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लूट के बाद महिलाओं पर बलात्कार करता था बांग्लादेशी गैंग, डर से पुलिस को नहीं बुलाते थे पीडित

भारत-बांग्लादेश सीमा पर कोई भी व्यक्ति गैर-कानूनी तरीके से आर-पार नहीं जा सकता। परंतु देहली पुलिस ने जो बांग्लादेशी लुटेरे पकडे हैं, उनका नेटवर्क जानकर आप हैरान रह जाएंगे ! इनके पास भारत का कोई भी दस्तावेज नहीं है, परंतु ये वारदात को अंजाम देकर इस तरह से बांग्लादेश निकल जाते हैं जैसे इनके पास लीगल वीजा और पासपोर्ट सब कुछ हो !

यह बांग्लादेशी गैंग लूट के बाद महिलाओं की इज्जत से खेलता था। गैंग के सदस्य लूट के बाद रेप की वारदात को इसलिए अंजाम देते थे ताकि पीडित परिवार अपमान के डर से पुलिस को लूट या डकैती की सूचना न दे। सामने आया है कि ऐसे परिवार पुलिस को केवल हल्की-फुल्की चोरी की ही जानकारी देते थे !

देहली पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त राजीव रंजन के अनुसार, यह गैंग देहली-एनसीआर के अलावा गोवा, आगरा, कोटा, गुजरात व राजस्थान सहित करीब दर्जनभर राज्यों में सक्रिय रहा है। गैंग के सदस्य बिना किसी रोक-टोक के बांग्लादेश से भारतीय सीमा में प्रवेश कर जाते थे। इसके बाद वे अपना टारगेट तय कर वहां की तीन-चार बार रेकी करते थे।

वारदात को अंजाम देकर वे बडी आसानी से बांग्लादेश चले जाते थे। यह गैंग एक राज्य में महीने भर तक किराये के मकान में रहकर लगातार वारदात करता रहता है। जल्दी-जल्दी ठिकाना बदलने की वजह से ये न तो स्थानीय लोगों में पहचाने जाते हैं और न ही वहां की पुलिस इनका अता-पता लगाने में सक्षम होती है। देहली में इस गैंग के सदस्य सीमापुरी, लोनी और सोनिया विहार जैसे इलाकों में झुग्गी किराये पर लेकर रहते हैं !

शुक्रवार रात हुई मुठभेड में दो बदमाशों को लगी गोली, तीन काबू

क्राइम ब्रांच को सूचना मिली थी कि तैमूर नगर में बांग्लादेशी लुटेरों का एक गैंग वारदात करने के लिए आ सकता है। पुलिस ने लुटेरों के आने से पहले ही उन्हें पकड़ने के लिए जाल बिछा दिया था। रात को पुलिस ने जब उन्हें ललकारा तो गैंग ने पुलिस पर गोली चला दी। मुठभेड़ में गैंग के दो सदस्यों को गोली लगी है।डीसीपी जी. रामगोपाल नाइक ने बताया कि पकड़े गए बांग्लादेशी लुटेरों की पहचान फारुख, जाकिर, इंदादुल, असलम और कबीर के तौर पर हुई है।

हुलिया हमारे जैसा है और आम लोगों की तरह हिंदी बोलते हैं

पुलिस का कहना है कि बांग्लादेशी गिरोह के सदस्यों का हुलिया भारतीय नागरिकों से मेल खाता है।स्थानीय लोगों को उन पर शक न हो, इसके लिए वे अच्छे से हिंदी बोलना सीख लेते हैं। इनका पहनावा भी भारतीयों जैसा होता है। इस वजह से स्थानीय लोग इन्हें रहने के लिए मकान आदि किराये पर दे देते हैं। वारदात के बाद ये चुपके से खिसक लेते हैं। यह गैंग बॉर्डर के उस हिस्से से बांग्लादेश चला जाता है, जहां सीमा पर घनी आबादी बसती है। वहां के लोगों से जान पहचान होने के कारण इन्हें आने-जाने में कोई खास दिक्कत नहीं आती !

स्त्रोत : अमर उजाला

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