१९७१ के युद्ध के बाद यहां पर आनेवाले हर एक सैनिक के लिए नाडेश्वरी मां का स्थान अास्था और श्रद्धा का सब से बडा केंद्र बना हुआ है !
नाडेश्वरी माता का मंदिर गुजरात के बनासकांठा के सीमा पर बना है। यह मंदिर आम लोगों के साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सैनिकों के लिए भी आस्था और श्रद्धा का बहुत बडा धर्मस्थल बना हुआ है !
बनासकांठा सीमा पर जब भी किसी सैनिक की ड्यूटी लगती है तो वह ड्यूटी देने से पहले मंदिर में माथा टेक कर ही जाता है ! ऐसी मान्यता है कि मां नाडेश्वरी खुद यहां सैनिकों की जिंदगी की रक्षा करती हैं !
दरअसल, पहले यहां पर कोई मंदिर नहीं था, एक छोटा सा मां का स्थान था, परंतु १९७१ के युद्ध के बाद उस समय के कमान्डेंट ने इस मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर कि खास बात यह भी है कि बीएसएफ का एक सैनिक यहां पुजारी के तौर पर ही अपनी ड्यूटी करता है !
बनासकांठा का सुई गांव जो भारत-पाकिस्तान सीमा पर आखिरी गांव है जहां यह मंदिर स्थित है। यहां से महज २० किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान की सीमा शुरू हो जाती है। यह क्षेत्र बीएसएफ के निगरानी में ही रहता है।
मंदिर के निर्माण की कहानी भी बेहद मनोरंजक है ! १९७१ में पाकिस्तान के साथ लडाई के समय भारतीय सेना की एक टुकडीpn पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गई और इसके बाद वह रास्ता भटक गई क्योंकि रन का इलाका होने की वजह से उन्हें रास्ता भी नहीं मिल रहा था !
कहा जाता है कि खुद कमान्डेंट ने मां नाडेश्वरी से मदद की गुहार लगाई और सकुशल सही जगह पहुंचाने की विनती की तो खुद मां ने दिये की रोशनी के जरिये भारतीय सेना की टुकडी की मदद की और उन्हें वापस अपने बेस कैंप तक लेकर आई ! इस दौरान किसी भी सैनिक को खरोंच तक नहीं आई !
वहां ऐसी मान्यता है कि जब तक इस सीमा पर मां नाडेश्वरी देवी विराजमान हैं किसी भी सैनिक को कुछ नहीं हो सकता ! इस मंदिर के ट्रस्टी खेंगाभाई सोलंकी का कहना है कि १९७१ में जब सैनिक अपना रास्ता भटक गए और पाकिस्तान की सीमा में पहंच गए थे, तब खुद मां ने ही उन्हें रास्ता दिखाया था, तब से यहां पर आनेवाले हर एक सैनिक के लिए मां का स्थान अस्था और श्रद्धा का सब से बडा केंद्र बना हुआ है !
स्त्रोत : आज तक