भाग्यनगर में मंदिर सरकारीकरण के विरुद्ध २२ हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताआें का सहभाग

केवल देवता के संकीर्तन से नहीं, अपितु अधर्म के विरुद्ध संघर्ष करने से ही संतोष होता है ! – कोंडवीटी ज्योतिर्मयी, कीर्तनकार, तेलंगना

क्या इस प्रकार से क्षात्रवृत्ति के साथ बोलने का साहस सर्वत्र के कीर्तनकार दिखाएंगे ?

कोंडवीटी ज्योतिर्मयी

भाग्यनगर : केवल नामसंकीर्तन कर मुझे संतोष नहीं मिलता, अपितु मंदिरों में जो कुछ दुराचार चल रहा है, उसे देखकर उसके विरुद्ध संघर्ष करने से मुझे संतोष मिलता है । इस संदर्भ में मैं अनेक राजनीतिक दलों के नेता और मुख्यमंत्री से भी मिली; किंतु किसी ने मेरी सहायता नहीं की । इसलिए अब मुझे आपके सामने अपने विचार रखने पड रहे हैं । हम सभी को मिलकर मंदिर सरकारीकरण के विरुद्ध के संघर्ष को आगे बढाना है । हमें सरकार से यह प्रश्‍न पूछना पडेगा कि सरकार को हमारे मंदिरों की संपत्ति को लूटने का क्या अधिकार है ? आज के इस आंदोलन की भांति सभी जनपद, तहसील और गांव-गांव में ऐसे आंदोलन चलाने चाहिएं और मंदिरों का नियंत्रण पुनः भक्तों के हाथ में देनेतक आंदोलन चलाए जाने चाहिएं । तेलंगना की कीर्तनकार कोंडवीटी ज्योतिर्मयी ने ऐसा प्रतिपादित किया । विविध हिन्दू संगठनों ने तेलंगना एवं आंध्र प्रदेश सरकारों द्वारा किए जा रहे मंदिर सरकारीकरण के विरुद्ध आंदोलन चलाया गया । इसी परिप्रेक्ष्य में ३ फरवरी को यहां के धरना चौकपर सुबह आंदोलन किया गया । इसमें तेलंगना एवं आंध्र प्रदेश राज्यों के हिन्दू जनजागृति समितिसहित २२ संगठनों के २५० से भी अधिक धर्माभिमानी सहभागी थे । इस अवसरपर उपस्थित मान्यवरों ने मार्गदर्शन भी किया ।

मंदिर सरकारीकरण के विरुद्ध संघर्ष करना हमारी साधना है ! – जी. सत्यवाणी, संस्थापक, भारतीयम् संस्था

जी. सत्यवाणी

प्राचीन काल में मंदिरों के माध्यम से नृत्य, संगीत, शिल्प आदि कलाआें का पोषण होता था । मंदिरों के अन्नदान भी किया जाता था और लोगों को धर्मशिक्षा भी दी जाती थी । भारत की धर्मनिरपेक्ष राज्यव्यवस्था और अब मंदिर सरकारीकरण के कारण यह संस्कृति नष्ट हो रही है । इसके विरुद्ध संघर्ष करना हमारी साधना है ।

आंध्र प्रदेश में मंदिरों की ७० सहस्र एकड भूमिपर अवैध नियंत्रण ! – रंजीत वडियाला

केवल आंध्र प्रदेश में ही मंदिरों की लगभग ७० सहस्र एकड भूमिपर अवैधरूप से नियंत्रण किया गया है । मंदिरों में भ्रष्टाचार होने का कारण देकर सरकार मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले रही है; किंतु सरकार ही भ्रष्टाचार में सिर से पांवतक डूबी हुई है । ऐसी स्थिति में हम सरकारपर कैसे विश्‍वास कर सकते हैं ? प्रतिमास केवल डेढ से २ सहस्र रुपयों की आयवाले मंदिरों में भ्रष्टाचार कैसे हो सकता है ? ऐसी स्थिति होते हुए भी सरकार ने मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले लिया है । इससे यह ध्यान में आता है कि यह मंदिरव्यवस्था को नष्ट करने का प्रयास है ।

सरकार मंदिरों से कर वसूलती है; किंतु चर्चा और मस्जिदों से नहीं वसूलती ! – चेतन गाडी, तेलंगना एवं आंध्र प्रदेश राज्य समन्वयक, हिन्दू जनजागृति समिति

प्राचीन काल में मंदिर शिक्षा के केंद्र होते थे; किंतु आज निरुद्योगी राजनेताआें के लिए भ्रष्टाचार ही व्यवसाय बन गया है और इससे मंदिरों को सरकारीकृत कर मंदिर की संपत्ति को लूटा जा रहा है । यदि भारत धर्मनिरपेक्ष है, तो सरकार केवल हिन्दू मंदिरों को ही अपने नियंत्रण में क्यों ले रही है ? क्या ये सरकारें देश के चर्च और मस्जिदों को नियंत्रण में लेने का साहस दिखाएगी ? सरकार मंदिरों को एक पैसा देना, तो दूर; किंतु सरकार इन मंदिरों में जमा करोडों रुपए अन्य धर्मियोंपर उडा रही है । मंदिरों द्वारा चलाए जा रहे शिक्षासंस्थानों से भी कर वसूला जा रहा है; किंतु चर्च एवं मस्जिदों द्वारा चलाए जा रहे शिक्षासंस्थानोंपर कोई कर नहीं है । क्या यह हिन्दुआें के साथ अन्याय नहीं है ?

क्षणिकाएं

१. रुद्र सेवा समुदाय के श्री. नरसिंह मूर्ति ने यह आंदोलन सफलतापूर्वक संपन्न हो और आंदोलन का उद्देश्य सफल हो; इसके लिए आंदोलन के दिन ब्राह्ममुहूर्तपर गणहोम किया और उससे प्राप्त विभूति, साथ ही पवित्र धागों का धर्माभिमानियों को प्रसाद के रूप में वितरण किया ।

२. इस आंदोलन के दिन सायंकाल को समाचारवाहिनी टीवी ९ पर मंदिर सरकारीकरण के विरुद्ध परिचर्चा का आयोजन किया गया । इसमें हिन्दू धर्म के विरुद्ध सदैव विषवमन करनेवाले साहित्यकार कांचा इलय्या ने इस परिचर्चा में मंदिर सरकारीकरण के विरुद्ध मत व्यक्त कर मंदिरों का नियंत्रण हिन्दुआें के हाथ में सौंपने का समर्थन किया ।

३. इस आंदोलन की जानकारी मिलते ही आंदोलन से पहले तेलुगु एन्आई रेडियो द्वारा आंदोलन के विषय में विशेष चर्चासत्र का आयोजन किया गया ।

४. कीर्तनकार कोंडवीटी ज्योतिर्मयी जब मार्गदर्शन कर रही थीं, तब उनकी आंखों से भावाश्रु बह रहे थे ।

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