अमृतसर (पंजाब) : पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ द्वारा भारतीय कैदियों पर ढाए गए जुल्मों की इंतहा ही है कि २००७ में रिहा किए गए भारतीय कैदियों में से आठ कैदी आज भी अपने घर नहीं लौट पाए हैं। जेल से तो निकले लेकिन आज भी गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। अब तक इनकी पहचान नहीं हो सकी है। पिछले सात साल से इन कैदियों का इलाज विद्या सागर सरकारी मनोरोग अस्पताल में चल रहा है।
पाकिस्तान ने अगस्त २००७ में १३४ भारतीय कैदियों को रिहा किया था, जिनमें १०० मछुआरे थे। १३४ कैदियों में से नौ पंजाब के, चार जम्मू-कश्मीर के, दो राजस्थान के, चार उत्तर प्रदेश, एक बिहार, दो गुजरात के, तीन मध्यप्रदेश व दो पश्चिम बंगाल और एक-एक कैदी दिल्ली, असम, ओडिशा व हिमाचल प्रदेश का था। इनमें से तीन कैदी विक्षिप्त हो चुके हैं। अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. बीएल गोयल के अनुसार इन कैदियों की हालत में कुछ सुधार हुआ है। इन्होंने अपना नाम व घर के पते बताए हैं। इन पतों के आधार पर कई बार मरीजों के परिजनों को पत्र लिखा गया है, लेकिन अभी तक इन मरीजों में से किसी के भी परिवार के सदस्य ने अस्पताल के साथ संपर्क नहीं साधा है। जनवरी २००७ में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए समझौते के अंतर्गत एक समिति का गठन किया गया था। समिति में दोनों देशों के तीन-तीन सेवानिवृत्त जज शामिल थे। समिति में भारत की तरफ से एएस गिल, एमए खान व पाकिस्तान की तरफ से अब्दुल कादिर चौधरी, नासिर जाहीर व मियां मोहम्मद अजमल शामिल थे। समिति ने दोनों देशों की जेलों का दौरा करने के बाद सुझाव दिया था कि जेलों में बंद महिलाओं, नाबालिगों, मानसिक रूप से विक्षिप्त, वृद्धों व विभिन्न बीमारियों से पीड़ित कैदियों के मामले में अनुकंपा और मानवीय आधार पर विचार करने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा। यह भी तय किया था कि जेल प्रशासन महीने में एक दिन दोनों देशों के कैदियों को उनके घरों में संपर्क स्थापित करने के लिए टेलीफोन पर बातचीत करवाएगा। इस समझौते पर भी पाकिस्तान ने अमल नहीं किया।
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पाकिस्तान द्वारा ३० नवंबर को रिहा किए गए कैदियों में से तीन कैदियों को पीट-पीट कर पागल करने की घटना से साबित हो गई है। डिप्टी कमिश्नर रवि भगत ने बताया कि ३० नवंबर को पाकिस्तान से रिहा होकर आए तीन कैदियों की जांच के लिए बोर्ड बनेगा। इस बोर्ड की सिफारिशों के बाद ही इन कैदियों को सरकारी मेंटल अस्पताल में दाखिल करवाया जाएगा।
स्त्रोत : जागरण