श्रीरामजन्मभूमि की अविवादित 67 एकड भूमि के लिए तारीख पे तारीख देनेवाले सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अर्थ है स्वयं ही स्वयं के पैर पर कुल्हाडी मार लेना !
प्रयागराज कुंभ नगरी में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ.चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा कि, जनता देख ही रही है कि करोडों हिन्दुआें के श्रद्धास्थान श्रीराम मंदिर की सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय कितना समय व्यर्थ कर रहा है । ऐसे समय केंद्र शासन ने अयोध्या स्थित श्रीरामजन्मभूमि की 67.703 एकड अविवादित भूमि संबंधितों को लौटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में आवेदन देकर स्वयं ही स्वयं के पैरों पर कुल्हाडी मार ली है । वर्ष 1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या अधिनियम 1993 के अनुसार 67.703 एकड भूमि के संदर्भ में स्थगिति का निर्णय दिया था । यह स्थगिति इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चल रहे अभियोग के निर्णय तक ही सीमित थी । इसलिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 2010 में दिए गए निर्णय के उपरांत उस स्थगिति का विषय समाप्त हो चुका है । अतः अब केंद्र सरकार स्वयं के संसदीय अधिकारों का उपयोग करे तथा जिस प्रकार कांग्रेस सरकार ने वर्ष 1993 में अध्यादेश पारित कर यह अविवादित भूमि नियंत्रण में ली थी, वह अध्यादेश निरस्त करे अथवा अविवादित भूमि लौटाने के संबंध में नया अध्यादेश पारित करे । इससे श्रीराम मंदिर निर्माण की बाधाएं निश्चित ही दूर होंगी ।
वर्ष 1994 में इस्माइल फारुखी विरुद्ध भारत सरकार प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में यह स्पष्ट हो गया है कि, यद्यपि कांग्रेस सरकार ने 67.703 एकड भूमि अधिग्रहित की है, तथापि प्रत्यक्ष में विवादित भूमि ०.313 एकड ही है । वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई भी इसी विवादित भूमि से संबंधित है । इसलिए कांग्रेस सरकार द्वारा शेष अधिग्रहित भूमि अब उस भूमि के मालिकों को लौटाना आवश्यक है, ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी गत २५ वर्षों से श्रीराम मंदिर का अभियोग निःशुल्क चलानेवाले वरिष्ठ अधिवक्ता श्री. हरी शंकर जैन ने दी है । इसलिए उस भूमि के संबंध में निर्णय लेने हेतु केंद्र शासन स्वतंत्र है । अतः हमारी मांग है कि पूर्ण बहुमत प्राप्त केंद्र शासन न्यायालय पर निर्भर न रहे तथा स्वयं के संसदीय अधिकारों का उपयोग कर वर्ष 1993 में कांग्रेस सरकार द्वारा पारित अध्यादेश निरस्त करे अथवा यह अविवादित भूमि लौटाने हेतु नया अध्यादेश पारित करे । जिससे मंदिर निर्माण का कार्य शीघ्रता से प्रारंभ हो पाएगा । बाबर द्वारा श्रीराम मंदिर तोडने की घटना को 10 वर्षों पश्चात कुल 500 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे । बहुसंख्यक हिन्दुआें के देश में हिन्दुआें के श्रद्धास्थान का एक मंदिर निर्माण करने के लिए इतने वर्ष प्रतीक्षा करनी पडती हो, तो हिन्दुआें का इससे बडा दुर्भाग्य क्या होगा ? हिन्दू जनजागृति समिति ने मांग की है कि केंद्र शासन सर्वोच्च न्यायालय पर निर्भर न रहे तथा तत्काल श्रीराम मंदिर के लिए अध्यादेश पारित करे एवं कुंभ की पवित्र अवधि में ही साधुसंतों के करकमलों से श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीराम मंदिर का भूमिपूजन करे ।