‘गुरुद्वारा जन्म स्थान’ को ‘गुरुद्वारा ननकाना साहिब’ भी कहा जाता है। इस जगह का नाम सिखों के पहले गुरू, गुरू नानक जी के जन्म के बाद पडा। आज के समय में ये जगह ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखती है। इस शहर की जनसंख्या की बात करें तो उनकी तादाद ७० हजार के करीब बताई जाती है। ये पाकिस्तानी पंजाब के ‘ननकाना साहिब’ शहर में है। इसका पुराना नाम ‘राय-भोई-दी-तलवंडी’ था। यहां पर विश्व भर के सिख आते हैं। (image: wikipedia)
‘गुरुद्वारा पंजा साहिब’ पाकिस्तान के हसन अदबाल शहर में है। हसन अदबाल, पाकिस्तानी पंजाब में है। इस गुरुद्वारे का महत्व गुरू नानक जी के पंजे के निशान के लिए है। गुरु नानक देव जी अपनी एक यात्रा के दौरान यहां रुके थे। जिस दौरान एक बार लडाई हुई, जिसमें उन्होंने अपने हाथ से चट्टान को रोका था। तब उनके हाथ की छाप पत्थर पर पड गई थी। (image: wikipedia)
‘गुरुद्वारा डेरा साहिब श्री गुरू अर्जन देव’ वॉल सिटी, लाहौर, पाकिस्तान में है। ये वहां की शाही मस्जिद के पीछे है। कहा जाता है कि यहां पांचवे गुरू रावी नदी में गायब हो गए थे। जिसे बाद उनके बेटे गुरू हरगोबिंद १६१९ में इस जगह गए। जहां उन्होंने एक चबूतरे नुमा जगह बनाई। फिर बाद में महाराजा रंजीत सिंह ने यहां एक छोटा, खूबसूरत सा गुरुद्वारा बनवाया। इस जगह को १९०९ में बढ़ाया गया। (image: sikhiwiki।org)
‘गुरुद्वारा रोरी साहिब’ पाकिस्तान के एमिनाबाद में है। ये वहां के तलब गांव के नज़दीक है। एमिनाबाद नॉर्थ लाहौर से ५५ किलोमीटर और साउथ लाहौर से १५ किलोमीटर दूर पडता है। परंपराओं के अनुसार, इस शहर में हुई तोडफोड के बाद गुरू नानक यहां ‘भाई लाओ’ के साथ ठहरे थे।
‘गुरुद्वारा रोरी साहिब’ के बनने के इतिहास की बात करें तो कहा जाता है कि १५२१ में जब बाबर अपनी सेना से साथ एमिनाबाद (पंजाब) में आया तो यहां गुरू नानक देव भी मौजूद थे। इस दौरान बहुत से लोगों को हिरासत में लिया गया, जिसमें से एक गुरू नानक देव भी थे। हिरासत में लिए जाने के समय वे वहां एक चमकते हुए पत्थर के टुकडे पर बैठे थे। और गुरुद्वारा इसी पत्थर पर बना है। (image: sikhiwiki।org)
‘गुरुद्वारा कियारा साहिब’ पाकिस्तानी पंजाब के मोहल्ला कियारा साहिब, रेलवे रोड के नजदीक है। जनम साखी के अनुसार, गुरू नानक जी ने किशोरावस्था में मवेशियों का काम भी किया था। जिस दौरान जानवर एक खेत में चले गए थे। जिसपर पटवारी ने खेत के मालिक से शिकायत की। पर जब वो खेत देखने आया तो, जिस हिस्से में जानवर खेत में गए थे, उस हिस्से में ज्यादा हरियाली थी। ये गुरुद्वारा उसी खेत में है। १९४७ में पार्टिशन के बाद ये पाकिस्तान वक्फ बोर्ड के तहत चला गया। (image: sikhiwiki।org)
‘गुरुद्वारा करतार पुर साहिब’ प्रथम गुरु, गुरुनानक देव जी का निवास स्थान था। यह पाकिस्तान के नारोवाल जिले में है, जो पंजाब मे आता है। यह जगह लाहौर से १२० किलोमीटर दूर है। गुरू नानक जी ने अपनी जिंदगी के आखिरी लगभग साढे १७ साल यहीं गुजारे थे। उनका सारा परिवार यहीं आकर बस गया था। उनके माता-पिता और उनका देहांत भी यहीं पर हुआ। बाद में उनकी याद में यहां पर एक गुरुद्वारा बनाया गया। इसे ही करतारपुर साहिब के नाम से जाना जाता है। (image: wikipedia)
‘गुरुद्वारा छोटा ननकियाना’ पाकिस्तानी पंजाब के दिपालपुर में ओकारा रोड पर मौजूद है। दिपालपुर शहर गुरुद्वारे के साथ साथ ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। कहा जाता है एक समय में इस जगह को पंजाब की राजधानी भी कहा जाता था। माना जाता है यहां गुरू देव जी एक सूखे पीपल के पेड, के नीचे रहे थे, जो बाद में हरा हो गया था। विश्वास है कि जो पीपल का पेड आज वहां है। वो वही पेड है ! (image: google)
ऊपर बताए गए गुरुद्वारों के अलावा पाकिस्तान में और भी कई गुरद्वारे हैं। जो इस तरह हैं- गुरुद्वारा सच्चा सौदा। गुरुद्वारा खरा साहिब, ये Mattoo Bhaie Key में है। गुरुद्वारा बाबा भूमन शाह, ये भूमन शाह जगह पर ही है। भाई जोगा सिंह, ये पेशावर में है। गुरुद्वारा बेबे नानकी, ये डेरा चहल में है, एक गुरुद्वारा Quetta में है। एक गुरुद्वारा अब्बोत्ताबाद में भी है। गुरुद्वारा Chhewin (छठा) पथशानी, ये पधाना में है। अली बेग गुरुद्वारा, अली बेग में ही है। गुरुद्वारा शहीद बाबा सिध साऊं रांधवा, ये पखोके डेरा बाबा नानक में है। इसके अलावा एक और गुरुद्वारा रावलकोट भी है। (IMAGE: गुरुद्वारा जन्म स्थान)
स्त्रोत : न्यूज 18