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हर हिन्दू संपूर्ण विश्‍व की ओर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ही देखता है – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी

हिन्दू जनजागृति समिति का ‘हिन्दू राष्ट्र संपर्क अभियान’ !

सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी

डाबरा (मध्य प्रदेश) : हिन्दुआें को धर्मनिरपेक्षता सिखाने की आवश्यकता नहीं है ! हिन्दू मूलरूप से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (अर्थात संपूर्ण पृथ्वी ही एक परिवार है), इस भाव से संपूर्ण विश्‍व की ओर देखता है ! हर हिन्दू परिवार में यह संस्कार दिया जाता है। हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा प्रतिपादित किया।

डाबरा (दतिया) की ‘दबंग दुनिया’ इस समाचारवाहिनी के पत्रकार श्री. मनोज चतुर्वेदीद्वारा आयोजित बैठक में वे बोल रहे थे। श्री. चतुर्वेदी एवं श्री. अनिल जैन ने बैठक में उपस्थित सभी का स्वागत किया और उन्हींके हाथों मान्यवरों को सम्मानित किया गया।

सद्गुुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने अपने मार्गदर्शन में आगे कहा कि,

१. ‘सेक्युलॅरिजम’ (धर्मनिरपेक्षता) यह शब्द युरोप से आया है। वहां ईसाई पंथ के अंतर्गत प्रोटेस्टंट, कैथॉलिक और अन्य समूहों में सदैव झगडे होते थे। उनमें समन्वय बनाए रखने के लिए पहली बार ‘सेक्युलॅरिजम’ शब्द का प्रयोग किया गया था !

२. हिन्दुआें ने सदैव सभी पंथों का सम्मान ही किया है ! हिन्दुआें ने कभी किसी के साथ अत्याचार नहीं किए; इसलिए ‘धर्मनिरपेक्षता’ इस शब्द की भारत में कोई आवश्यकता ही नहीं है ! हिन्दुआें में केवल धर्मबंधुत्व जागृत करना आवश्यक है तथा उसके लिए हर हिन्दू ने साधना करना आवश्यक है। धर्मशिक्षा लेकर धर्म को समझना आवश्यक है !

क्षणचित्र : श्री. मनोज चतुर्वेदी ने समाचारवाहिनी ‘दबंग दुनिया’ के लिए ‘हिन्दू राष्ट्र एवं धर्मशिक्षा की आवश्यकता’ इस विषय पर सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी से भेंटवार्ता की !

धर्मनिरपेक्ष भारत में अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की जाना संविधान के विरोध में है ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी

गुना (मध्य प्रदेश) : भारत सचमुच धर्मनिरपेक्ष देश है, तो उसका अर्थ यहां के सभी पंथ एकसमान हैं, तो फिर कुछ ही विशिष्ट पंथों को विशेष श्रेणी प्रदान करने के लिए अल्पसंख्य आयोग की स्थापना क्यों आवश्यक है ? ऐसा करना तो ‘धर्मनिरपेक्ष’ इस शब्द के विरोध में है। ‘सेक्युलॅरिजम’ को ‘पंथनिरपेक्ष’ कहा गया है, ‘धर्मनिरपेक्ष’ नहीं !

सद्गुरु (डॉ.) पिंगळे ने आगे कहा, ‘‘हार्वर्ड विश्‍वविद्यालय ने धर्म एवं पंथ इन शब्दों की व्याख्या की है। धर्म की व्याख्या करने पर उसमें केवल सनातन हिन्दू धर्म ही अंतर्भूत होता है तथा उन्होंने उसको स्वीकार किया है। पंथ मनुष्यनिर्मित हैं; परंतु धर्म अनादि है। भारत में सेक्युलॅरिजम के नाम पर हिन्दुआें को धर्मशिक्षा से वंचित रखा गया है। यहां के हिन्दुआें को धर्मशिक्षा देने के लिए प्रयास आवश्यक हैं !’’

श्री. प्रमोद सक्सेना ने सद्गुुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी का परिचय करवा दिया। सद्गुुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने उपस्थित धर्मप्रेमियों की शंकाआें का निराकरण किया। बैठक में उपस्थित सभी ने सनातनद्वारा प्रकाशित ग्रंथ एवं सात्त्विक उत्पादों का लाभ उठाया।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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