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४१ साल से गायों की सेवा कर रही है ये जर्मन महिला, सरकार करेगी पद्मश्री से सम्मानित

यहां भारत में खुलेआम राज्य में गोहत्याएं होती है आैर भारत में ही एक विदेशी महिला गो-सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करती है ! – सम्पादक, हिन्दुजागृति

जर्मन महिला, फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग

जर्मनी में जन्मी फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग को भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान दिए जाने की घोषणा की है। फ्रेडरिक उस समय महज २० साल की थीं, जब वह भारत आईं। वह साल १९७८ में यहां आई थीं। उस समय वह थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया और नेपाल की सैर पर निकली थीं। उन्हें कोई अंदाजा नहीं था कि भारत आकर वह यहीं की होकर रह जाएंगी।

वह भारत यात्रा के दौरान ब्रज आईं और यहीं रहने लगीं। यहां उन्होंने गाय खरीदी। फ्रेडरिक का कहना है कि ब्रज आने के बाद से उनकी जिंदगी बदल गई। उन्होंने न केवल गायों पर आधारित कई किताबें पढ़ीं बल्कि हिंदी भी सीखी। उनका कहना है कि जब बूढ़ी होने के बाद गाय दूध देना बंद कर देती है, तब लोग उसे छोड़ देते हैं। ऐसे में वह गायों को एक जगह लाकर उनकी सेवा करती हैं। अपने काम के कारण लोग फ्रेडरिक को सुदेवी माताजी कहकर संबोधित करते हैं।

ब्रिज में उन्होंने एक गौशाला की शुरुआत की थी। ४१ सालों में उन्होंने दस बीस नहीं बल्कि लाखों गायों की सेवा की है। वर्तमान में उनके पास १२०० गाये हैं, जो दूध नहीं देतीं। लोग भी अपनी बीमार और घायल हो चुकी गायों को आश्रम के बाहर छोड़कर चले जाते हैं।

हर महीने आता है २५ लाख खर्च

फ्रेंडरिक के इस काम में हर महीने २५ लाख रुपये का खर्च आता है। कुछ पैसा दान से मिल जाता है, तो कुछ पैसा वह अपनी पुश्तैनी संपत्ति से इस्तेमाल करती हैं। उनकी गौशाला में करीब ६० लोग काम करते हैं। लोग भी गाय की सेवा के लिए दान करते हैं। फ्रेडरिक की संपत्ति बर्लिन में स्थित है। वहां से आनेवाले किराए के पैसों से वह गौशाला का खर्चा निकालती हैं।

सुदेवी के पिता जर्मन के एक बड़े अधिकारी भी रहे थे। उनके पिता ने देहली स्थित जर्मन दूतावास में भी कार्य किया। वो भी लगातार राधाकुंड में गोसेवा के लिए आते रहे। गोसेवा के लिए सुदेवी ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने विवाह नहीं किया। हाल ही में उनका वीजा खत्म होने पर मथुरा की सांसद हेमा मालिनीद्वारा वीजा की अवधि बढ़वाई गई।

पद्मश्री सम्मान मिलने पर सुदेवी दासी ने कहा कि वो बेहद खुश हैं। उन्हें सेवा और तपस्या का फल मिला है। उन्होंने कहा कि वो यहां रहकर पूरे जीवन गोसेवा करना चाहती हैं। बता दें कि महिला दिवस पर सुदेवी दासी की गोसेवा को लेकर अमर उजाला ने प्रमुखता से खबर को प्रकाशित किया।

स्त्रोत : अमर उजाला

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