भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में त्रुटियां रखना, अंग्रेजों का बडा षड्यंत्र ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी, हिन्दू जनजागृति समिति
ग्वालियर (मध्य प्रदेश) : ब्रिटन में धर्म के संदर्भ में कानून चर्चद्वारा बनाए जाते हैं, तो राजनीतिक कानून वहां की संसदद्वारा बनाए जाते हैं ! भारत में ऐसी पद्धति क्यों नहीं अपनाई गई ? ब्रिटन में केवल २ ही राजनीतिक दल हैं, तो भारत में अनेक राजनीतिक दल है। यह सब ब्रिटीशों का षड्यंत्र ही था ! अनेक राजनीतिक दलों के कारण भारतियों में फूट पड़ी है ! इसे देखते हुए यह ध्यान में आता है कि भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में त्रुटियां रखना, अंग्रेजों का ही षड्यंत्र था ! हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा प्रतिपादित किया। ग्वालियर के उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन में आयोजित एक व्याख्यान में वे बोल रहे थे।
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. अनिल मिश्रा, सचिव अधिवक्ता श्री. धीरेन पाल, सभी पदाधिकारी एवं कार्यकारिणी के सदस्य, अधिवक्ता श्री. युवराजसिंह भदौरिया एवं अधिवक्ता श्री. अमित चौहान ने इस व्याख्यान का आयोजन किया। ४० अधिवक्ताओं ने इस व्याख्यान का लाभ उठाया।
सद्गुरु (डॉ.)चारुदत्त पिंगळेजीद्वारा रखे गए अन्य सूत्र . . . .
१. भारत में हमारे देश ने बनाए गए कानून अस्तित्व में है कहां ? भारतीय दंडविधान तो वर्ष १८६० का है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ये सब कानून भारत के क्रांतिकारकों को दंडित करने के लिए बनाए गए थे ! आज भी देश में वहीं कानून चले आ रहें हैं ! संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए जो सुविधाएं दी गई हैं, वैसी बहुसंख्यकों को क्यों नहीं दी गईं ? यह भेदभाव क्यों ? बहुसंख्यकों को भी संरक्षण एवं सभी सुविधाएं मिलनी चाहिए !
२. वर्ष १९५० में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ इस शब्द को अंतर्भूत करने का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि बिना लोगों को विश्वास में लिए, यह शब्द अंतर्र्भूत करना उचित नहीं होगा; परंतु वर्ष १९७६ में आपातकाल के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान में यह शब्द घुसेड़ दिया। यह लोकतंत्र के विरोध में था। किसी भी राजनीतिक दल ने इसका विरोध नहीं किया। हमारी यह मांग है कि, ‘लोकतांत्रिक पद्धति के विरोध में अंतर्भूत किए गए इस शब्द को संविधान से हटा देना चाहिए !’
३. एक प्रयोग में जब अधिवक्ताओंद्वारा उपयोग किए जानेवाले काले कोट का प्रभामंडल नापा गया, तो उससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रक्षेपण होता हुआ दिखाई दिया ! अतः अधिवक्ताओं को ही अब यह सुनिश्चित करना होगा कि क्या काला कोट परिधान करना वास्तव में उचित है ?
अधिवक्ता श्री. अनिल मिश्रा के संपर्क से व्याख्यान का आयोजन
ग्वालियरर उच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. अनिल मिश्रा से सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने भेंट की थी। उस समय ‘लोकतंत्र में विद्यमान दुष्प्रवृत्तियों में होनेवाली बढोतरी’ एवं ‘हिन्दू धर्मपर हो रहे आघात’ इन विषयों पर विचार-विमर्श किया गया था।
इस समय (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने लव जिहाद के संदर्भ में जानकारी दी, साथ ही हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘लव जिहाद’ के संदर्भ में बताया। हिन्दू राष्ट्र स्थापना के लिए अधिवक्ता किस प्रकार से अपना योगदान दे सकते हैं, इसकी जानकारी प्रस्तुत की। उसके पश्चात अधिवक्ता श्री. मिश्रा ने उपर्युक्त व्याख्यान का आयोजन किया था।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात