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मंदिर आैर धार्मिक संस्था महासंघ की प्रेस विज्ञप्ति
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चारा छावनियों के लिए धर्मादाय आयुक्तों को मंदिर की ही निधि क्यों ? चर्च और मस्जिदों से निधि जुटाने से धर्मादाय आयुक्त क्यों घबराते हैं ?
मुंबई : हिन्दुत्व का नाम लेकर सत्ताधारी शासन प्रतिदिन विविध शासकीय योजनाआें के माध्यम से हिन्दुआें के मंदिरों का पैसा हडपने में जुटा है । शासन हिन्दुआें के मंदिर को दूध देनेवाली गाय समझ रही हैं । आंतरजातीय विवाह के लिए मंदिरों का पैसा, जलयुक्त भूमि योजना के लिए मंदिरों का पैसा, सूखा-निवारण के लिए मंदिरों का पैसा, मुख्यमंत्री सहायता निधि के लिए मंदिरों का पैसा, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की यात्रा के लिए भी मंदिरों का ही पैसा; यह सब चल क्या रहा है ? शासन आज चारा छावनी हेतु मांग रहा है, कल विधायकों-सांसदों की आय के लिए मांगेगा और परसों चुनावों के लिए भी मांग सकता है ! हिन्दू भाविक, शासन चलाने के लिए मंदिरों में धन अर्पण नहीं करते ! धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटनेवाले शासन को मंदिरों का पैसा हडपते शर्म कैसे नहीं आती ? धर्मादाय आयुक्तों ने घोषित किया है कि अब वे मंदिरों की निधि का उपयोग चारा छावनियों के लिए करनेवाले हैं; क्या वे चर्च और मस्जिदों से निधि जुटाने के लिए घबराते हैं ? ऐसा सवाल ‘मंदिर और धार्मिक संस्था महासंघ, महाराष्ट्र’ के समन्वयक श्री. सुनील घनवट ने किया है ।
पिछले काँग्रेस शासन के काल में चारा छावनियों के नाम पर करोडों रुपयों का भ्रष्टाचार हुआ था । इस प्रकरण में राज्य शासन ने क्या कार्यवाही की ? आज तक मंदिरों के सरकारी विश्वस्तों द्वारा किए भ्रष्टाचारों का केवल ‘पूछताछ का तमाशा’ हो रहा है । भगवान का धन लूटनेवाले खुलेआम घूम रहे हैं ! इस विषय में कुछ भी न करते हुए मंदिरों का धन लूटनेवाला यह निर्णय अत्यंत निषेधार्ह है । सरकार अब हिन्दुआें के संयम की परीक्षा न ले और तत्काल यह निर्णय रहित करे । अन्यथा राज्यभर में इस निर्णय का और शासन के विरोध में ‘कोई भाविक मंदिरों में अर्पण न करे’, इसके लिए अभियान चलाया जाएगा, इसके साथ ही सर्व हिन्दू भाविक रास्ते पर उतरकर इस विरोध में आंदोलन करेंगे, ऐसी चेतावनी भी दे रहे हैं । भले ही कुछ भी हो, मंदिरों की निधि का उपयोग करने की भाषा की जाती है । ‘सबका साथ, सबका विकास’ कहेंगे और केवल मंदिरों का ही पैसा लेंगे, यह सब अब नहीं चलेगा । मंदिरों में हिन्दू भाविक समाजकार्य करने हेतु नहीं, अपितु धर्मकार्य के लिए धन अर्पण करते हैं । मंदिरों का धन धर्मकार्य के लिए ही उपयोग किया जाना चाहिए । अल्पसंख्यकों के धार्मिक कार्यों के लिए सरकार की तिजोरी खोल दी जाती है; परंतु मंदिरों के स्थान पर आवश्यक वे मूलभूत सुविधाआें की आपूर्ति नहीं की जाती । तब सरकार अपने हाथ खींच लेती है । केवल संपन्न मंदिरों का पैसा लेना, परंतु जिन मंदिरों के पास पैसा नहीं है, उन्हें उपेक्षित रखना है, यह सरकार की दुहरी चाल है । इसके लिए शीघ्र ही राज्यभर में बैठकें लेकर आंदोलन किए जाएंगे, ऐसा निर्णय ‘मंदिर एवं धार्मिक संस्था महासंघ, महाराष्ट्र’की ओर से सूचित किया गया है ।