भाजपा की हिन्दुत्वनिष्ठ सरकार सबरीमाला प्रकरण में संसद में कानून बनाए तथा हिन्दू परंपराआें की रक्षा करे !
हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे ने प्रतिपादित किया कि, केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाआें को मंदिर में प्रवेश करने का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है । हम सर्वोच्च न्यायालय का आदर करते हैं; परंतु न्यायालय का यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है । हिन्दू धर्म में महिलाआें को देवी का स्थान दिया गया है तथा उनकी पूजा की जाती है । ऐसा होते हुए भी ‘इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष नौशाद उस्मान खान ने हिन्दू धर्म से संबंधित की गई याचिका के आधार पर हिन्दुआें की ८०० वर्ष पुरानी परंपरा तोडना समझ से परे है ।
उक्त याचिकाकर्ता स्वधर्म की मुस्लिम महिलाआें को मस्जिद में प्रवेश न देने के संबंध में याचिका प्रविष्ट नहीं करता । किसी भी धार्मिक परंपरा के संबंध में धर्मशास्त्र के आधार पर निर्णय होना चाहिए; परंतु दुर्भाग्यवश वैसा होते हुए दिखाई नहीं देता तथा खेदपूर्वक कहना पड रहा है कि यह केवल हिन्दुआें के संबंध में ही होता है । कुछ मास पूर्व मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र स्थित श्री शनिशिंगणापुर के चबूतरे पर महिलाआें को प्रवेश देने का निर्णय दिया; परंतु कुछ तथाकथित आधुनिकतावादियों को छोडकर धर्मपरंपरा माननेवाली आसपास के गांव की हजारों शनिभक्त श्रद्धालु महिलाएं आज भी उस चबूतरे पर प्रवेश नहीं करतीं । उसी प्रकार सबरीमाला मंदिर के संबंध में भी श्रद्धालु महिलाएं धर्मपरंपरा का पालन करेंगी ।
संविधान ने प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है, वैसा ही वह हिन्दुआें तथा उनके मंदिरों को भी है । इस निर्णय के द्वारा हिन्दुआें के धर्मपालन के अधिकार पर आघात किया जा रहा है । सबरीमाला मंदिर के समान देशभर के कुछ निश्चित मंदिरों में ही ऐसे नियम हैं, शेष सभी मंदिरों में महिलाआें को प्रवेश है । तब भी जानबूझकर कुप्रचार किया जा रहा है ।
आज जिन ५ न्यायमूर्तियों ने निर्णय दिया है, उनमें एक महिला न्यायमूर्ति थीं तथा उन्होंने इस निर्णय को विरोध दर्शाया था । इस संबंध में ४ पुरुष न्यायमूर्तियों ने एक महिला न्यायमूर्ति के मत का आदर न करते हुए पुरुषी निर्णय किया, ऐसा कहना जिस प्रकार सें उचित नही, उसी प्रकार मंदिर के संबंध में भी पुरुषी अधिकार कहना योग्य नहीं होगा । इससे पूर्व शाहबानो प्रकरण में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तथा वर्तमान में एट्रोसिटी के संबंध में वर्तमान सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय बदलने हेतु कानून बनाए हैं । श्री. शिंदे ने केंद्र सरकार से कानून बनाने की मांग की है, जिससे हिन्दुआें की धार्मिक परंपराआें में धर्मशास्त्र के आधार पर हिन्दू निर्णय कर पाएं तथा हिन्दू संस्कृति की रक्षा हो सके ।
भारतीय हिन्दू संस्कृति के अनुसार व्यभिचार अनैतिक और दंडनीय ही है !
सर्वोच्च न्यायालय ने कल ही निर्णय दिया है कि ‘विवाहबाह्य संबंध अपराध नहीं है ।’ हिन्दू संस्कृति के अनुसार व्यभिचार अनैतिक तथा दंडनीय है । अमेरिका, चीन, जापान आदि देशों में भी व्यभिचार को अपराध नहीं माना जाता, इसलिए हमें भी उसे अपराध नहीं मानना चाहिए, ऐसा तर्क समझ से परे है । भारत के कानून भारतीय संस्कृति के आधार पर बनने चाहिए । ऐसे निर्णयों के कारण एक प्रकार से व्यभिचार को मान्यता मिलने के समान स्थिति उत्पन्न हो गई है तथा भविष्य में समाज पर इसके गंभीर परिणाम दिखाई देंगे, ऐसा भय भी श्री. रमेश शिंदे ने व्यक्त किया ।