फाल्गुन शुक्ल पक्ष सप्तमी, कलियुग वर्ष ५११४
पौरुष एवं क्षात्रतेज विहीन, निर्विकार रूपसे देशके हिंदुओंकी दुरावस्था देखनेवाले भारतीय राज्यकर्ता !
श्री. दुर्गेश परूळकर |
१. भारतीय जनता की विवशता, अमर्यादित लोकसंख्या, महंगाई, आतंकवादियोंका आक्रमण तथा बलात्कार आदि समस्याओंके निरंतर बढते रहनेसे उनके लडनेकी क्षमता ही नष्ट हो गई है ।
हिंदुस्थान अत्यंत भीषण अवस्थाका सामना कर रहा है । गांवकी नदीमें जब बाढ आती है; तो गांवके लोग दूर किनारेपर खडे होकर केवल विनाशको देखते रहते हैं, क्योंकि कई बार वे विवश होते हैं । भारतीय जनताकी आज वही स्थिति हो गई है । जनसंख्या, महंगाई, आतंकवाद तथा बलात्कारकी समस्याएं बढ रही हैं । घूसखोरी, काला धन आदिके बारेमें आंदोलन तो चलाए जाते हैं, किंतु कुछ दिनोंके पश्चात सब कुछ जैसेका तैसा हो जाता है । कार्यकर्ता थक जाते हैं, आराम करते हैं अथवा मनही मन निराश हो जाते हैं, कुछ समझमें नहीं आता ।
२. घूस लेनेवालोंको रंगे हाथ पकडा जाता है इसके पश्चात भी घूस देकर भ्रष्टाचारको बढावा दिया जाता है ।
सामान्यलोग इन सब बातोंको विवश होकर देखते हैं, साथही यह भी जानते हैं कि, अमर्यादित संपत्ति इकठा करनेवालोंके घरपर सी. बी. आइ. छापा मारकर उन्हें पकडती है । घूस लेते हुए भी कई लोगोंके पकडे जानेकी वार्ताएं आती हैं । जो सदाचारी होते हैं वे इन बातोंसे दूर रहते हैं, किंतु जो इसके आदी (अभ्यस्त) हो गए हैं, वे किसी बातकी चिंता नहीं करते । अपना काम करवा लेनेके लिए विवश मनुष्य अपनी पाकिटसे/खीसासे नोटोंके बंडल निकालकर देता ही है । घूसखोरीसे पीडित भारतीय समाजका यह भीषण चित्र है ।
३. कहा जाता है कि, हिंदुस्थानका शासन अपाहिज हो गया है ।
४. सत्ताधीश देशका मालिक नहीं होता है; वह केवल विश्वस्त होता है, किंतु वर्तमान समयमें सभी अपने-आपको मालिक समझते हैं, अत: अत्यंत तीव्र गतिसे देशकी हानि हो रही है ।
५. आतंकवादियोंको बढावा देनेवाले किंतु हिंदूनिष्ठ देशभक्तोंको परेशान करनेवाले; पाकिस्तान स्थित हिंदुओंकी विवशता एवं काश्मीरके पंडितोंकी दुरावस्था निर्विकार रूपसे देखनेवाले दिल्लीश्वर !
दिल्लीश्वरोंमें पौरुषत्व तथा क्षात्रतेज बचा ही नहीं है । अत: भूतलपर निवास करनेवाला कोई भी व्यक्ति इन दिल्लीश्वरोंको अपने पैरोंपर झुका सकता है । केवल हिंदूत्वनिष्ठ देशभक्तोंके आगे उनका बल तथा पौरुषत्व प्रगट होता है । श्रीरामका कभी जन्मही नहीं हुआ था, प्रतिज्ञापत्रकपर इस प्रकारका विधान छपवाकर उसे न्यायालयमें प्रस्तुत करनेका साहस दिलीश्वर दिखा सकते हैं । आतंकवादियोंको बंदी बनानेपर इनकी नींद उड जाती है, किंतु पाकिस्तानस्थित हमारे हिंदुओंकी दुरावस्था एवं काश्मीरके पंडितोंकी विवशता देखकर इनका हृदय कभी द्रवित नहीं होता है ।
– श्री. दुर्गेश परूळकर ( मासिक धर्मभास्कर, जून २०१२ )