अधिवक्ताआें ने अपने सामने ईश्वर प्राप्ति का लक्ष्य रखकर साधना के रूप में वकालत करनी चाहिए ! – अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर, अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद
रामनाथी, (गोवा) : हिन्दू धर्म के विरोध में होनेवाली घटनाओं के संदर्भ में केवल याचिकाएं प्रविष्ट न कर एक अधिवक्ता के रूप में कुल मिलाकर हिन्दुत्व का कार्य कैसे आगे बढेगा, इसके लिए हमारे प्रयास होने चाहिए ! आजकल समाज में एक हिन्दूविरोधी लहर आ गई है। हमें इस लहर को बदलनेवाली हिन्दू लहर बनानी है और इसके लिए हमें प्रयास करने हैं। इस कार्य को करते समय मन को आनेवाली शिथिलता को दूर करने के लिए साधना कैसे आवश्यक है, इसका भी अनुभव करना चाहिए। इसके लिए अधिवक्ताओं ने अपने सामने ईश्वर प्राप्ति का लक्ष्य रख कर एक साधना के रूप में वकालत करनी चाहिए ! हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने ऐसा प्रतिपादित किया।
सनातन के रामनाथी, गोवा आश्रम में २३ दिसंबर को हिन्दू विधिज्ञ परिषद की ओर से आयोजित राष्ट्रीय स्तर के पंचम राष्ट्रीय अधिवक्ता अधिवेशन का आरंभ किया गया। आरंभ में शंखनाद एवं वेदमंत्रपठन के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री. विष्णु शंकर जैन, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री. अमृतेश एन. पी., अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर एवं हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता संगठक अधिवक्ता श्री. नीलेश सांगोलकर की उपस्थिति में दीपप्रज्वलन कर शिविर का भावपूर्ण वातावरण में प्रारंभ हुआ। इस अवसर पर अधिवेशन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए अधिवक्ता श्री. इचलकरंजीकर बोल रहे थे। इस अधिवेशन में महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक एवं तेलंगना राज्य के ४० अधिवक्ताओं ने सहभाग लिया। २५ दिसंबर को इस अधिवेशन का समापन होगा।
इस अवसर पर हिन्दू राष्ट्र स्थापना की मौलिक संकल्पना, साथ ही हिन्दू राष्ट्र में राज्यव्यवस्था कैसी होगी ? आदि विषयों के संदर्भ में जानकारी देनेवाली ध्वनिचित्रचक्रिका दर्शाई गई।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का संदेश
हिन्दू राष्ट्र के संदर्भ में साधना का महत्त्व ध्यान में लें !
पंचम राष्ट्रीय अधिवक्ता शिविर में भारतभूमि के सुपुत्र संगठित हो रहे हैं, यह सभी के लिए आनंददायक घटना है। हिन्दू राष्ट्र स्थापना का कार्य करने के लिए शारीरिक एवं वैचारिक क्षमता के साथ आध्यात्मिक बल होना भी आवश्यक होता है और केवल साधना से ही स्वयं में साधना का बल बढाया जा सकता है !
१. हिन्दू राष्ट्र स्थापना कार्य में साधना के रूप में सहभागी हों !
रात में जब अंधेरा होता है, तब हमने सूर्योदय शीघ्र हो; इसके लिए चाहे कितने भी प्रयास किए, तो भी सूर्योदय शीघ्र नहीं होता, वह निर्धारित समय में ही उदीत होता है। इसे कालमहिमा कहते हैं ! इस कालमहिमा के अनुसार भले हमने कुछ नहीं किया, तो भी वर्ष २०२३ में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने ही वाली है !
इससे किसी को ऐसा लगेगा कि यदि ऐसा है, तो हम उसके लिए प्रयास क्यों करें ? इसका उत्तर यह है कि इसके कारण हमारी साधना होकर हम जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त हो सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने केवल अपनी करांगुली के बल पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और तब गोप-गोपियों ने पर्वत के नीचे केवल अपनी लाठियां लगाईं। हमारा भी कार्य इतना ही है, इसे सभी को ध्यान में लेना चाहिए !
२. साधना के पश्चात ही ईश्वर हमसे हिन्दू राष्ट्र स्थापना का कार्य करवा कर लेंगे !
हिन्दू राष्ट्र स्थापना के लिए मैं कुछ करूंगा, यह विचार अयोग्य होता है; क्योंकि वह स्वेच्छा होती है। इस स्वेच्छा में अहंभाव होता है। जहां हम हमारा प्रारब्ध नहीं बदल सकते, हमारी स्वेच्छा के कारण किसी वृक्ष का पत्ता भी नहीं हिल सकता, तो क्या हम हिन्दू राष्ट्र स्थापना का कार्य कर सकेंगे ? केवल ईश्वर ही इस कार्य को कर सकते हैं ! हमने यदि कार्य को साधना से जोडा और स्वयं में ईश्वर के प्रति भाव उत्पन्न किया, तो ईश्वर कदम-कदम पर हमारा मार्गदर्शन कर एवं हमें आवश्यक शक्ति प्रदान कर हमारेद्वारा यह कार्य करवा कर लेते हैं।
धर्मबंधुओं, हिन्दू राष्ट्र स्थापना के संदर्भ में साधना के इस महत्त्व को ध्यान में लें एवं स्वयं साधना कर ईश्वर की कृपा संपादन करें !
– परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात