धर्मनिष्ठ हिन्दू और अधिवक्ताआें के संगठित होने से ही वास्तविक रूप में हिन्दुआें के साथ न्याय होगा ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति
नई देहली : हिन्दू राष्ट्र स्थापना एक ईश्वरीय कार्य है ! अधिवक्ता क़ानूनों के जानकार होते हैं, साथ ही उन्हें उनकी सीमाएं भी ज्ञात होती हैं। वे कानूनों की उपयुक्त शक्ति का उपयोग कर हिन्दुआें की सहायता कर सकते हैं ! हमें सरकार पर वैधानिक पद्धति से दबाव बनाकर हमारी न्याय्य मांगें पूरी कर लेनी चाहिए। सरकार यदि संगठित अल्पसंख्यकों के सामने झुकती है, तो वह संगठित हिन्दुआें के सामने झुककर हिन्दुआें की मांगे भी मान सकती हैं ! इसका अर्थ यह है कि धर्मनिष्ठ हिन्दू और अधिवक्ता यदि संगठित हो गए, तो वास्तविक रूप से हिन्दुआें के साथ न्याय होगा ! हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा प्रतिपादित किया।
हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से नई देहली के ‘भारत सेवाश्रम संघ’ के आश्रम में आयोजित ‘अधिवक्ता शिविर’ के उद्धाटन समारोह में वे बोल रहे थे। इस अवसर पर व्यासपीठ पर ‘भारत सेवाश्रम संघ’ के श्री आत्मज्ञानानंद महाराज, सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं ६८ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक श्री. हरिशंकर जैन, अधिवक्ता श्री. रविशंकर कुमार एवं अधिवक्ता श्री. आर. व्यंकटरमणी उपस्थित थे।
क्या, आपराधिक पृष्ठभूमिवाले सांसदोंद्वारा लोकसभा में बनाए जानेवाले कानून कभी जनहितकारी हो सकेंगे ? – सद्गुरु (डॉ). चारुदत्त पिंगळेजी
धर्म की व्याख्या के अनुसार कानून का उद्देश्य होता है ‘धर्म एवं व्यक्ति की रक्षा करना !’ अपितु आजकल केवल मत जुटानें के लिए ही कानून बनाए जाते हैं ! कर्नाटक में तात्कालीन भाजपा सरकारद्वारा बनाया गया गोहत्याबंदी कानून विद्यमान सत्ताधारी जेडीएस-काँग्रेस ने निरस्त किया, यह इसका उत्तम उदाहरण है ! अधिवक्ता श्री. आर. व्यंकटरमणी ने ‘भारत में विद्यमान छद्म सेक्युलरवाद’ साथ ही ‘धर्मांतर का षड्यंत्र’ इन विषयों पर मार्गदर्शन किया।
जम्मू-कश्मीर का भूमि विषयक कानून, यह एक ‘कानूनद्वारा पुकारा गया जिहाद’ का एक उत्तम उदाहरण ! – अधिवक्ता श्री. अंकुर शर्मा, जम्मू उच्च न्यायालय
जम्मू से आए अधिवक्ता श्री. अंकुर शर्मा ने अपना मनोगत व्यक्त करते हुए कहा,
१. आज भारत की व्यवस्था में ही घुसपैठ हो चुकी है और उसीके माध्यम से भारत में किसी भी प्रकार का राष्ट्रहित का निर्णय लागू करने पर विरोध किया जा रहा है ! आतंकवाद के विरोध में बनाया गया ‘टाडा’ जैसे कठोर कानून को किया गया विरोध, इसका एक उत्तम उदाहरण है ! इसका लाभ आतंकियों को ही हुआ !
२. पूरे विश्व में भारत आतंकवाद से सर्वाधिक त्रस्त देश होते हुए भी भारत का आतंकवादविरोधी कानून विश्व में सर्वाधिक निष्प्रभ है !
३. जम्मू-कश्मीर का संविधान बनाते समय नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को ‘जम्मू-कश्मीर की घटना पीठ में केवल मुसलमान ही होंगे’, ऐसा वचन दिया था ! अतः वहां के कानूनों में केवल मुसलमानों के हितों को ही प्रधानता दी गई। ऐसी स्थिति में वहां के हिन्दुआें के साथ न्याय कैसे हो सकेगा ?
४. वहां की सभी सरकारोंद्वारा इस प्रकार के कानून बनाकर उसकेद्वारा जिहाद को ही बल दिया गया है ! वहां का भूमि से संबंधित कानून इसका उत्तम उदाहरण है ! इस कानून के अंतर्गत मुसलमानों ने वन विभाग की, साथ ही अन्य सरकारी भूमि भी हड़प कर अवैध रूप से नियंत्रण प्राप्त कर अपने नाम कर ली है !
५. उसके बदले में उनसे कर लेकर उसकेद्वारा राज्य में बिजली परियोजना कार्यान्वित की गई। मुसलमानों ने इसका लाभ उठाकर हिन्दुआें की भूमि भी हडप लीं। ‘कैग’ के ब्यौरे के अनुसार उन भूमियों का उस समय का मूल्य २५ कोटि रुपए था। इन भूमियों पर बाहर से मुसलमानों को बुलाकर उन्हें वहां बसाया गया।
६. जब हमने इस संदर्भ में याचिका प्रविष्ट की, तब तात्कालीन मुख्यमंत्री मेहबुबा मुफ्ती ने आदेश देकर मुसलमानों ने यदि हिन्दू बहुसंख्यक क्षेत्र में हिंदुओं की भूमि ली भी होगी तो भी उन्हें वहां से खदेड नहीं देना चाहिए, ऐसा एक आदेश निकाला। आज भी इस संदर्भ में सरकार के विरोध में हमारा संघर्ष चल रहा है !
अधिवेशन में उपस्थित मान्यवर अधिवक्ता !
इस अधिवेशन में सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री. हरिशंकर जैन, अधिवक्त श्री. विष्णु हरि जैन, अधिवक्ता श्रीमती संगीता चौहान, साथ ही उच्च न्यायालय की अधिवक्ता श्रीमती अमिता सचदेवसहित अनेक अधिवक्तागण उपस्थित थे।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात