प्रयागराज में करीब ५ शताब्दी पूर्व मुगल शासक अकबर द्वारा बंद कराई गई पंचकोसी परिक्रमा का गुरुवार को फिर से आरंभ हुआ। कई वर्षों के बाद साधु-संतों और मेला प्रशासन की कोशिशों से पंचकोसी परिक्रमा की शुरुआत हुई। संगम नोज पर साधु संतों और मेला प्रशासन के अधिकारियों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा-अर्चना के बाद पांचकोसी परिक्रमा शुरू की। इस परिक्रमा पर ५५० साल पहले अकबर ने रोक लगा दी थी।
परिक्रमा की शुरुआत से पहले संगम पर अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि, जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरि और अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरिगिरि के साथ ही दूसरे साधु-संतों और मेला प्रशासन के अधिकारियों ने संगम में पूजा अर्चना की। संगम में पूजा अर्चना के बाद तीन दिवसीय परिक्रमा शुरू हुई, जिसमें वाहनों के काफिले के साथ साधु-संत और मेला प्रशासन के अधिकारी भी रवाना हुए।
पंचकोसी यात्रा की पौराणिक मान्यता
प्रयागराज के पूर्व दिशा में दुर्वासा ऋषि का आश्रम है और पश्चिम में भारद्वाज ऋषि का आश्रम है। उत्तर में पांडेश्वर महादेव स्थापित हैं और दक्षिण में पाराशर ऋषि की कुटिया बनी हुई है। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि यदि प्रयागराज पहुंचकर इन चारों स्थानों के दर्शन कर लिए जाएं तो प्रयाग की परिक्रमा पूरी मानी जाती है और व्यक्ति के पूर्व जन्म के पाप धुल जाते हैं। प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा में इन चारों तीर्थ स्थानों को शामिल किया जाता है।
ऐसा होता है परिक्रमा का मार्ग
तीन दिवसीय इस परिक्रमा के पहले दिन अक्षयवट और सरस्वती कुंड के बाद जलमार्ग द्वारा बनखंडी महादेव और मौजगिरी बाबा के दर्शन किए जाएंगे। मौजगिरी मंदिर भृगु ऋषि का स्थान माना जाता है। उसके बाद सूर्य टंकेश्वर महादेव के दर्शन करते हुए, चक्र माधव और गदा माधव होते हुए परिक्रमा सोमेश्वर महादेव के मंदिर पहुंचेगी। उसके बाद दुर्वासा ऋषि के आश्रम के दर्शन करने बाद शंख माधव मंदिर होते हुए पहला दिन पूरा होगा।
दूसरे दिन कोतवाल हनुमानजी के दर्शन
दूसरे दिन की परिक्रमा में कोतवाल हनुमान जी के दर्शन करने के बाद दत्तात्रेय मंदिर, चेतनपुरी के साथ ही उत्तर में स्थित पांडेश्वर महादेव होते हुए वासुकी मंदिर आदि के दर्शन करते हुए भजन कीर्तन के साथ पूरी होगी।
महर्षि भरद्वाज आश्रम
परिक्रमा के आखिरी दिन श्रद्धालुओं की टोली संगम से गंगाजल लेकर प्रयागराज स्थित भरद्वाज ऋषि के आश्रम में जाकर अभिषेक करेगी। इसी के साथ तीन दिवसीय परिक्रमा का समापन होगा।
इस बार कुंभ में हुआ है यह ऐतिहासिक आरंभ
प्रयाग कुंभ में इस बार कई बंद हो चुकी परंपराओं की शुरुआत हुई। अकबर के किले में कैद अक्षय वट और सरस्वती कूप जिनका धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व रहा है उसे श्रद्धालुओं के लिए सुगम बना दिया गया। इस बार श्रद्धालु भगवान राम और कृष्ण से संबंधित अक्षय वट के दर्शन कर पा रहे हैं। अब श्रद्धालु सरस्वती कूप के भी दर्शन का लाभ ले पा रहे हैं। पंचकोसी यात्रा का आरंभ अकबर के समय में बंद हो चुकी तीसरी बड़ी परंपरा का आरंभ माना जा रहा है। -स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरि(वरिष्ठ महामंडलेश्वर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा)
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स