‘अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के लिए बहुसंख्यक हिन्दुआें के साथ अन्याय !’ विषयपर ‘फेसबुक लाईव’ के माध्यम से प्रसारण
प्रयागराज (कुंभनगरी, उत्तर प्रदेश) : जिन्होंने कभी विधि और संविधान नहीं पढा, ऐसे कुछ लोग आज संसद में बैठे हैं । उन्होंने देश में ‘समानता’ के मधुर नाम पर विषमता फैलाई और हिन्दू विरोध को बल दिया । अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधाएं देकर हिन्दुआें को नीचला स्थान दिया है । देश में हिन्दुआें का दमन किया जा रहा है । हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा प्रतिपादित किया ।
कुंभपर्व में हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के नामपर बहुसंख्यक हिन्दुआें के साथ अन्याय !’ विषयपर फेसबुक लाईव द्वारा आयोजित कार्यक्रम में वे ऐसा बोल रहे थे । इस अवसरपर ‘प्रयागराज टाईम्स एन्ड लीडर’ के मुख्य संपादक श्री. अनुपम मिश्रा तथा सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस उपस्थित थे । समिति के उत्तर प्रदेश एवं बिहार राज्यों के समन्वयक श्री. विश्वनाथ कुलकर्णी ने इस कार्यक्रम का सूत्रसंचालन किया ।
इस अवसरपर सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र शासन को ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की व्याख्या करने का निर्देश दिया है, तो राष्ट्रीय समुदाय ने अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक इन शब्दों की थोपी गई व्याख्या हिन्दुआें का दमन करनेवाली है । विश्व के अधिकांश सभी राष्ट्रों में बहुसंख्यकों के धर्म को विधिजन्य संरक्षण दिया गया है और वहां उसे आधिकारिक धर्म में स्वीकार किया गया है; किंतु भारत में इससे विपरीत स्थिति है । राज्यकर्ताआें ने भारत को निधर्मी घोषित किया है । भारत को हिन्दू राष्ट्र के रूप में घोषित न किए जाने से अल्पसंख्यक शब्द का कोई औचित्य ही नहीं है ।
देश के ८ राज्यों में हिन्दुआें के अल्पसंख्यक होते हुए भी सुविधाआें का लाभ मुसलमानों को क्यों ? – अनुपम मिश्रा
हिन्दुआें की समस्याआें के समाधान के प्रति राजनीतिक उपेक्षा के कारण राममंदिर जैसे आस्था से संबंधित सूत्र न्यायालय में लंबित हैं । जम्मू-कश्मीर राज्य में ७० प्रतिशत, तो कश्मीर घाटी में ९८ प्रतिशत मुसलमान समुदाय है । वहां हिन्दू नामशेष होने की स्थिति में हैं, तब भी ७५३ में से ७१७ छात्रवृत्तियां मुसलमानों को ही दी जा रही हैं । बंगाल जैसे बडे राज्य में भी अब मुसलमान बहुसंख्यक बन गए हैं । वर्ष २०१७ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को अल्पसंख्यक माना नहीं जा सकता । सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले ही यह निर्णय दिया है कि किसी राज्य में जो समुदाय ५० प्रतिशत से अल्प होगा, केवल उसी को अल्पसंख्यक माना जाएगा । ८ राज्यों में हिन्दुआें के अल्पसंख्यक होने से सुविधाआें का लाभ केवल मुसलमानों को ही क्यों दिया जा रहा है ?
अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्ष के लिए ‘अल्पसंख्यक आयोग’; किंतु हिन्दुआें के अधिकारों के लिए कोई व्यवस्था नहीं ! – चेतन राजहंस
संंविधान में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या न होते हुए भी वर्ष १९९३ में अल्पसंख्यकों के लिए अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई; किंतु बहुसंख्य हिन्दू समाज की आस्थाआें की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार की विधिजन्य अथवा संवैधानिक व्यवस्था का अस्तित्व नहीं है । संविधान में विद्यमान ‘विधि के सामने सभी समान’ इस सूत्र से यह पूर्णतः विपरीत है । धर्मांधों ने वर्ष १९९० में ७.५ लाख हिन्दुआें को बेघर कर दिया । इस संदर्भ में हिन्दुआें के साथ किए गए अन्याय के निवारण हेतु आजतक किसी भी आयोग का गठन नहीं किया गया अथवा उनका पुनर्वास भी नहीं किया गया; किंतु वर्ष २००२ में गुजरात के गोधरा में हुए कथित दंगों की जांच के लिए आजतक ३ आयोगों का गठन किया गया । आज के लोकतंत्र की ओर से केवल अल्पसंख्यकों को ही विधिजन्य संरक्षण प्राप्त है; किंतु बहुसंख्यक हिन्दुआें का कोई हितैषी नहीं है, जो संविधान में विद्यमान धारा १४ का सीधे-सीधे उल्लंघन है ।