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हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आग्रेवाडी (तहसिल लांजा, जिला रत्नागिरी, महाराष्ट्र) में प्राथमिक चिकित्सा शिविर संपन्न !

भीषण संकटकाल का सामना करने के लिए स्वयं प्राथमिक चिकित्सा सीखकर आत्मनिर्भर बनना, यही राष्ट्रीय कर्तव्य ! – डॉ. (श्रीमती) साधना जरळी

लांजा : आनेवाला भीषण संकटकाल प्राकृतिक आपदाओं से भरा हुआ होगा एवं उसका सामना करने के लिए और स्वयं की रक्षा के लिए प्राथमिक चिकित्सा सीखना आवश्यक है। नित्य जीवन में जलना, खरोंच आना, काटना, आग, दुर्घटना स्थल पर घायलों की सहायता करना जैसे अनेक प्रसंगों में हमें प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है। युद्धकाल में नागरिक एवं सैनिक इस राष्ट्रीय संपत्ति की जीवितहानि को रोकने के लिए संकटकालीन प्राथमिक चिकित्सा दल बनाकर हम निश्‍चित रूप से इस राष्ट्रनिर्माण कार्य में सहभागी हो सकते हैं ! हम सभी को स्वयंसिद्ध बनने के लिए इस शिविर से प्राथमिक चिकित्सा की विविध पद्धतियां सीखकर उसे दूसरों को भी सिखानी चाहिए। डॉ. (श्रीमती) साधना जरळी ने ऐसा आवाहन किया। यहां के श्री गणेश मंगल कार्यालय में आयोजि प्राथमिक चिकित्सा शिविर में वो मार्गदर्शन कर रही थी।

इस अवसर पर डॉ. (श्रीमती) साधना जरळी ने ‘मौलिक प्राणरक्षा सहायता’ इस विषय पर, तो ‘आंतरिक रक्तस्राव एवं प्राथमिक चिकित्सा’ इस विषय पर डॉ. (श्रीमती) गौरी याळगी एवं श्री. बापूसाहेब पाटिल ने मार्गदर्शन किया। ७० से भी अधिक धर्माभिमानियों ने इस शिविर का लाभ उठाया।

इस शिविर में मौलिक प्राणरक्षा सहायता (Basic Life Support) के अंतर्गत शिविरार्थियों के हृदय-श्‍वसन पुनर्जीवन तंत्र (Cardio-Pulmonary Rususcitation) का प्रात्यक्षिक दर्शाया गया। शिविरार्थियों ने उत्साह के साथ रोगी का छातीदाबन तंत्र सीख लिया, साथ ही रोगियों की जांच कैसी की जाती है ? आंतरिक रक्तस्राव एवं उसकी प्राथमिक चिकित्सा, स्ट्रेचर सिद्ध कर किसी रुग्ण को कैसे ले जाया जाता है, इसका भी प्रात्यक्षिक दर्शाया गया। इस शिविर का सूत्रसंचालन कु. श्रृती मांडवकर ने किया एवं श्री. विनोद गादीकर ने शिविर का उद्देश्य बताया।

इस अवसर पर रत्नागिरी के श्री. बंडू चेचरे एवं लांजा के श्री. श्रीराम कांबळे ने ईश्‍वर की कृपा से एवं प्राथमिक चिकित्सा सीखने से एक प्रत्यक्ष दुर्घटना के समय दुर्घटनाग्रस्त लोगों की सहायता करना संभव हुआ उसके अनुभव शिविर में सभीं के सामने प्रस्तुत किये !

अभिप्राय

१. डॉ. संतोष नाणोस्कर, रत्नागिरी : ‘मैं भी ऐसा प्रशिक्षण वर्ग ले सकता हूं’, ऐसा आत्मविश्‍वास मुझ में बढा ! अब मैं रत्नागिरी में ऐसा ही एक प्रशिक्षण वर्ग आरंभ करने की दृष्टि से प्रयास करूंगा !

२. श्री. विनायक फाटक, देवरुख : इस वर्ग के कारण निश्‍चित रूप से क्या कृती करनी है, इसकी शिक्षा मिली !

३. श्री. मोहन बेडेकर, रत्नागिरी : प्रत्यक्ष घटना के समय हम केवल दर्शक बन जाते हैं; परंतु इसके आगे हम दूसरों की सहायता कर सकते हैं, ऐसा हम में आत्मविश्‍वास उत्पन्न हुआ !

४. श्री. सुनील पाध्ये, नाटे : प्राथमिक चिकित्सा सीखने से भले हम किसी के प्राण नहीं बचा सकेंगे; परंतु यदि ईश्‍वर को हमें माध्यम बनाना है, तो हमसे अल्प मात्रा में ही क्यों न हो; परंतु समाजऋण चुकाया जा सकेगा !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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