मंदिरों के सरकारीकरण हेतु सरकार के प्रयत्न असंवैधानिक !
राज्य के देवस्थानों के पदाधिकारी, पुजारी एवं हिन्दू संगठनों का आंदोलन का संकेत !
पुणे : सर्वोच्च न्यायालय डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी के विरोध में तामिळनाडु शासन व अन्य (सिविल अपील क्र. : १०६२० / २०१३) इस अभियोग का निर्णय करते समय किसी सरकार को धार्मिक संस्थाओं के व्यवस्थापन को कायमस्वरूप स्वयं नहीं ले सकते हैं। सरकार को केवल व्यवस्थापन की त्रुटियों को दूर कर मंदिर पुन: उन भक्तों को सौंपना अपेक्षित है, ऐसा स्पष्टरूप से कहा गया है। भारतीय राज्य संविधान के अनुच्छेद २६ (ड) के अनुसार भारतीय जनता को धार्मिक विषयों का व्यवस्थापन संभालने के लिए पूर्णरूप से स्वतंत्र है। ऐसा होते हुए भी लाखों भाविकों की श्रद्धा को ठेस पहुंचाकर सरकार मंदिरों का सरकारीकरण करना चाहती है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार सरकार के मंदिर सरकारीकरण का प्रयत्न असंवैधानिक है। इसलिए सरकारीकरण हुए सभी मंदिर सरकार भक्तों के स्वाधीन करे, वंशपरंपरागत पुजारियों की परंपरा कायम रखते हुए मंदिरों में धार्मिक प्रथा-परंपराओं में मनमानी परिवर्तन न करे आदि एकमुखी मांग महाराष्ट्र शासन के मंदिर सरकारीकरण के विरोध में मंदिर और धार्मिक संस्था महासंघाद्वारा ली गई बैठक में की गई।
पुणे के अजिंक्य सभागृह में संपन्न बैठक में पंढरपुर के सावरकर क्रांति मंदिर के अध्यक्ष, भागवताचार्य वा.ना. उत्पात, तुळजापुर के महंत मावजीनाथ महाराज, सोलापुर के श्री सिद्धेश्वर देवस्थान के पारंपरिक पुजारी श्री. आनंद हब्बू, कोल्हापुर के श्री महालक्ष्मी देवस्थान के श्रीपूजक श्री. गजानन मुनीश्वर, श्री बल्लाळेश्वर देवस्थान के अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. धनंजय धारप, जेजुरी देवस्थान के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रसाद खंडागळे, मांढरदेवी देवस्थान के श्री. रवींद्र क्षीरसागर, गणपतीपुळे देवस्थान के श्री. दिनेश बापट, सनातन संस्था के धर्मप्रसारक श्री. अभय वर्तक, हिन्दू जनजागृति समिति के पश्चिम महाराष्ट्र समन्वयक श्री. मनोज खाडये, हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट सहित अन्य प्रमुख देवस्थानों के पुजारी एवं पदाधिकारी भी उपस्थित थे।
सरकार केवल मंदिरों के धन पर आंखें गडाए राजकीय असंतुष्टों का पुनर्वसन करने हेतु सुव्यवस्थापन के नाम पर केवल हिन्दुओं के ही मंदिर नियंत्रण में ले रही है। पंढरपुर का श्री विठ्ठल मंदिर, मुंबई का श्री सिद्धीविनायक मंदिर, तुळजापुर का श्री भवानी मंदिर, कोल्हापुर का श्री महालक्ष्मी मंदिर, शिर्डी का साईबाबा मंदिर, पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति के अंतर्गत कोल्हापुर, सांगली एवं सिंधुदुर्ग जिलों के ३०६७ मंदिरों का सरकार ने अतिक्रमण किया है। सरकारीकरण हुए इन मंदिरों में प्रचंड मात्रा में आर्थिक अपहार और भ्रष्टाचार हुआ है !
इसके कुछ उदाहरण . . .
१. पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति : इस समिति के पास २५ सहस्र एकड भूमि में से ८ सहस्र एकड भूमि लापता है; देवस्थानों के जेवरात-अलंकारों की कहीं प्रविष्टि नहीं, २५ वर्षों से लेखापरीक्षण नहीं !
२. श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति, पंढरपुर : इस मंदिर की १२०० एकड भूमि होते हुए भी गत २५ वर्षों से वह नियंत्रण में नहीं; इसके साथ ही एक रुपये का उत्पन्न भी मंदिर को नहीं मिलता; मंदिर की गोशाला का गोधन कसाईयों को बेच दिया गया !
३. श्री भवानी मंदिर, तुळजापुर : इस मंदिर समिति के बडे-बडे घोटालों की सीआयडी जांच चल रही है !
ऐसी ही स्थिति सरकारीकरण हुए अन्य सभी मंदिरों की है। मंदिर में भाविकोंद्वारा अर्पित दान का उपयोग धर्मप्रसार हेतु नहीं, अपितु मुसलमान एवं ईसाई पंथियों के लिए किया गया है। अंधाधुंद कार्यभार कर मंदिरों में हुए करोडों रुपयों का भ्रष्टाचार उजागर होने पर भी उसे बडी सहजता से अनदेखा कर सरकार ने शिंगणापुर के श्री शनैश्वर देवस्थान के सरकारीकरण का आदेश दिया है। अब मुंबई के श्री मुंबादेवी मंदिर पर भी वक्रदृष्टि पड़ी है !
सरकारीकरण हुए मंदिरों में अपेक्षित पवित्रता नहीं रखी जाती है। अनेक स्थानों पर पूर्व से चली आ रहीं अनेक प्रथा-परंपराओं को तोडा जा रहा है, वंशपरंपरागत पुजारियों को हटाकर धर्मशास्त्र न जाननेवाले वेतन लेनेवाले पुजारियों को नियुक्त करने का प्रयत्न सभी मंदिरों में हो रहा है। सरकारी नियम से नियुक्त किए गए पुजारियों को धार्मिक प्रथा-परंपराओं की कितनी जानकारी है, यह तो भगवान ही जानें ! पंढरपुर में रुक्मिणी माता की पूजा करनेवाली महिला पुजारी को माता के माथे पर लगी गंध निकालने की विधि न पता होने से उसने अपने नाखून से उसे खरोंचकर निकाली, ऐसे प्रकार होते दिखाई देते हैं ! यह अत्यंत निदंनीय है, ऐसा मत उपस्थित सभी मान्यवरों ने प्रदर्शित किया। हमारे मंदिर, चैतन्य और सात्त्विकता के केंद्र होते हैं। इस सात्त्विकता को टिकाने के लिए मंदिरों की पवित्रता को संजोना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ! यदि सरकार ऐसी अर्थहीन पद्धति से मंदिरों का कारोबार करेगी, तो ऐसे लोगों पर भगवान कभी प्रसन्न होंगे अथवा उनका कोप होगा, यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं। इसलिए वंशपरंपरागत पुजारी एवं प्रथा-परंपराएं, मंदिरों में कायम रखी जाएं, ऐसी मांग भी इस अवसर पर की गई। इसके साथ ही स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहलवानेवाला शासन मस्जिदों और चर्च के सरकारीकरण का विचार नहीं करता, केवल मंदिरों का ही सरकारीकरण कर रहा है। यह हिन्दू समाज पर किया जानेवाला अन्याय और सामाजिक भेदभाव है। इसका भी इस अवसर पर निषेध किया गया।
विविध देवस्थानों के पदाधिकारी, पुजारी एवं हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों की मांगें :
१. सरकारीकरण हुए मंदिरों में गैरकारभार की सखोल जांच करने के लिए शासनद्वारा न्यायालयीन जांचसमिति नियुक्त की जाए !
२. विविध मंदिरों के घोटालों के लिए उत्तरदायीयों पर अतिशीघ्र अपराध प्रविष्ट कर, उन्हें नियंत्रण में लिया जाए !
३. दोषी पाए जानेवाले पदाधिकारियों और कर्मचारियों की संपत्ति जप्त कर उनसे घोटालों की राशि की आपूर्ति जाए !
४. सभी सरकारीकरण किए हुए मंदिर, सरकारद्वारा भक्तों के स्वाधीन किए जाएं !
५. वंशपरंपरागत पुजारियों की परंपरा कायम रखी जाए !
६. मंदिरों में धार्मिक प्रथा-परंपराओं में मनमानी परिवर्तन न किया जाए !
यह सरकारीकरण के विरोध की शुरुआत है, यदि सरकार ने इस पर कार्रवाई नहीं की, तो शासन के हिन्दूविरोधी और धर्मविरोधी कृत्यों के लिए हम न्यायालयीन कार्रवाई करेंगे ही; इसके साथ ही समस्त हिन्दू भाविक सड़क पर उतर कर तीव्र आंदोलन छेडेंगे, ऐसी चेतावनी मंदिर एवं धार्मिक संस्था महासंघ ने इस अवसर पर दी !