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सर्वोच्च न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को दी अनुमती

यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है ! अब सांसद ने धर्मशास्त्रानुसार हिन्दू धर्म की परंपराआें के विषय में निर्णय देने हेतु कानून बनाकर पारित करें । यदि आवश्यकता पडें, तो धर्माचार्य की मदत से हिन्दुआें की धार्मिक परंपराआें के विषय में निर्णय लें, एेसी हिन्दुआें की अपेक्षा है ! – सम्पादक, हिन्दूजागृति

सर्वोच्च न्यायालय ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने कहा है कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी। शुक्रवार को अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है। यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है और मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला पढते हुए कहा, ‘धर्म के नाम पर पुरुषवादी सोच ठीक नहीं है। उम्र के आधार पर मंदिर में प्रवेश से रोकना धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है।’

आपको बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है। फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि भगवान अयप्पा के भक्त हिंदू हैं, ऐसे में एक अलग धार्मिक संप्रदाय न बनाएं। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुछेद 26 के तहत प्रवेश पर बैन सही नहीं है। संविधान पूजा में भेदभाव नहीं करता है। माना जा रहा है कि इस जजमेंट का व्यापक असर होगा।

बोर्ड दाखिल करेगा पुनर्विचार याचिका

उधर, त्रावणकोर देवासम बोर्ड के अध्यक्ष ए. पद्मकुमार ने कहा है कि, दूसरे धार्मिक प्रमुखों से समर्थन मिलने के बाद वह इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे।

उच्च न्यायालय ने बैन को कहा था सही

आपको बता दें कि केरल उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में महिलाओं के प्रवेश के बैन को सही ठहराया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश से पहले ४१ दिन के ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और मासिक धर्म के कारण महिलाएं इसका पालन नहीं कर पाती हैं।

सुनवाई के दौरान केरल त्रावणकोर देवासम बोर्ड की ओर से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि दुनियाभर में अयप्पा के हजारों मंदिर हैं, वहां कोई बैन नहीं है, लेकिन सबरीमाला में ब्रह्मचारी देव हैं और इसी कारण तय उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन है, यह किसी के साथ भेदभाव नहीं है और न ही जेंडर विभेद का मामला है।

स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

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