इराक के मोसूल में जून महीने में आईएसआईएस के आतंकियों ने ४० भारतीयों को अगवा कर लिया था। एबीपी न्यूज ने कुर्दिस्तान के इरबिल में इन भारतीयों का सुराग देने वालों की खोजबीन की। इरबिल में दो बांग्लादेशी नागरिकों ने अगवा हुए ४० भारतीयों के बारे में सनसनीखेज खुलासे किए हैं। ये बांग्लादेशी नागरिक भी ४० भारतीयों के साथ बंधक बनाए गए थे लेकिन बाद में इन्हें छोड़ दिया गया था। इराक में एबीपी न्यूज की पड़ताल पर विदेश मंत्रालय ने कहा जांच के बाद जवाब देंगे। कांग्रेस ने सरकार से सफाई मांगी हैं।
इरबिल शहर – उत्तरी इराक में पड़ने वाले कुर्दिस्तान की राजधानी जो फिलहाल आईएसआईएस के खूंखार आतंकवादियों की चुंगुल से बचा हुआ है। इरबिल में ऐसे हजारों लोग हैं जो इराक के अलग अलग इलाकों से आईएसआईएस के आतंकियों से बचकर पहुंचे और यहां ठिकाना बनाए हुए हैं।
इसी इरबिल शहर में एबीपी न्यूज रिपोर्टर जगविंदर पटियाल तलाश कर रहे थे उन लोगों की जो मोसूल में अगवा हुए ४० भारतीयों की खोज खबर दे सके। जगविंदर इरबिल की हर उस गली में घूम रहे थे जहां मोसूल से आए लोगों का ठिकाना था। ये तलाश जगविंदर को ले गई एक बांग्लादेशी नागरिक शफी कुल इस्लाम तक।
शफी कुल इस्लाम पास के ही मोसूल शहर में उसी तोरीकुल नूरी हुदा नाम की कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे जहां ४० भारतीय नागरिक काम करते थे। शफी उन ९१ लोगों में शामिल थे जिन्हें आईएसआईएस के आतंकियों ने ११ जून के दिन अगवा किया था। आखिरी बार उन ४० लोगों को अपनी आंखों से देखने वालों में शफी भी था।
सवाल – सबसे पहले ये बताइए कि आखिरकार आप कहां काम करते थे। कौन-कौन भारतीय आपके साथ थे। और कैसे ये अपहरण हुआ। विस्तार से बताइए।
जवाब – हम लोगों को बगदाद से सीधे एक दिन के बाद मोसुल ले जाया गया। मोसुल में पंजाब के लोग मिले। ४३ लोग थे वहां। ३ लोग भारत चले गए। हम लोग एक साथ ही काम करते थे। हरीश.. हरिनाम.. पंजाब के लोग ज्यादा हैं वहां। फिर एक दिन जुम्मे रात को काम पूरा बंद कर दिया। बोला गया कार्गो गाड़ी वाड़ी कुछ नहीं चलेगा वहां।
सवाल – क्यों बंद कर दिया?
जवाब – आतंकियों ने.. काम बंद कर दिया.. फिर करीब हफ्ते भर बाद.. पूरे जंगल की तरफ से बम धमाके हुए.. मासुल पर उन्होंने कब्जा कर लिया। फिर हम लोग बांग्लादेश के ५१ लोग और भारत के ४० लोग। हमें गाड़ी में ले गए। पासपोर्ट भी ले गए। रास्ते में गाड़ी रोकी। उस वक्त हेलिकॉप्टर से हम लोगों के ऊपर बम फेंका गया।
सवाल – आप लोगों की गाड़ी पर?
जवाब – हां गाड़ी पर.. फिर एक मीटर दूर हमारी बस गयी। सभी लोग जल्दी जल्दी भाग गए। एक बिल्डिंग के नीचे चले गए। फिर वहां दोबारा बम गिरे।
सवाल – हेलिकॉप्टर से ?
जवाब – हां हेलिकॉप्टर से.. हम सारे बांग्लादेश और भारत के लोगों के पासपोर्ट आतंकियों ने अपने कब्जे में ले लिए। एक रात वहीं रखा। दूसरे दिन सुबह फैक्ट्री के अंदर ले गए वह। १० बजे दिन में एक रोटी देते बस। खाना नहीं मिलता था।
आईएसआईएस के आतंकियों ने कुल ९१ लोगों को बंधक बनाया था। इनमें ५१ बांग्लादेशी थे और ४० भारतीय। अपहरण के चार दिन बाद आतंकियों ने वह किया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।
४-५ दिन रखा वहां। कंपनी के बहुत लोग थे वहां पर। उन्होंने कहा कि हमें छोड़ दो लेकिन आतंकियों ने नहीं सुना। वे बोले कि तुम लोगों को इरबिल भेज देंगे हम। उस दिन अच्छा खाना लेकर आए। मुर्गा वगैरह.. शाम की नमाज से थोड़ा पहले। खाना दिया और कहा सब लोग खाना खाओ। खाना खाने के बाद। एक फैक्ट्री के अंदर दो कमरे हैं। वह बोले बांग्लादेश के लोग थोड़ा सा साइड हो जाओ। भारत के लोग इस तरफ आ जाओ। आतंकियों के तीन चार गाड़ियां आईं। वह सब लोग चेहरे पर काला कपड़ा बांधे हुए थे। वह लेकर गए। फोन पर बात की उनके हाथ पैर जोड़े। भारतीयों के पैसे.. मोबाइल.. आतंकी लेकर चले गए.. भारत के लोगों का।
सवाल – फोन पर किसने बात की ?
जवाब – हम लोगों ने बात की पूछा किधर लेकर जाओगे इनको। गाड़ी में जिस वक्त लेकर गए। दवा दी पता नहीं कौन सी दवा थी। बहुत सारे हथियार थे उनके पास। पूरी एक गाड़ी भरकर। शाम के चार बजे के करीब ले गए वह भारतीयों को।
सवाल – कौन सी गाड़ी में बिठाया.. देखा आपने ?
जवाब – पिकअप में..
सवाल – पीछे खुली गाड़ी थी या बंद थी
जवाब – बंद गाड़ी थी.. दो पिकअप गाड़ियां थीं.. गाड़ियों के आगे पीछे बहुत सारे आतंकी थे.. उन्हें ले गए वह.. फिर फोन पर बात हुई.. वह रोकर बोला हम लोगों को मार देंगे ये..
सवाल – किसने फोन किया..?
जवाब – वह आपके भारत के आदमी ने.. हरीश ने.. वह वहीं कंपनी में काम करता था..
सवाल – हरीश ने जब आपको फोन किया कि हमें ये मार डालेंगे तो रोका नहीं उन्होंने जब हरीश ने आपको गाड़ी से फोन किया.. ?
जवाब – नहीं वह ले गए उसे.. फिर मोबाइल बंद कर दिया उसका..
सवाल – उसने कहा कि हम मुसलमान बन जाएंगे हमें छोड़ दो.. ?
जवाब – उसने कहा हम मुसलमान बन जाएंगे छोड़ दो हमें.. लेकिन उसको नहीं छोड़ा..
सवाल – ये आपको कैसे पता चला कि उसने ये बात बोली ?
जवाब – एक और आदमी था उसने मुझे फोन किया। उसे जिस वक्त गाड़ी में लेकर गए। एक दो बार बात हुई बांग्लादेश के उस आदमी से। फिर हमने बहुत कोशिश की पर उसका फोन नहीं लगा। फोन बंद कर दिया। फिर दोबारा वह आईएस के आतंकी हम बांग्लादेश के लोगों के पास आ गए। उन्होंने एक आदमी का वीडियो बनाया। बोला अल्लाह का नाम लो। हम सारे लोगों ने वैसा ही किया। ५-७ लोगों ने वीडियो बनाया। हथियार लिए थे वह मुंह बंद था उनका।
आतंकी ४० भारतीयों को लेकर जा चुके थे। ५१ बांग्लादेशी अब भी आतंकियों के चुंगुल में थे। बांग्लादेशियों से कहा गया कि उन्हें इरबिल में छोड़ दिया जाएगा। लेकिन कुछ ही घंटों के बाद ४० में से एक भारतीय वापस इन बांग्लादेशियों से मिलता है। शफी ने बताया कि हरजीत नाम था उसका।
सवाल – क्या काम था उस कंपनी का ?
जवाब – बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम। वहीं लेकर गए। वह बोले रात यहीं रुकेंगे। सुबह में सबको इरबिल लेकर जाएंगे। कुर्दिस्तान में.. फिर हम कमरे में गए. वहां देखा। भारत का एक आदमी हरजीत। ४० लोगों के साथ जो हरजीत था वह वापस आया।
इसके बाद बांग्लादेश नागरिक शफी उल इस्लाम ने जो कुछ बताया वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था।
उसने बताया कि सभी ४० लोगों को उन्होंने गोली मार दी। उसने खुद अपनी आंखों से देखा। सबको मार दिया। वह अकेला ही बचा। उसने मरने का नाटक किया। उसको दो तीन लात मारी आईएस के आतंकियों ने। वह समझे कि ये भी मर गया। लेकिन वह नहीं मरा था। वह बच गया और वापस आ गया। पुलिस के पास वहां रास्ते में बहुत पुलिस थी।
सवाल – एक बार फिर से बताओ कि हरजीत ने आपको बताया कि सब लोगों को बिठाकर गोली मार दी ?
जवाब – सबको मार दिया। उसको भी गोली मार दी। लेकिन वह बच गया। उसे दो गोली लगीं। लेकिन आईएस के आतंकी समझे कि वह मर गया। उसे लात मारकर भी देखा। लेकिन नहीं मरा था। उसने ऐसा दिखाया था कि वह भी मर गया। मरने का नाटक किया था।
सवाल – उसने आपको बताया कि जिस कपड़े वाले फैक्ट्री में आपको रखा गया था। वहां से जब वह गाड़ी में डालकर ले गए तो हरजीत ने बताया कि कितनी दूर ले जाकर कहां मारा ?
जवाब – ज्यादा दूर नहीं। वहां बहुत सारे पहाड़ हैं। बहुत बड़ा पहाड़ हैं वहां। बहुत लोगों को मारा वहां। पहाड़ के नीचे। खड्डे में। वहां बहुत सारे लोगों को मारा। उसने ऐसा बताया। पर वह जिंदा आ गया। मेरे कमरे में आया। हम लोग डर गए। हमने कहा तुम तो बच गए।
सवाल – उसे चोट लगी थी उस वक्त ?
जवाब – हां.. दो गोली लगी थीं उसे..
सवाल – दो गोली लगने के बाद भी वह ये बात बता रहा था आपको?
जवाब – हां सब बताया उसने..
सवाल – दर्द नहीं हो रहा था उसे ?
जवाब – दर्द हो रहा था पर क्या करता वह। बच गया था। बहुत डरा हुआ था। बोला सबको मार दिया। फिर हम लोगों के पास आया वह।
सवाल – ये बात पक्का उसने बताई थी आप लोगों को.. कि सबको मार दिया..?
जवाब – पक्का.. एक आदमी नहीं था.. मेरे साथ बांग्लादेश के ५० लोग थे.. उन सबको पता है.. भारत के पंजाब के वह लोग अभी जिंदा हैं या नहीं.. पता नहीं किसी को.. सबके मोबाइल बंद हैं।
शफी बता रहा था कि हरजीत ने उससे कहा कि ३९ लोगों को आतंकियों ने गोली मार दी। ये वह भारतीय हैं जिनके बारे में आज तक कुछ पता नहीं है, ना ही सरकार और ना ही आईएसआईएस आतंकियों की तरफ से इस बारे में कुछ बताया गया। शफी ने बताया कि सभी बांग्लादेशी इसके बाद इरबिल आ गए और हरजीत भी उनके साथ था।
सवाल – फिर क्या हुआ जब हरजीत आ गया.. उसे चोट लगी हुई थी.. फिर उसका क्या किया आपने.. उसका इलाज कहां हुआ चोट का..
जवाब – वह मेरे साथ गया.. चेक पोस्ट पर गए.. एक रात रुके वहां.. उधर थोड़ा थोड़ा खाना मिला.. १० इराक की दीनार दी अफसरों ने.. जितने भी लोग थे..
सवाल – १०-१० इराक की दीनार दीं.. किसने दीं ?
जवाब – आर्मी के अफसरों ने.. उन्होंने दी हम लोगों को..
सवाल – आपने आर्मी वालों को बताया कि इसको गोली लगी है?
जवाब – उसके पास पासपोर्ट नहीं था। उसने नहीं बताई ऐसी बात। पासपोर्ट नहीं था तो कैसे जाता वह। फिर वह हमारे साथ नमाज पढ़ता था। वह बहुत डर गया था। हम लोगों के साथ नमाज पढ़ता था वह। खाना खाता था हमारे ही साथ।
सवाल – कितने दिन नमाज पढ़ता रहा वह.. कितने दिन खाना खाता रहा..
जवाब – मेरे साथ दो दिन रहा वह.. एक दो दिन तक.. फिर वह इरबिल आ गया..
सवाल – इरबिल कैसे आया वह.. चोट लगी थी उसे तो
जवाब – गाड़ी में आया वह..
सवाल – किसकी गाड़ी में?
जवाब – हम लोगों को कंपनी के दो ड्राइवर थे ना। दो गाड़ी लेकर आए वह। वह बोले कि तुम लोगों को इरबिल लेकर जाएंगे। इरबिल में सैलरी मिलेगी तीन महीने की। भारत का आदमी भारत जाएगा। हम बांग्लादेश के लोगों से कहा कि जो जाना चाहता है उसे बांग्लादेश भेज देंगे। जो काम करेगा इरबिल में तो उसे काम देंगे।
शफी ने बताया कि हरजीत जख्मी हालत में ही उनके साथ इरबिल आया था।
सवाल – वह दो दिन में हरजीत की चोट का इलाज नहीं हुआ। जहां गोली लगी थी?
जवाब – नहीं वह बुरी तरह डर गया था। तो हम लोगों ने उसे कहा कि ये सब मत बताओ किसी को। कंपनी के जो दो ड्राइवर इरबिल ले जा रहे थे। चेकपोस्ट आया तो हम सबको आर्मी वालों ने पकड़ लिया। फिर मैंने खुद बांग्लादेश के अपने दूतावास में फोन किया। वहां से उन्होंने कहा कि १० मिनट रुको वहीं। इतनी ज्यादा गर्मी थी उस वक्त। हम वहीं बैठ गए। इरबिल के मंत्री पास हमारे दूतावास ने मैसेज भेज दिया। फिर १० मिनट बाद आर्मी के लोग हमारे पास आए। बोले सब लोग आ जाओ यहां.. हम सबकी फोटो खींची गई। चेक पोस्ट पर।
सवाल – उस समय हरजीत आपके साथ था ?
जवाब – हां हम लोगों के साथ ही था वह..
सवाल – उसे चोट लगी थी तो आर्मी वालों ने पूछा चोट कैसे लगी ?
जवाब – नहीं.. किसी को भी नहीं बताया हम लोगों ने
सवाल – उसका कोई इलाज नहीं किया?
जवाब – नहीं किया। गोली लगी थी। उसके पास पासपोर्ट भी नहीं था। मुश्किल हो जाती। बांग्लादेश के दूतावास को मालूम है। फिर आर्मी वालों ने हमें ब्रिज के नीचे बिठा दिया। सुबह १० बजे के करीब। फिर दोपहर १-२ बजे आर्मी के कैंप में ले जाया गया हमें।
हमने हरजीत के दावे के पुख्ता करने के लिए शफी से पूछा कि उसके साथ और कौन कौन भारतीय था जो मोसूल में काम करते थे। शफी ने कई नाम लिए। हमनें कुछ तस्वीरें भी शफी को दिखाई। शफी ने कई लोगों को पहचाना।
सवाल – और किसी का नाम हो?
जवाब – कोलकाता के लोग थे कुछ।
सवाल – और कोई पंजाब का आदमी है। जिसका नाम आप जानते हों ?
जवाब – नंदूलाल है.. बुजुर्ग आदमी हैं वह।
सवाल – और..
जवाब – तिवारी.. नंदूलाल.. हरीश.. बहुत लोग थे.. नाम यही याद हैं।
सवाल – क्या वहां ऐसा भी हुआ था कि उन्होंने कहा हो कि नमाज पढ़कर दिखाओ। और भारतीयों को नमाज पढ़ना नहीं आया?
जवाब – हम ५० लोग हमेशा साथ नमाज पढ़ते थे। मुझे कुरान आती है।
सवाल – भारतीयों को भी बोला था या नहीं?
जवाब – नहीं ऐसी कोई बात नहीं की उन्होंने।
शफी से हमने पूछा कि हरजीत को दो गोलियां लगीं थी वह कैसे उनतक पहुंच गया। शफी ने कहा कि हरजीत आतंकियों को चकमा देकर भाग निकला था।
सवाल- हरजीत को जहां गोली मारी। और जहां आप लोगों का कमरा था। उसमें कितना फासला था?
जवाब – वह करीब ६ किलोमीटर दूर है। ज्यादा दूर नहीं है।
सवाल – ६ किलोमीटर गोली लगने के बाद वह कैसे आया?
जवाब – हम लोगों ने पूछा तू कैसे आ गया भाई इधर। इतनी जल्दी जल्दी.. वह बोला कि अगर भारतीय बताता तो गोली मार देते वह। वह बोला कि मैं बांग्लादेश का हूं मेरा नाम अली है। मैं मुसलमान हूं। वह बोला कि मैं अलजमिया जाऊंगा जहां हम लोग काम करते थे। हम लोगों की पुरानी बिल्डिंग थी तो आईएस की पुलिस ने उसे वहां छोड़ दिया।
सवाल – उसने कैसे समझाया। आप कह रहे हो कि आप तो अरबी में समझा लेते थे। वह अरबी बोलते हैं। उसने कैसे बताया कि मैं अली हूं और बांग्लादेश का रहने वाला हूं?
जवाब – उसने खुद को बांग्लादेशी बताया कहा अली हूं तो नहीं मारा उसे। फिर उसे कमरे के पास छोड़ दिया। वह बहुत परेशान था। रो रहा था वह। हमने कहा क्या हुआ वह बोला कि सबको मार दिया।
सवाल – आपको अच्छी तरह याद है कि उसने कहा था सब लोगों को मार दिया?
जवाब – मैं एक आदमी नहीं था। बांग्लादेश के ५० लोग थे वहां। सबसे बताया उसने कि मार दिया। हमने उसे दूसरी इमारत में भेज दिया। वरना आईएस के लोग हमें भी मार देंगे.. ऐसा कहा उससे। पूरी रात हम लोगों को नींद नहीं आई.. दो लोग गेट के पास एक एक ड्यूटी देते रहे.. कंपनी के जो दो ड्राइवर थे.. उन्हें पता था कि हरजीत आ गया है.. वह बोले कि कोई बात नहीं.. वह हम लोगों के साथ इरबिल जाएगा। इसे हम मुसलमान बताएंगे। कहेंगे बांग्लादेश का रहने वाला है.. हमने उससे कहा कि तुम नमाज पढ़ो हमारे साथ।
सवाल – आप लोगों ने नमाज पढ़ना सिखाया उसे?
जवाब – हां वह नमाज पढ़ा। उससे कहा हम लोग जैसा करें बस वैसे ही करते जाओ।
सवाल- हरजीत देखने में कैसा है?
जवाब – पतला.. काले रंग का..
सवाल – कितना लंबा है?
जवाब – ५ फुट ५ इंच के करीब..
सवाल – दाढ़ी रखता है?
जवाब – हां थोड़ा थोड़ा.. उस टाइम तो नहीं था.. थोड़ा थोड़ा दाढ़ी था..
सवाल – बाल कैसे हैं सिर पर?
जवाब – बाल.. काले काले..
सवाल – लंबे बाल तो नहीं हैं?
जवाब – नहीं ज्यादा लंबे नहीं.. मीडियम हैं..
हमने शफी से बार बार पूछा कि हरजीत ३९ लोगों के मरने का दावा कर रहा था उसमें कितनी सच्चाई थी। शफी ने बताया कि उसे मोसूल में रहने वाले एक और शख्स ने भी ३९ भारतीयों की मौत के बारे में बताया था।
सवाल – हरजीत से आपने दोबारा पूछा कि ठीक से याद करके बताओ कि वाकई सबको मार दिया या?
जवाब – कम से कम १०० बार बताया उसने। उसने भारत में फोन पर बात की थी। वह झूठ नहीं बोलेगा। क्यों झूठ बोलेगा। एक ड्राइवर भी था.. जिससे मेरी फोन पर बात हुई। एक दिन के बाद। वह कंपनी का सामान खरीदता था। मेरा दोस्त था। मैंने उससे पूछा. वह बोला मार दिया सबको। मोसुल का आदमी है वह।
सवाल – उसे कैसे पता लगा कि मार दिया..?
जवाब – उसे मालूम है.. कि किधर ले गए थे। वह रो रहा था। वह भारत और बांग्लादेश के हम सब लोगों से बहुत प्यार करता था। वह मोसुल का ही रहने वाला है।
सवाल – क्या नाम था उसका?
जवाब – मुल्ला.. हम बस मुल्ला ही बोलते थे उसको। दाढ़ी वाला मुल्ला। वह कंपनी में ही काम करता था। वह लेकर गया था गाड़ी। उसे मालूम है। वह कंपनी का एक गाड़ी चलाता था।
सवाल – आपको जब ४ दिन रखा गया था वहां। आप लोग आपस में क्या बात करते थे। आपकी बात होती थी भारत के लोगों से?
जवाब – भारत के लोग और हम एक साथ में ही थे। सब एक साथ सोए.. खाना एक साथ खाया.. बात क्यों नहीं होगी।
सवाल – आप लोगों को लगता था कि मार देंगे इन लोगों को?
जवाब – दो बुजुर्ग लोग थे। नाम याद नहीं उनका। वह कहता था हम लोगों को नहीं छोड़ेगा। मार देंगे वह। वह कोलकाता का था। ४५ साल के करीब उम्र होगी उसकी।
सवाल – बाकी जवान थे सारे?
जवाब – हरीश ने शादी नहीं की थी। वह बहुत सुंदर लड़का था। ऑफिस में काम करता था।
शफी लगातार यही कह रहा था कि हरजीत ने उसे बताया कि ३९ भारतीयों को आतंकियों ने मार डाला है। हमने शफी से ये भी पूछा कि क्या हरजीत झूठ तो नहीं बोल रहा था।
सवाल – शफी क्या हो सकता है कि हरजीत झूठ बोल रहा हो.. कि मार दिया हो सबको और ना मारा हो?
जवाब – ये तो भगवान जानता है। वह बोला कि सबको मार दिया। ४ महीना हो गया। उनके बारे में किसी को पता नहीं। टेलीफोन नहीं किया भारत में किसी को। किसी के साथ नहीं किया। वह बोला कि मैंने अपनी आंखों से देखा। बोला कि कसम से मार दिया सबको।
सवाल – क्या ये हो सकता है कि आईएसआईएस के लोगों ने ऐसा किया हो कि बाकी लोगों को अपने साथ ले गए हों। और हरजीत को जानबूझकर छोड़ दिया हो कि वह ये बताए कि मार दिया सबको।
जवाब – उन सबको एक साथ मारा लेकिन वह नहीं मरा। वह बोला कि मुझे लात मारकर भी देखा कि मरा या नहीं। वह समझे कि ये मर गया पर वह जिंदा बच गया और वह वापस आ गया।
सवाल – क्या आपके सामने हरजीत ने ये बात फोन पर किसी और को बताई थी?
जवाब – भारत में बात गई.. दूतावास में बात गई.. उसने अपनी मां के साथ भी बात की.. जिस समय वह हमारे पास आया।
सवाल – किसके फोन से बात की.. उस वक्त तो फोन होगा नहीं उसके पास?
जवाब – मेरे साथ बांग्लादेश के ही एक आदमी के पास मोबाइल था.. उससे वह मिस्डस कॉल मार दिया.. फिर भारत से फोन आया उस पर।
सवाल – वह क्या बोला फिर.. सुना आपने?
जवाब – सुना.. वह बोला कि मार दिया सबको.. मां मां.. ऐसा कह रहा था वह फोन पर..
सवाल – हरजीत को जब उन्होंने छोड़ा.. हरजीत जब वापस आया.. आपने उसकी चोट देखी?
जवाब – हां देखा..
सवाल – कहां चोट लगी थी बताओ?
जवाब – (अपना पांव दिखाते हुए) पांव में लगा.. (दाहिना पैर) इधर लगा.. दो जगह लगा।
सवाल – खून नहीं निकल रहा था वहां से?
जवाब – खून नहीं निकल रहा था।
सवाल – कितनी चोट थी?
जवाब – ज्यादा चोट लगी लेकिन वह बच गया.. पहाड़ से आया वह।
हमने शफी से ये भी पूछा कि आतंकी तो हिंदी समझते नहीं थे फिर वह भारतीयों से कैसे बात कर रहे थे। उनको भारतीयों की बात कैसे समझ आ रही थी।
सवाल – जो आतंकी लोग हैं। वह देखने में कैसे लगते हैं। आपके पास आते थे तो कैसे दिखते थे।
जवाब – बहुत मोटा आदमी। छोटे आदमी हैं लेकिन दाढ़ी थी उनकी। मुंह नहीं देखा उनका। कपड़ा था पूरा काले रंग का।
सवाल – जब बोलते हैं तो कैसे। जब मुंह ढंका होता है।
जवाब – मुंह ढंककर बोलते हैं वह।
सवाल – हाथ में क्या होता है उनके
जवाब – बंदूक.. एक नहीं.. दो तीन पिस्टल.. इधर उधर..
सवाल – और क्या रखते हैं वह हाथ में..
जवाब – कुरान रखते हैं..
सवाल – सबके हाथ में..
जवाब – हां सबके हाथ में.. दाढ़ी रखते हैं वह..
सवाल – जो भारत के लोग थे वह तो अरबी जानते नहीं..
जवाब – कुछ को २-३ साल हो गया.. वह जानते हैं..
सवाल – कौन कौन जानते हैं
जवाब – एक समर है कोलकाता का। हरीश को अंग्रेजी आती है।
सवाल – जब आतंकी उनको बोलते थे। कोई भी बात तो सबको समझ में तो आती नहीं होगी। तो उनको समझाता कौन था।
जवाब – भारतीयों का लीडर था हरीश। वह सब बात करता था।
सवाल – हरीश को अरबी आती थी।
जवाब – अरबी आती थी थोड़ी थोड़ी। इंग्लिश आती थी। पहले इराक में काम कर चुका था वह।
सवाल – जो आतंकी लोग थे.. उन्हें अंग्रेजी आती है।
जवाब – हां उन्हें अंग्रेजी आती है।
सवाल – अरबी और अंग्रेजी जानते हैं
जवाब – हां.. जानते हैं।
सवाल – हरीश उनसे अंग्रेजी में बात करता था
जवाब – हां अंग्रेजी में बात करता था
सवाल – वह जवाब देते थे
जवाब – हां वह जवाब देते थे। उनके साथ हम लोग ज्यादा बात नहीं करते थे। उनके पास बहुत हथियार थे। हम लोग वैसे ही डरे हुए थे।
शफी ने हमें बताया कि उस रात हरजीत की बातें सिर्फ उसने ही नहीं सुनी बल्कि ५१ बांग्लादेशियों ने सुनी थी। शफी ने अपने एक साथी हसन से भी फोन पर बात की और हम शफी के जरिए हसन तक भी पहुंचे। हसन भी उन ९१ लोगों में से था जिन्हें आतंकियों ने अगवा कर लिया था। हसन ने भी हमें बताया कि हरजीत वापस लौटा था। और उसने बताया कि सबको मार दिया।
२ या ३ बजे बोले कि भारतीय एक तरफ हो जाओ और बांग्लादेश के दूसरी तरफ हो जाओ। भारत के एक तरफ हो गए। बांग्लादेशी दूसरी तरफ हो गए। फिर बोले कि भारतीय गाड़ी में आ जाओ। वह गाड़ी में चले गए। हमसे कहा तुम लोगों को १ घंटे बाद ले जाएंगे। भारतीयों को गाड़ी में उठाया। एक डेढ़ घंटे बाद हमें ले गए। हमें लगा कि भारतीयों को इरबिल भेज दिया। हमने ३-४ घंटे बाद ट्राई किया तो उनके मोबाइल बंद थे। हम लोगों ने सोचा कि शायद चेक पोस्ट में हैं इसलिए मोबाइल बंद है। फिर हमें कंपनी वालों के पास छोड़ दिया। कंपनी वाले हमें अपने कैंप में लेकर गए उस दिन। शाम को ६-७ बजे थे तब. रात में ११ बजे के करीब कंपनी के कैंप में हरजीत वापस आया। उसे मालूम नहीं था कि हम लोग कैंप में हैं। मैं परेशान था। हरजीत को रात को नहीं देखा मैंने। हरजीत को सुबह देखा। उसने बताया कि भाई सब को मार दिया। हमें ये लग रहा था कि उन्हें इरबिल ले गए। हमें क्यों नहीं ले गए। शायद रात हो गई देर हो गई इसलिए। हरजीत रात को ११ या १२ बजे आया हमारे पास। वह बोला सबको मार डाला। लेकिन हमने ये हरजीत की जुबां से सुना। अभी तक किसी और की जुबां से नहीं सुना।
हमने जब हसन से पूछा कि क्या हरजीत जख्मी था जैसा कि शफी ने बताया था तो हसन ने कहा कि उसने ध्यान नहीं दिया।
सवाल – हरजीत को चोट लगी थी कहीं?
जवाब – चोट मैंने नहीं देखी। क्योंकि मैं बहुत परेशान था। मैंने नहीं देखी। मेरे पास इतना वक्त ही नहीं था। मेरा ध्यान उस तरफ नहीं गया। फिर हरजीत को हमारे साथ चेकपोस्ट में ले जाया गया। कुर्दिस्तान के खाजरा चेकपोस्ट पर हमको छोड़ दिया कंपनी के लोगों ने। फिर वहां हमने ३-४ दिन गुजारे। फिर एक एक कर निकल कर आए।
सवाल – जब आपके साथ हरजीत वहां आया तो तब भी पता नहीं लगा आपको कि उसे चोट लगी है या नहीं लगी है?
जवाब – उस बारे में मैंने नहीं पूछा. वह खुद नहीं बताया। मैं बहुत परेशान था।
सवाल – अगर किसी को चोट लगी हो। तो चलता है तो पता तो लग जाता है?
जवाब – हम गाड़ी में आए. हम बहुत परेशान थे। हमें चेकपोस्ट में छोड़ दिया। वहां आर्मी के लोग थे। उन्होंने हमें ३-४ दिन खाना खिलाया। फिर कोई रिश्तेदार के इरबिल और कोई बगदाद चला आया। मैं उधर ही था। हरजीत भी मेरे साथ था। २ या ३ दिन के बाद हरजीत खुद निकलकर आ गया। कुर्दिस्तान में चला गया ऐसा सुना। इसके बाद वह कहां गया हमें पता नहीं। ४-५ दिन हमारी इरबिल के लोगों ने मदद की। फिर हम यहां आ गए।
शफी ने हमें बताया थी कि अगवा भारतीयों में से एक हरीश की उससे फोन पर बात हुई थी लेकिन हसन ने बताया कि किसी हरीश का फोन नहीं आया था। हसन ने बताया कि उसे दूतावास में भी बुलाया गया था।
सवाल – जब भारतीयों को ले गए थे। तो आपको हरीश ने फोन किया था?
जवाब – नहीं किसी ने फोन नहीं किया। पर हर बंदे को यकीन था कि इरबिल लेकर जा रहे हैं।
सवाल – आपको भारतीय दूतावास में बुलाया गया था।
जवाब – बुलाया गया था यहीं कुर्दिस्तान में।
सवाल – क्या बात हुई वहां पर
जवाब – वहां यही सारा कुछ पूछा..
सवाल – कितनी बार बुलाया आपको भारतीय दूतावास में
जवाब – एक बार। ७-८ दिन हो गए।
सवाल – हरजीत था वहां
जवाब – नहीं..
सवाल – हरजीत के बारे में पूछा कुछ आपने
जवाब – मैंने पूछा पर उन्होंने बताया कि हरजीत घर चला गया।
हमने हसन से बार बार पूछा कि हरजीत ने उन्हें क्या बताया था, अपने ३९ साथियों के बारे में क्या कहा था।
सवाल – आपने हरजीत से पूछा नहीं कि कैसे मार डाला सबको
जवाब – पूछा कैसे मार डाला। वह बोला कि पीछे से बांधकर गोली मार दी।
सवाल – आपने पूछा कि तुम कैसे बच गए
जवाब – वह बोला मुझे नहीं लगा। मैंने ऐसी एक्टिंग की जैसे मर गया। फिर वह मुझे छोड़कर भाग गए। फिर आधे घंटे जब वह भाग गए तो मैं निकलकर आ गया।
सवाल – जहां गोली मारी और जहां वह आपके पास आया उसकी दूरी कितनी थी।
जवाब – हमें नहीं मालूम.. किधर लेकर गए.. हरजीत को ही मालूम है कि कितनी दूर है। हमें नहीं पता।
सवाल – हरजीत को ये सबके सामने बताया था। कितने लोग थे। जिनके सामने ये बताया था हरजीत ने कि सबको मार दिया।
जवाब – हम बांग्लादेश के कुल ५१ लोग थे।
सवाल – सबके सामने बताया।
जवाब – ५१ लोग थे.. मुझे सुबह पता चला.. कि रात को हरजीत आया.. ऐसे सुना
सवाल – आप बोले नहीं कि ये बात दूतावास को बताओ
जवाब – हम बोले कि तुम बताओ दूतावास में..
सवाल – वहां से मोसुल से फोन करके सबसे पहले दूतावास में किसने बताया
जवाब – ये पता नहीं..
सवाल – क्या वहां किसी के फोन से.. हरजीत ने अपने घर फोन किया.. भारत फोन किया..
जवाब – किया ऐसा सुना..
सवाल – सुना कि देखा
जवाब – सुना..
सवाल – किससे सुना
जवाब – बांग्लादेशी लोगों से.. उन्होंने ही बताया।
हमने हसन से ये भी पूछा कि अभी हरजीत कहां है। क्या वह कुर्दिस्तान में ही है
सवाल – जब रास्ते में वापस आ रहा था वह आपके साथ आ रहा था इरबिल.. तो क्या बात करता था?
जवाब – इरबिल जिस वक्त आ रहा था तो बोला कि भाई मेरी मदद करना। तो हमारे साथ आ गया वह। आने के बाद २-३ दिन ब्रिज के नीचे रहे। फिर वह खुद चला गया। सब अपने अपने रास्ते ढूंढकर चले गए। क्योंकि कहीं से मदद नहीं मिल रही थी।
सवाल – हरजीत किसके साथ गया। वह तो अकेला था। सब भारतीयों को तो आईएस वाले ले गए थे?
जवाब – पता नहीं वह कैसे चला गया। हम लोग अंत में १०-१५ लोग बचे थे। सब लोग अपना अपना रास्ता ढूंढकर चले गए। कोई रिश्तेदार के यहां कुर्दिस्तान चला गया। हरजीत की कोई रिश्तेदारी है ये पता नहीं। लेकिन सुना कि वह कुर्दिस्तान आ गया।
हमने हसन से पूछा कि आईएसआईएस के आतंकी और किन किन भारतीयों को ले गए थे। हसन ने कई नाम बताए।
सवाल – और कौन कौन भारतीय थे जिन्हें ले गए थे। नाम जानते हो आप।
जवाब – हरजीत.. हरीश.. मलकीत.. कोमल सिंह.. परविंदर सिंह.. सुखविंदर सिंह.. नंदलाल.. निशांत सिंह.. सोनू.. ४० लोग थे.. सबके नाम जानता हूं।
सवाल – कोलकाता के भी लोग थे उनमें।
जवाब – कोलकाता के दो लोग थे।
सवाल – उनके घर खबर आपने की थी कि हरजीत ये बताता है कि सब लोगों को मार डाला
जवाब – कोलकाता के जो हैं उन लोगों के साथ मेरी दोस्ती है। बहुत पहले से। हम ४ साल से काम कर रहे थे। तो उन लोगों ने एक दिन फोन किया मेरे पास। क्या हुआ। मैंने ऐसे ही बताया कि ऐसा ऐसा सुना है पर पता नहीं कोई बोल रहा है जेल में है। कोई बोल रहा है ऐसा है। लेकिन अभी तक यकीन नहीं। उसका एक भाई है ओमान में। वह मस्कट से फोन कर रहा है। लेकिन मैंने कहा अभी तक पता नहीं लग रहा है।
सवाल – आपने ये नहीं बताया कि उनको ले गए थे और हरजीत ये बोलता है कि मार दिया?
जवाब – बताया.. कि उठाकर ले गए.. लेकिन मैंने कहा कि पता नहीं सच में क्या हुआ।
हसन ने बताया कि उसकी अपनी कंपनी वालों से भी बात हुई लेकिन कंपनी वालों का कहना था कि अगवा हुए भारतीय जेल में हैं। और सिर्फ हरजीत ही यही दावा कर रहा है कि ३९ भारतीयों को आतंकी मार चुके हैं। सिर्फ और सिर्फ हरजीत ये दावा कर रहा है।
भारतीय जिंदा हैं या नहीं। इस बारे में हसन ठीक से कुछ नहीं कह सकते। लेकिन हरजीत एक ऐसी कड़ी है। जो उन ४० में से इकलौता है जो चश्मदीद भी है पूरी घटना का और बचकर भी आया है। अब बड़ा सवाल ये उठता है हसन की बात सुनने के बाद कि क्या जो भारतीय हैं वह हरजीत के कहे मुताबिक उनको मार दिया गया है या फिर अगर वह जिंदा हैं तो कहां हैं। क्या भारत सरकार हरजीत के इस दावे पर यकीन कर रही है या नहीं। जितने बांग्लादेशी नागरिकों से उसने बात की उनका कहना है कि हरजीत के दावे में दम है। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद ये पता ही नहीं चल पाता कि अब तक वह किसी ना किसी से संपर्क करता परिवार वालों से संपर्क करता। लेकिन उनको जेल में भी रखा गया है तो ये भी एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या वहां वह आईएस की गिरफ्त में हैं हसन की बात सुनने के बाद ऐसा लगता है लेकिन अगर हरजीत सच कह रहा है तो उसकी पड़ताल कैसे हो और दूसरा अगर हरजीत ये कह रहा है कि मार दिया तो उसका इस दावे के पीछे कोई मकसद नहीं हो सकता है फिर वह इतना बड़ा दावा कैसे कर सकता है। अब सारी कहानी हरजीत के आसपास घूमती है। कि हरजीत कितना सच बोल रहा है और कितना झूठ। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हरजीत आखिर है कहां?
स्त्रोत : एबीपी न्यूज