शिरडी संस्थान की ओर से निळवंडे बांध के लिए ५०० कोटि रुपए ऋण देने के प्रस्ताव का प्रकरण
देवस्थान की संपत्ति का उचित विनियोग हो सके; इसके लिए सरकारीकरण किए गए मंदिरों को भक्तों के नियंत्रण में सौंपना आवश्यक है !
संभाजीनगर : ३० जनवरी को उच्च न्यायालय ने शिरडी संस्थान की ओर से नगर जनपद में प्रस्तावित निळवंडे बांध के नहरों के निर्माण के लिए राज्य सरकार को दिए जानेवाले ५०० कोटि रुपए का बिनाब्याज का ऋण देनेपर रोक लगा दी है । इस प्रकरण में ४ फरवरी को हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर की ओर से अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी एवं अधिवक्ता उमेश भडगावकर ने यह हस्तक्षेप याचिका प्रविष्ट की । न्यायालय ने इस याचिका का स्वीकार कर यह बिनाब्याजवाले ऋण देनेपर रोक लगाने का आदेश दिया । न्यायालय ने ७ फरवरी को आगे की सुनवाई रखी है । हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्य्क्ष वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने कुछ दिन पूर्व पत्रकार परिषद कर शिरडी संस्थान राज्य सरकार को ५०० कोटि रुपए का बिनाब्याजवाला ऋण दे रही है, इसे उजागर कर रहा था । उन्होंने मुंबई उच्च न्यायालय के संभाजीनगर खंडपीठ में इसपर आपत्ति जतानेवाली याचिका प्रविष्ट की थी । विधि के अनुसार शिरडी संस्थान को सरकार को ऋण देने का कोई अधिकार नहीं है; क्योंकि संस्थान ने इससे पहले ऐसा प्रस्ताव पारित किया था, साथ ही इससे पहले के कुछ प्रकरणों में मंत्रालय के प्रत्येक उत्तरदायी अधिकारी ने भी इस प्रकार से पैसे नहीं देने चाहिएं, ऐसा ही मत व्यक्त किया था । ऐसा होते हुए भी मुख्यमंत्री ने ऋण देना सुनिश्चित किया । यह कृत्य मनमानी पद्धति से लिया गया है, ऐसा अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने बताया है । अधिवक्ता कुलकर्णी ने न्यायालय में अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर की ओर से ऐसा प्रतिपादित किया ।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात