जानिए महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित विट्ठल मन्दिर का रोचक इतिहास

पंढरपुर महाराष्ट्र राज्य का एक नगर और प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है । यह पश्चिमी भारत के दक्षिणी महाराष्ट्र राज्य में भीमा नदी के तट पर सोलापुर नगर के पश्चिम में स्थित है । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यहाँ का विट्ठल मन्दिर बना हुआ है । इस मंदिर में विठोबा के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है ।

धार्मिक स्थल

सोलापुर से ३८ मील पश्चिम की ओर चंद्रभागा अथवा भीमा नदी के तट पर महाराष्ट्र का शायद यह सबसे बडा तीर्थ है । ११वीं शती में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी । सडक और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहाँ साल भर हजारों हिन्दू तीर्थयात्री आते हैं ।

भगवान विष्णु के अवतार ‘बिठोबा’ और उनकी पत्नी ‘रुक्मिणी’ के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं । मुख्य मंदिर का निर्माण १२वीं शताब्दी में देवगिरि के यादव शासकों द्वारा कराया गया था । यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित मराठी कवि संतों की भूमि भी है ।

मुख्य मंदिर

श्री विट्ठल मंदिर यहाँ का मुख्य मंदिर है । यह मंदिर बहुत विशाल है । निज मंदिर में श्रीपुण्डरीनाथ कमर पर हाथ रखे खडे हैं । उसी घेरे में ही रुक्मिणीजी, बलरामजी, सत्यभामा, जाम्बवती तथा श्रीराधा के मंदिर हैं । मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है । प्रथम सीढी पर ही नामदेवजी की समाधि है । द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है ।

पौराणिक कथा

भक्त पुंडलीक माता-पिता के परम सेवक थे । वे माता-पिता की सेवा में लगे थे, उस समय श्रीकृष्णचंद्र उन्हें दर्शन देने पधारे । पुंडलीक पिता के चरण दबाते रहे । भगवान को खडे होने के लिए उन्होंने ईंट सरका दी; किंतु उठे नहीं । भगवान कमर पर हाथ रखे ईंट पर खडे रहे । सेवा से निवृत्त होने पर पुंडलीक ने भगवान से इसी रूप में यहाँ स्थित रहने का वरदान मांग लिया

विट्ठल मंदिर का  इतिहास

वास्तव में पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यह मंदिर बना हुआ है । इसके अधिष्ठाता विठोबा के रूप में श्रीकृष्ण है, जिन्होंने भक्त पुंडलीक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक ईंट को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था । कहा जाता है कि विजयनगर नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गया था । किन्तु फिर वह एक महाराष्ट्रीय भक्त के द्वारा पंढरपुर वापस ले जाई गई । १११७ ई. के एक अभिलेख से यह भी सिद्ध होता है कि भागवत संप्रदाय के अंतर्गत वारकरी ग्रंथ के भक्तों ने विट्ठलदेव के पूजनार्थ पर्याप्त धनराशि एकत्र की थी । इस मंडल के अध्यक्ष रामदेव राय जाधव थे ।

विट्ठल मंदिर यात्रा

पंढरपुर की यात्रा आजकल आषाढ में तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है । देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को वारकरी सम्प्रदाय के लोग यहाँ यात्रा करने के लिए आते हैं । यात्रा को ही ‘वारी देना’ कहते हैं । भक्त पुंडलीक इस धाम के प्रतिष्ठाता माने जाते हैं । संत तुकाराम, ज्ञानेश्वर, नामदेव, राँका-बाँका, नरहरि आदि भक्तों की यह निवास स्थली रही है । पंढरपुर भीमा नदी के तट पर है, जिसे यहाँ चन्द्रभागा भी कहते हैं ।

विट्ठल मंदिर कब जाएँ

पंढरपुर में गर्मी और सर्दी दोनों ही मौसम का पूरा प्रभाव रहता है । यहां कभी भी आया जा सकता है । चाहे गर्मी, वर्षा या ठंड का मौसम हो । गर्मियों (मार्च-जून) के दौरान यहां का तापमान ४२ डिग्री तक पहुंच जाता है । जबकि मानसून (जुलाई-सितंबर) के दौरान यहां सामान्य बारिश होती है ।

सर्दी (नवंबर-फरवरी) के दौरान यहां के मौसम में थोडी आर्द्रता या नमी होती है । इस दौरान यहां का तापमान १० डिग्री तक जा सकता है । अक्टूबर से फरवरी का मौसम यहां आने का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है, जब यात्री यहां के आसपास के दर्शनीय स्थलों का ही नहीं, बल्कि मंदिर के उत्सवों का भी आनंद ले सकते हैं ।

कैसे पहुंचे

रेल यात्रा : पंढरपुर, कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन से जुडा हुआ है । कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस, मुंबई एक्सप्रेस,  हुसैनसागर एक्सप्रेस, सिद्धेश्वर एक्सप्रेस समेत कई ट्रेने रोजाना मुंबई जाती हैं । पंढरपुर से भी पुणे के रास्ते मुंबई के लिए रेल चलती है ।

सडक मार्ग : महाराष्ट्र के कई शहरों से पंढरपुर सडक परिवहन के जरिए जुडा है । इसके अलावा उत्तरी कर्नाटक और उत्तर-पश्चिम आंध्र प्रदेश से भी प्रतिदिन यहां के लिए बसें चलती हैं ।

वायु मार्ग : यहाँ का निकटतम घरेलू हवाईअड्डा पुणे है, जो लगभग २४५ किलोमीटर की दूरी पर है । जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा मुंबई में स्थित है ।

विट्ठल मंदिर पता : चौफाला, पंढरपुर, महाराष्ट्र

स्त्रोत : इंडिया दर्शन

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​