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आध्यात्मिक चेतना और विराट ज्ञान परम्परा को पुनः प्रतिष्ठत करके ही राष्ट्र की उन्नति सम्भव – प्रो. रामेश्वर मिश्र

प्रबोधन व्याख्यान माला समापन समारोह

बीकानेर : श्रीलालेश्वर महादेव मन्दिर, शिवमठ, शिवबाडी के अधिष्ठाता पूज्य स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज की अध्यक्षता में मानव प्रबोधन प्रन्यास द्वारा आयोजित चार दिवसीय प्रबोधन व्याखान माला की श्रृंखला के चतुर्थ दिवस का शुभारंभ सायं ६ बजे रिद्धि-सिद्धि भवन में दीप प्रज्जवलित, सरस्वती पूजन तथा यति स्तुति के साथ हुआ।  इस अवसर पर प्रो. रामेश्वर मिश्र ‘पंकज’, प्रो. कुसुमलता केडिया एवं स्वामीजी श्री सोमगिरिजी महाराज का सर्वश्री मोतीलाल ओझा, जयनारायण गोयल, सुभाष मित्तल, जुगल राठी, कैलाश गोयल, द्वारका प्रसाद पच्चीसिया, ने शाल व माल्यापर्ण कर स्वागत किया।

प्रबोधन  व्याख्यान माला के अंतिम दिन मुख्य वक्ता दार्शनिक, समाज वैज्ञानिक एवं इतिहासकार श्री रामेश्वर मिश्र ‘पंकज’ ने ‘राष्ट्र की उन्नति का अर्थ’ के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत राष्ट्र की वास्तविक उन्नति का एक ही अर्थ है कि इसकी आध्यात्मिक चेतना और विराट ज्ञान परम्परा की पुनः प्रतिष्ठा हो साथ लाखों साल से चली आ रही इसकी समाज परम्परा तथा उसकी स्वाभाविक इकाईयां फिर से गतिशील हों।  जातियों और सम्प्रदायों में भलीभांति व्यवस्थित सनातन धर्म का वाहक समाज अपने राज-धर्म के अनुसार राज्य का संचालन करें और सत्य, धर्म तथा न्याय की प्रतिष्ठा करें। शासन का कार्य है समाज की रक्षा करना। इसके लिए समाज में प्रबुद्ध और तेजस्वी युवकों तथा युवतियों को ज्ञान और कौशल अर्जित करना होगा।  प्रचण्ड पुरूषार्थ के बिना यह कार्य संभव नहीं है क्योंकि वर्तमान में एक विदेशी चेतना से संचालित विधर्मी व्यवस्था कार्यरत है।  भारत का सर्वोपरि मान्यता का गुण है वीरता, भारत बचा है तो वीरता से। वीरता को नष्ट करने की कोशिश करना राष्ट्र द्रोह है। हमें अपने ज्ञान परम्परा, सनातन धर्म की रक्षा करना, स्वधर्म का पालन करना आवश्यक है।

महाशक्ति के रुप में भारत की उभरती संभावनाएं – प्रो. कुसुमलता केडिया

समाज वैज्ञानिक एवं विकास अर्थशास्त्री प्रो. कुसुमलता ने महाशक्ति के रूप में भारत की उभरती संभावनाएं – के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत की भू-राजनैतिक (जिओ पोलिटिकल) स्थिति ऐसी है कि विश्व में निर्णायक सैन्य टकराव की दृष्टि से इसका सर्वाधिक महत्त्व है। अतः संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस दोनों ही इससे स्वाभविक मैत्री संबंध चाहते हैं और चाहते रहेंगे क्योंकि चीन और पाकिस्तान से इन्हें सजग रहना है और चीन से दोनों में से किसी के ऐसे संबंध नहीं है जो मैत्री का आधार बने ! इसके साथ ही भारत की अपार संसाधन क्षमता और साथ ही इसकी सैन्य सामर्थ्य इसे अनिवार्य रूप से विश्व शक्ति के रूप में उभरने की परिस्थिति प्रदान करती है।

परिस्थतियों के कारण ही भारत व्यावाहारिक नीतियां अपनाने को बाध्य है। साथ ही इसकी विराट युवा शक्ति और संसार में सबके प्रति मैत्री-भाव की इसकी परंपरा केवल उन्हीं शक्तियों से इसका टकराव अनिवार्य बनाती है जो इसके साथ जान-बूझ कर टकराने पर उतारू है ! वैसे भी सभ्याताओं के संघर्ष की बात करनेवाले सेमुअल हंटिगटन ने भी हिन्दू भारत को योरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका का स्वाभाविक मित्र लिखा है।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में स्वामी संवित सोमगिरिजी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म की प्रज्ञा की साधना ही राष्ट्र की उन्नति का राजमार्ग है। इस मार्ग पर वीर और विवेकवान नई पीढ़ी चलते हुए तप और पुरुषार्थ के द्वारा राष्ट्र की उन्नति को सुनिश्चित कर सकती है।  अभ्युदय और निःश्रेयस का हमारा सनातन मार्ग समस्त विश्व को अपनी प्रज्ञा से आलोकित करने में समर्थ है उसकी शरण में जाने से सबका कल्याण है।

स्वामी संवित सोमगिरि जी महाराज में तथाज्ञानपीठ फाउंडेशन की ओर से वक्ताओं और कुशल मंच संचालन के लिए स्मृति चिन्ह दे कर सम्मानित किया।

 

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