भारत में हजारों साल से गुरु-शिष्य परंपरा चलती आ रही है । या यूं कहें कि फलती-फूलती और आगे बढती रही है । हमारी संस्कृति ऐसी है जिसमें गुरु अपने सूक्ष्म ज्ञान को अटूट विश्वास और पूर्ण समर्पण के साथ अपने शिष्यों तक पहुंचाते रहे हैं और शिष्य भी इस परंपरा का निर्वाह करते रहे हैं । परंपरा का अर्थ होता है ऐसी प्रथा जो बिना किसी छेड-छाड और बाधा के चलती रहे । दूसरे शब्दों में कहें तो यह ज्ञान बांटने की अटूट श्रृंखला को गुरु शिष्य परंपरा कहते हैं । गुरु का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला यानी गुरु ही शिष्य को जीवन में सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन करता है । आषाढ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है । इस महीने यह २७ जुलाई को मनाई जाएगी । गुरु पूर्णिमा के दिन इस बार चंद्रग्रहण का भी संयोग बन रहा है ।
बृहस्पति
देवों के देव कहें या देवताओं के गुरु बृहस्पति को माना गया है । ये अपने ज्ञान से देवताओं को असुरों को हराने का ज्ञान तो देते ही हैं । यही नहीं वो देवगुरु बृहस्पति ही हैं जो अपने रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण और रक्षण भी करते हैं ।
महर्षि वेदव्यास
धर्मों में ऐसा माना गया है कि, महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार थे । इनका पूरा नाम कृष्णद्वैपायन था । इन्होंने ही वेदों का विभाजन किया । इसलिए इनका नाम वेदव्यास पडा । महाभारत ग्रंथ की रचना भी महर्षि वेदव्यास ने ही की है ।
गुरु सांदीपनि
भगवान श्री कृष्ण ६४ कलाओं में पारंगत थे और उन्हें यह शिक्षा देने वाले थे महर्षि सांदीपनि । भगवान श्रीकृष्ण के गुरु थे महर्षि सांदीपनि । श्रीकृष्ण और बलराम इनसे शिक्षा प्राप्त करने मथुरा से उज्जयिनी ( उज्जैन) आए थे ।
शुक्राचार्य
दैत्यों के गुरु हैं शुक्राचार्य । ये भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र हैं । इनका जन्म का नाम शुक्र उशनस है । उनके पास एक शक्ति थी जिसके बल पर वह मृत दैत्यों को भी जीवित कर दिया करते थे जो उन्हें भगवान शिव ने दिया था । इस ज्ञान को मृत संजीवन विद्या का ज्ञान कहते हैं ।
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र
विश्वामित्र वैसे तो क्षत्रिय थे, परंतु वह ब्रह्मा के बहुत बडे भक्त थे । उन्होंने घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने इन्हें ब्रह्मर्षि का पद प्रदान किया था । उन्होंने श्रीराम को अनेक दिव्यास्त्र प्रदान किए थे । भगवान राम को सीता स्वयंवर में ऋषि विश्वामित्र ही लेकर गए थे ।
वशिष्ठ ऋषि
वशिष्ठ ऋषि सूर्यवंश के कुलगुरु थे । भगवान राम ने सारी वेद-वेदांगों की शिक्षा वशिष्ठ ऋषि से ही प्राप्त की थी । श्रीराम के वनवास से लौटने के बाद इन्हीं के द्वारा उनका राज्याभिषेक हुआ और रामराज्य की स्थापना संभव हो सकी ।
परशुराम
परशुराम एक महान योद्धा तो थे ही परंतु इससे अलग वह एक महान गुरु भी थे । धर्म ग्रंथों के अनुसार ये भगवान विष्णु के अंशावतार थे । इन्होंने भगवान शिव से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी । पिता की हत्या का बदला लेने के लिए इन्होंने कई बार क्षत्रियों पर हमला किया और उनका मकसद धरती को क्षत्रिय विहीन कर देना था । भीष्म, द्रोणाचार्य और कुंती पुत्र कर्ण इनके शिष्य थे ।
द्रोणाचार्य
कौरवों और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देने वाले महान धनुर्धर थे द्रोणाचार्य । ऐसा माना जाता है कि द्रोणाचार्य देवगुरु बृहस्पति के अंशावतार थे । इनके पिता का नाम महर्षि भरद्वाज था । महान धनुर्धर अर्जुन इनके प्रिय शिष्य थे और एकलव्य से इन्होंने गुरु दक्षिणा में अंगूठा ले लिया था ।
स्त्रोत : अमर उजाला