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कुंभमेला २०१९ : हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए ४५० साल बाद खोला गया है अक्षयवट, जानें क्‍या है खास ?

प्रयागराज में संगम के तट पर इन दिनों माहौल भक्तिमय हो चुका है। कुंभ के मेले में देश-विदेश से साधु-संत और आमजन यहां पहुंच चुके हैं। संगम तट पर स्थित अक्षयवट लोगों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। संगम तट से यमुना किनारे बने किले की ओर देखने पर डालियों से घना वृक्ष नजर आता है। यही वृक्ष अक्षयवट है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज में यमुना नदी पर स्थित मुगलकालीन किले में 450 वर्ष से बंद अक्षयवट और सरस्वती कूप को गुरुवार को आम जनता के लिए खोल दिया। मुख्यमंत्री योगी ने यह भी कहा कि इस बार कुंभ मेले में छह प्रमुख स्नान पर्वों पर वीवीआईपी के लिए कोई भी प्रोटोकॉल उपलब्ध नहीं होगा।

यह अनादिकाल से यमुना तट पर स्थित है। पौराणिक मान्यता है कि धरती पर प्रलय आने पर भी अक्षयवट को क्षति नहीं पहुंची। प्रयाग महात्म्य, पद्म व स्कंद पुराण में अक्षयवट के दर्शन को मोक्ष का माध्यम बताया गया है। यह भगवान विष्णु का साक्षात विग्रह माना जाता है। यही कारण है कि सनातन धर्म में यह सबसे पवित्र व पूज्यनीय वृक्ष है।

पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय वट के संदर्भ कालिदास के रघुवंश और चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के यात्रा विवरणों में मिलते हैं। पूरे देश में चार पौराणिक पवित्र वटवृक्ष हैं— गृद्धवट- सोरों ‘शूकरक्षेत्र’, अक्षयवट- प्रयाग, सिद्धवट- उज्जैन और वंशीवट- वृन्दावन। अक्षय वट प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर आज भी अवस्थित कहा जाता है। हिन्दुओं के अलावा जैन और बौद्ध भी इसे पवित्र मानते हैं। कहा जाता है बुद्ध ने कैलाश पर्वत के निकट प्रयाग के अक्षय वट का एक बीज बोया था। जैनों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। प्रयाग में इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली (या तपोवन) के नाम से जाना जाता है।

यहां रहती हैं सरस्वती

संगम वह स्थान है, जहां गंगा-यमुना-सरस्वती तीनों नदियों आकर मिलती हैं लेकिन सरस्वती नदी के लुप्त हो जाने के बाद यहां केवल गंगा और यमुना का मिलन होता है। कहा जाता है कि प्रयागराज स्थित अकबर के किले मे सरस्वती आज भी मूर्त रूप में दिखाई देती हैं। बताया जाता है कि 30 साल पहले इस कूप में रंग डाला गया था। वह रंग संगम पर भी दिखाई दिया था। यानी इस कूप का सीधा जुड़ाव संगम के साथ है। इसे भी अब आम लोगों के दर्शन के लिए खोल दिया गया है।

स्त्रोत : इण्डिया डॉट कॉम

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