एक राम मंदिर के निर्माण के लिए यदि इतना लंबा और व्यापक संघर्ष करना पडता हो, तो रामराज्य की स्थापना हेतु और कितने गुना प्रयास करने पडेंगे ?
‘नरेंद्र मोदी यदि सत्ता में आते ही राम मंदिर के प्रश्न का निराकरण करते, तो उन्हें करोडों हिन्दुआें की शुभकामनाएं प्राप्त होती; परंतु अभी भी प्रभु श्रीराम तंबू में ही कैद होने से हिन्दुआें के मन में क्षोभ है ! यह क्षोभ इसलिए है कि नरेंद्र मोदी वाराणसी जाकर संत कबीरजी के मगहर आदि स्थान का अवलोकन करते हैं; परंतु उनके कदम कभी अयोध्या की दिशा में नहीं मुडते ! अयोध्या-जनकपुरी बससेवा को हरी झंडी दिखाने के लिए उन्हें जनकपुर सुविधाजनक लगता है; परंतु अयोध्या नहीं ! किसी भी आस्थावान हिन्दू के मन में ‘मां गंगा ने बुलाया है’ कहनेवाले मोदी को क्या अयोध्या के प्रभु श्रीरामचंद्र की पुकार नहीं सुनाई देती ?, यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है ! कुछ वर्ष पहले ‘स्वच्छता अभियान’ के संदर्भ में टिप्पणी करते हुए मोदीजी ने ‘पहले शौचालय बाद में देवालय’, ऐसा वक्तव्य दिया था ! वास्तव में इसीसे ही प्रधानमंत्री मोदी की प्रधानता दिखाई दी थी। ‘विकासपुरुष’ के रूप में अपनी प्रतिमा बनाने की होड में हिन्दुआें की धार्मिक भावनाआें का अनादर और अपमान तो नहीं हो रहा है न ?, इसकी ओर भी प्रधानसेवक को ध्यान देना चाहिए, ऐसी जनता की इच्छा है !
कुल मिला कर एक बात स्पष्ट होती है कि, ‘अभीतक स्वयं को हिन्दुत्वनिष्ठ कहलानेवाले राजनीतिक दलों ने और संगठनों ने हिन्दुत्व के सूत्र को अपने हाथ में लिया है, तो वह केवल अधिकांश राजनीतिक उद्देश्य के कारण ही लिया है ! यह ‘राजनीतिक हिन्दुत्व’ हिन्दुआें को कभी भी शाश्वत रूप से जोड कर नहीं रख सकता, अपितु केवल ‘सनातन धर्म से बंधा हुआ हिन्दुत्व’ ही देश को संगठित रख कर उसे वैभव के शिखर तक पहुंचा सकता है !
एक राम मंदिर के निर्माण के लिए यदि इतना लंबा और व्यापक संघर्ष करना पडता हो, तो रामराज्य की स्थापना हेतु और कितने गुना प्रयास करने पडेंगे ?’
– श्री. चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था (१ दिसंबर २०१८)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात