी गई अनुमति की अपेक्षा अधिक कर्मचारियों की नियुक्ति की है, जिसके कारण इन अतिरिक्त कर्मचारियों के वेतन के लिए श्रद्धालुओंद्वारा देवस्थान को समर्पित धनराशि की सहस्रों रुपए की लूट की जा रही है ! मंदिर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संजीव पाटिल के विरोध में स्वयं श्री सिद्धिविनायक मंदिर के न्यासियों ने ही ऐसा गंभीर परिवाद किया है; परंतु सरकार ने उनके विरोध में किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की है ! अपने नियंत्रणवाले मंदिरों को संभालने में असफल सरकार किस आधार पर और नए मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले रही है ? हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने यह प्रश्‍न उपस्थित किया। मुंबई मराठी पत्रकार संघ में हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से १३ जुलाई को आयोजित की गई पत्रकार परिषद में वे ऐसा बोल रहे थे।

इस अवसर पर समिति के मुंबई प्रवक्ता डॉ. उदय धुरी एवं कल्याण नगर भाजपा उपाध्यक्ष डॉ. उपेंद्र डहाके भी उपस्थित थे।

श्री सिद्धिविनायक मंदिर न्यास के पूर्व न्यासियोंद्वारा श्रद्धालुओंद्वारा श्रद्धा से अर्पित धन का घोटाला किए जाने के प्रकरण में अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने विधि एवं न्याय विभाग के पास परिवाद प्रविष्ट किया था। इस परिवाद के कारण विधि एवं न्याय विभाग ने इस प्रकरण की विस्तृत जांच के लिए सहसचिव स्तर के अधिकारी की नियुक्ति का आदेश दिया है। ऐसी स्थिति में ही श्री सिद्धिविनायक मंदिर न्यास के और घोटाले सामने आ रहे हैं। इस पत्रकार परिषद में अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने ऐसे घोटालों की सूची ही प्रस्तुत की !

शासन का व्यवस्थापन, तो घोटालेबाजों का व्यवस्थापन ! – डॉ. उपेंद्र डहाके

अभीतक सरकार ने जिन-जिन मंदिरों का सरकारीकरण किया है, उन सभी मंदिरों के प्रशासनिक कार्य में घोटाले बाहर आ गए हैं, आ रहें हैं ! इससे ‘क्या, सरकार का व्यवस्थापन घोटालेबाजों का व्यवस्थापन है ?, ऐसा प्रश्‍न उपस्थित होता है !

सरकार की खाली तिजोरी भरने के लिए मंदिरों के सरकारीकरण का पाप ! – डॉ. उदय धुरी

जिस पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति के नियंत्रण में ३०६७ मंदिर हैं, उस समिति की सीआईडी जांच चल रही है। तुळजापुर, पंढरपुर, शिरडी एवं कोल्हापुर आदि मंदिरों के घोटालों ने परिसीमा लांघ दी है ! हमने आजतक इन मंदिरों में चल रहे घोटालों के संदर्भ में अनेक परिवाद प्रविष्ट किए, प्रमाणों के सहित ज्ञापन प्रस्तुत किये, आंदोलनें की; परंतु सरकार उसका संज्ञान ले रही है ऐसा नहीं दिखाई देता ! ऐसा होते हुए भी महाराष्ट्र सरकार शनिशिंगणापुर का श्री शनैश्‍वर देवस्थान एवं मुंबई का श्री मुंबादेवी मंदिर इन्हें अपने नियंत्रण में लेने की सिद्धता कर रही है। पहले ही सरकार के नियंत्रणवाले मंदिरों में इतने घोटाले हो रहें हैं तो केवल सरकार की खाली तिजोरी को भरने के लिए साथ ही अपने दल के कार्यकर्ताओं की भलाई हो इसलिए लिए सरकार यह पाप कर रही है ? मंदिर सरकारीकरण के लिए इतनी उतावली क्यों है, सरकार ?

देवस्थान कर्मचारियों की नियुक्ति में हुआ घोटाला

१. ४ अगस्त २००९ को शासनद्वारा किए गए निर्णय के अनुसार श्री सिद्धिविनायक मंदिर न्यास व्यवस्था (प्रभादेवी) अधिनियम १९८० के अनुसार श्री सिद्धिविनायक मंदिर में शासन ने आकृतिबंध के अनुसार १५८ कर्मचारियों के नियुक्ति को अनुमति दी है; परंतु आज के दिन देवस्थान में २१३ कर्मचारी कार्यरत हैं !

श्री सिद्धिविनायक मंदिर न्यास के लिए शासनद्वारा स्वीकृत संख्याबल एवं आज के दिन कार्यरत संख्याबल की सारणी

अ.क्र. नियुक्ति का प्रकार देवस्थान के लिए स्वीकृत संख्याबल देवस्थान की ओर से नियुक्त संख्याबल अतिरिक्त संख्याबल
१. पुजारी २०  ३१  ११ 
२. पहरेदार २७  ६२  ३५ 
३. सामान्य कर्मचारी १५  ६६  ५१ 
४. महिला कर्मचारी ३  ८  ५ 
५. स्वच्छता कर्मचारी २०  २७  ७ 
६. वाईरमन ३  ६  ३ 
कुल ८८  २००  ११२

२. देवस्थान ने शासन की बिना अनुमति से ही स्वयं ही ११२ अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति की है। यहां कामकाज बढा और उसके लिए नौकरों की भरती करनी पडी, ऐसा कहने के लिए भी अवसर नहीं है। यहां यह प्रश्‍न उपस्थित होता है कि देवस्थान की अचल संपत्ति उतनी ही होते हुए भी कर्मचारियों की संख्या दोगुनी क्यों की गई ? यदि और अधिक कर्मचारियों की आवश्यकता होती, तो नियम के अनुसार सरकारी अनुमति लेने के स्थान पर स्वयंद्वारा ही कर्मचारियों की भरती क्यों की गई ? क्या यहां अपने ही सगेसंबंधियों की नियुक्ति करने का प्रकार हुआ है ?, इसकी जांच होना आवश्यक है !

३. इसके अतिरिक्त देवस्थान ने परिचयपत्र देकर ४४१ सेवादार नियुक्त किए हैं। इतनी बडी संख्या में सेवादारों के होते हुए भी देवस्थानद्वारा अलग से कर्मचारियों की नियुक्ति क्यों की गई है ? विधि एवं न्याय विभाग की ओर से किए गए परिक्षण में आधे से भी अधिक सेवादारों ने मंदिर में उपस्थित होकर अपनी सेवा उपलब्ध नहीं कराई ! इन सेवादारों ने देवस्थानद्वारा मिले परिचयपत्रों का उपयोग स्वयं एवं अपने मित्र-परिजनों को दर्शन का लाभ दिलाने के लिए किए जाने का उल्लेख किया गया है, इसका अर्थ यह सेवादार परिचयपत्रों का दुरूपयोग कर रहे थे ! पहले इतनी बडी संख्या में सेवादारों की नियुक्ति करना एवं वे सेवा नहीं देते; इसलिए पुनः और कर्मचारियों की नियुक्ति करना, यह श्रद्धालुओंद्वारा समर्पित धन का दुरूपयोग है !

४. विधि एवं न्याय विभागद्वारा किए गए अन्वेषण में और एक चौंकानेवाली यह बात सामने आई है कि न्यास के कार्यालय में कर्मचारियों की उपस्थिति की पडताल के लिए बायोमेट्रिक प्रणाली कार्यान्वित की गई है; परंतु उसमें सभी कर्मचारियों की प्रविष्टियां पूर्णरूप से नहीं हुई हैं, साथ ही अधिकारियों ने शासन की अनुमति के बिना छुट्टियां ली है। इस संदर्भ में हिन्दू विधिज्ञ परिषदद्वारा परिवाद प्रविष्ट किया है और उस पर अभीतक कार्रवाई न होने की स्थिति में यह और एक नया घोटाला सामने आया है !

पत्रकारों के प्रश्‍नों के अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकरद्वारा दिए गए उत्तर

प्रश्‍न : क्या आपने मुसलमानों के धार्मिक स्थलों का पैसा कहां जमा होता है, इसकी जानकारी ली है ?

उत्तर : सरकार मंदिरों को तो अपने नियंत्रण में लेती है; परंतु मस्जिदों को हाथ नहीं लगाती ! मंदिरों का धन सिंचाई एवं अन्य कारणों के लिए उपयोग में लाया जाता है। ‘हम ७० सहस्र कोटि रुपए का सिंचाई घोटाला उजागर करेंगे’, ऐसा आश्‍वासन देकर यह सरकार सत्ता में आ गई; परंतु यही सरकार भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे रही है। वक्फ बोर्ड के पास सहस्रों एकड भूमि उपलब्ध है; परंतु सरकार इस बोर्ड को और धन देती जा रही है। इसलिए हम मंदिरों में हो रही लूट को रोकने के लिए प्रधानता दे रहे हैं !

प्रश्‍न : सभी जाती-धर्मों के मंदिरों में ऐसे घोटाले हो रहे हैं, इस संदर्भ में आपका क्या कहना है ?

उत्तर : धर्मादाय आयुक्त ने इसकी पडताल करना आवश्यक है। इस विषय में धर्मादाय आयुक्त कुछ नहीं करते, इसका अर्थ सरकार ही कुछ नहीं कर रही है !

मंदिर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संजीव पाटिल के विरोध में गंभीर परिवाद

सरकारद्वारा नियुक्त इस मंदिर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संजीव पाटिल के विरोध में मंदिर के वर्तमान एवं पूर्व न्यासियों ने ही सरकार के पास गंभीर परिवाद किए हैं ! इनमें से ही कुछ गंभीर परिवाद ऐसे हैं . . .

अ. नोटबंदी के समय में मंदिर के धन में से नोट बदले गए !

आ. महिला भक्तों को हाथ से खींचते हुए उन्हें अपशब्द कहे गए !

इ. चंदा देनेवालों को बाहर से ही मूर्तियां खरीदकर दी गईं !

ई. वाहन भत्ता मिलते हुए भी प्रशासनिक वाहन का उपयोग किया जाता था !

उ. चंदा देनेवालों सें बाहर से ही १० लाख रुपए लिए गए और वे मंदिर में जमा नहीं किये गए !

ऐसे अत्यंत गंभीर परिवाद होते हुए भी सरकार ने उनके विरोध में किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की ! सरकारद्वारा नियुक्त न्यासियों की बात ही यदि प्रशासन नहीं सुनता हो, तो ऐसा प्रशासन भक्तों की क्या सुनेगा ?, ऐसा प्रश्‍न उपस्थित होता है ! विधि एवं न्याय विभाग मुख्यमंत्री के पास ही है, तो उन्होंने संजीव पाटिल के विरोध में कार्रवाई क्यों नहीं की ?, ऐसा प्रश्‍न भी अधिवक्ता श्री. इचलकरंजीकर ने इस समय उपस्थित किया !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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