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‘लिव इन रिलेशनशिप’ उचित अथवा अनुचित ?


एकत्र कुटुंबपद्धति, एक सुदृढ आधारस्तंभ है, जो भारत छोडकर पूरे विश्वमें अन्य कहीं नहीं है । किंतु, आज इसी भारतमें हिंदू संस्कति  एवं परंपराओंकी धज्जियां उड रही हैं । जो हमारे गौरवस्तंभ थे, वे धराशायी होते हुए दिखाई दे रहे हैं । ऐसी स्थितिमें ‘लिव इन रिलेशनशिप’ उचित है अथवा अनुचित ?’ प्रस्तुत है इस विषयपर प्रकाश डालनेवाला लेख !

 

१. दूरदर्शनप्रणालोंपर विज्ञापनोंके माध्यमसे किया जानेवाला महिलाओंका निर्लज्ज अंग-प्रदर्शन !

        ‘पहले भारतीय नारी पतिव्रता एवं पवित्रताकी प्रतीक मानी जाती थी । उसके लिए उसका शील प्राणोंसे भी अधिक महत्त्वपूर्ण था । पहलेकी नारियोंको लगता था कि ‘प्राण देकर भी अपने शीलकी रक्षा करूंगी’ । किंतु, आज वैसी स्थिति नहीं है ! दूरदर्शनप्रणालपर आजकल क्या दिखाई देता है  ? एक स्प्रे मारनेवाले के पीछे २५ से ३० युवतियां दौड पडती हैं । वे अपने शरीरपरसे कपडे उतारकर फेंक देती हैं तथा उस युवकके शरीरसे अजगरकी भांति लिपट जाती हैं । प्रत्येक विज्ञापनमें यही दृश्य है ! फिर वह विज्ञापन दाढीका हो अथवा ‘ब्लेड’, ‘क्रीम’, अंतर्वस्त्र, गाडी, चप्पल किसीका हो !

 

२.  … तो भविष्यमें ‘रखैल’ संस्कृति होगी !

        पहले ‘लिव इन रिलेशनशिप’जैसे कृत्योंको ‘रखैल रखना’ कहा जाता था । समाजमें ऐसे आचरणोंको प्रतिष्ठा नहीं थी । किंतु, आज बडी तेजीसे इस दृश्यमें परिवर्तन हो रहा है । पहले हमारी ‘मां संस्कृति’ थी और अब…!

 

३. दूरदर्शनप्रणालोंपर धारावाहिक देखनेसे तथा पाश्चात्योंका अंधानुकरण करनेसे स्त्रियोंकी नैतिकताका पतन !

        अब परिवार एवं पतिव्रता, ये निरर्थक कल्पनाएं प्रतीत होने लगी हैं । पुरुष जैसे मित्र बदलते हैं, अब महिलाएं भी उसी प्रकार मित्र बदलने लगी हैं । किसी महिलाके मित्र न हों, तो उसे गंवारू समझा जाता है । मित्रोंकी संख्या जितनी अधिक, वह उतनी आधुनिक !

        पहले शरीरको खुला रखकर पुरुषोंको आकर्षित करना, वेश्याओंका स्वभाव था । दूरदर्शनप्रणाल देखकर हमारी माताएं बौरा गई हैं तथा स्त्रियां बिगड गयी हैं ! अब स्त्रियोंद्वारा पुरुषोंपर बलात्कार किए जानेके समाचार आने शेष हैं ।

 

४. ‘लिव इन रिलेशनशिप’के समर्थक निम्नांकित प्रश्नोंके उत्तर दें !

        आज पश्चिमी देशोंको हिंदू संस्कृतिकी श्रेष्ठता ध्यानमें आ रही है । इसके विपरीत, अधिकतर भारतीयोंको लगता है कि पाश्चात्योंके अंधानुकरणका अर्थ है – आधुनिकता ! इसलिए ये पाश्चात्यवादी भारतीय लोग हिंदू संस्कृतिको तुच्छ समझ रहे हैं । अतः, ‘लिव इन रिलेशनशिप’का समर्थन कर, जबतक एक-दूसरेसे बनती है, तबतक साथ-साथ रहनेवालोंसे निम्नांकित प्रश्न करें !

अ. इस संबंधसे उत्पन्न अपनी संतानका (नहीं बच्चेका) दायित्व कैसे स्वीकार करेंगे ?

आ. वह बच्चा ‘मां’ कहते हुए ‘जन्मदात्री’की ओर अंगुली दिखा सकेगा क्या ?

इ. इस संबंधसे जन्मे बच्चे-बच्चियां इस स्त्रीको जन्मदात्री ‘मां’ कहें अथवा अपने बापकी ‘रखैल’ कहें ?

ई. जबतक एक-दूसरेसे बनती है, तबतक एकत्र रहकर उत्पन्न बच्चेका दायित्व निश्चितरूपसे कौन लेगा ? ‘लिव इन’ का पुरुष अथवा स्त्री ?

उ. ‘लिव इन रिलेशनशिप’से जन्मे खच्चरका क्या करें ?

ऊ. भविष्यमें दोनोंमें मनभेद हुआ, दोनों विभक्त हुए, दोनोंने नए साथी ढूंढ लिए, पुनः नए ढंगेसे ‘लिव इन’ आरंभ किया, तो पहली जोडीसे जन्मे बच्चेके माता-पिता होंगे क्या ?

ए. जिन्हें माता-पिता नहीं होते उन्हें ‘अनाथ’ कहते हैं । किंतु, माता-पिता होनेपर भी उनका दायित्व नहीं लेंगे, तो उन बच्चोंका आगे क्या होगा ?’

(‘साप्ताहिक वज्रधारी’, १२ से १८.७.२०१२)

स्त्रोतहिंदी सनातन प्रभात

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