महाराष्ट्र के मुंबई के अंधेरी और जोगेश्वरी में, महज तीन किलोमीटर के फासले पर महाकाली और जोगेश्वरी गुफाओं के रूप में भारत की अनमोल धरोहर मौजूद है ! परंतु महानगर के दूसरे हिस्सों को तो छोडो, इन इलाकों में रहनेवाले लोग भी उनके अस्तित्व तक से अनजान हैं ! जोगेश्वरी गुफा में मंदिर, भारत का सबसे लंबा गुफा मंदिर है । बताया जाता है अज्ञातवास के दौरान पांडव जब यहां आए, तो उन्हें इन्हीं गुफाओं ने शरण दी थी । आइए जानते हैं, भव्य इतिहास होने के बाद भी कैसे मंदिर से शौचलय बन गई थी गुफा….
काल के थपेडों से जर्जर
काल के थपेडों से जीर्ण अवस्था में पहुंचीं महाकाली गुफाएं मुंबई की अन्य गुफाओं की तरह पहाड को बाहर से अंदर की आेर काटकर बनाई गई हैं । ईसा पूर्व पहली सदी से लेकर छठी ईस्वी काल की ये गुफाएं कोंडिविटा गांव के नजदीक होने के कारण कोंडिविटा गुफाएं कहलाईं । पहाडी के ढलान पर पुराने समय के जंगलों के बीच बने ‘महाकाली’ मंदिर के नाम पर इसका नाम महाकाली गुफा पड गया ।
मुंबई उच्च न्यायालय ने दिया था जीर्णोद्धार का निर्देश
कुछ साल पहले मुंबई उच्च न्यायालय ने अंधेरी (पूर्व) की भीड-भाडवाली बस्ती के बीच महाकाली गुफाओं के संरक्षण और जीर्णोद्धार का निर्देश दिया, तब से उसकी हालत में जमीन-आसमान का फर्क है ! साफ-सफाई बेहतर है । बोतलें, गुटखे के रैपर्स, प्लास्टिक की थैलियां और हमेशा बनी रहनेवाली पेशाब की बदबू गायब हो गई है । गुफाओं के ऊपर तथा सामने की जगह पर बाड लगाने तथा इन्हें अतिक्रमण से मुक्त रखने के न्यायालय के निर्देश के बाद यहां तैनात पुरातत्व विभाग का सात कर्मचारियों का स्टाफ मवालियों और गर्दखोरों के साथ ताश खेलते और सिगरेट पीते लोगों, मस्तीखोरी करते युवक-युवतियों और पढने आए बच्चों पर भी नजर रखने लगा है !
नागरिकों के अभियान से बच गया प्राचीन कुंड
नागरिकों के अभियान के बाद बिल्डरों की गिद्धदृष्टि से यहां का प्राचीन कुंड सुरक्षित बच गया है । गुफाओं के सामने के चौरस स्थान पर अब एक खूबसूरत उद्यान है । १८ साल से इस इलाके के रखरखाव की जिम्मेदारी पूनम नगर और आस-पास के नागरिक मिलकर उठाते हैं । हालांकि, इधर कचरे की डंपिंग और ट्रकों के एक अवैध पार्किंग लॉट की शिकायतें फिर से सुनने में आ रही हैं ।
पूरे पहाड को काटकर बनी गुफाएं
महाकाली गुफाओं की हालत महज तीन किलोमीटर दूर जोगेश्वरी की गुफाओं से काफी बेहतर है । एक बडे क्षेत्र में पहाडी के दोनों आेर चैत्य और प्रार्थना हॉल सहित १९ मूर्तियुक्त और खाली गुफाएं व कोठरियां और उनके ऊपर स्तूप और गुंबद । महाकाली में सामनेवाले हिस्से में चार गुफाएं हैं, सीढियों के साथ स्तंभयुक्त बरामदे और गर्भ-गृह के साथ । गुफा नंबर नौ में मौजूद स्तूप चट्टान को तराश कर बने एक जालीदार बाहरी आवरण से घिरा हुआ है । शायद चैत्य गुफा-जिसके बाहरी मंडप की दीवारों में अवलोतिकेश्वर तथा बुद्ध के जीवनकाल से जुडी प्रतिमाएं हैं । यहीं पास ही दूसरी गुफा में चार स्तंभों से निर्मित हॉल है ।
एक जैसी हैं १५ गुफाएं
सीढियों से हो कर बरामदा और बरामदे से जुडे आवास के कमरे-पीछेवाले हिस्से में एक जैसी १५ गुफाएं हैं । उन गुफाओं में एक में स्तूप का चिह्न कटा हुआ है । यह गुफा यहां रहनेवाले भिक्षुओं के प्रमुख का निवास-स्थल रही होगी या फिर हीनयान संप्रदाय का प्रतीक । निर्माताओं की बुद्धि पर बलिहारी, जिन्होंने दो हजार वर्ष पहले इन गुफाओं को काटने के लिए इस पहाड़ का चयन किया होगा । इनमें जो सबसे बडी गुफा है, उसमें बुद्ध और बौद्ध आख्यानों को दर्शाते हुए सात उत्कीर्णन हैं । आंतरिक कक्ष में आज जिसकी पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है दरअसल, वह पहले बौद्ध स्तूप रहा होगा । गुफाओं में जल-भंडारण की वही व्यवस्था है, जैसी कान्हेरी गुफाओं में । इस क्षेत्र में कदाचित ताजे पानी के कई जलाशय भी रहे होंगे ।
भारत का सबसे लंबा गुफा मंदिर
जोगेश्वरी गुफा मंदिरों का निर्माण ५२० से ५५० ईस्वी के दौरान कोकण के मौर्य और कलचुरी (त्रैकूटक) राजवंशों के द्वारा किया गया । ब्राह्मणीय शैलोत्कीर्ण स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण इन गुफाओं की तुलना शिल्प में एलिफेंटा की (गुफा संख्या एक) और एलोरा (गुफा संख्या २९ (डुमरलेण) से की जाती है । इसके अग्रमंडप, मुखमंडप और गर्भगृह में १३वीं सदी तक इनमें पूजा अर्चना के स्वर गूंजते रहे, जो पहले मुस्लिम और फिर पुर्तगाली शासनकाल में खामोश हो गए । किंवदंती के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडव जब यहां आए, तो उन्हें इन्हीं गुफाओं ने शरण दी थी ।
अतीत के वैभव का खजाना है यह गुफा
यह गुफा नहीं, अतीत के वैभव का खजाना है । मुख्य गुफा के एक दरवाजे से निकलते समय हमने करीबन दस स्तंभोंवाला एक लंबा सा भव्य कॉरिडोर देखा । एक आेर दोमंजिला गुफाएं हैं । बीच का भाग ध्वस्त होकर आंगन जैसा दिखने लगा है । शिवमंदिर और गणेश मंदिर के साथ एक हनुमान मंदिर भी है, जिसका रास्ता एक बडे-से आंगन से हो कर जाता है, जिसके दोनों आेर गुफाएं हैं । दत्त मंदिर भी कभी यहीं रहा होगा, पर कुछ गुफाओं की छत गिर जाने के कारण अब उसके दर्शन के लिए बाहर निकल कर पहाडी के ऊपर से जाना पड़ता है ।
बन गया था शौचालय
कुछ साल पहले तक यहां आनेवालों को नाक दबाकर आना पड़ता था, क्योंकि गुफाओं के इर्द-गिर्द रहनेवाले इस परिसर का शौचालय, डंपिंग ग्राउंड और स्टडी रूम के रूप में इस्तेमाल करते थे । पास में ऊंची इमारतों के निर्माण में इस्तेमाल मशीनरी और खुदाई से गुफा की दीवारों और खंभों में दरारें पड़ गई थीं और गंदे पानी के रिसाव से मंदिर का शिल्प नष्ट होता जा रहा था । बताया जाता है पहले यहां दर्शक कम, नशाखोर यहां ज्यादा दिखने लगे थे । अभी तो हालत काफी सुधर गए हैं !
स्त्रोत : नवभारत टाईम्स