वेटिकन सिटी : पोप फ्रांसिस ने बच्चों के यौन शोषण पर काफी सख्त बयान दिया और इसे नरबलि के समान बताया। पोप बच्चों के यौन शोषण की समस्या से निपटने के लिए आयोजित चार दिवसीय महत्वपूर्ण सम्मेलन के अंत में शीर्ष बिशपों को संबोधित कर रहे थे। पिछले कुछ वक्त में चर्च में बच्चों के साथ यौन शोषण और चर्च में ननों और महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार की घटनाओं पर पूरे विश्व में आक्रोश देखने को मिला है। चर्च में होनेवाले इन अमानवीय अपराधों को रोकने और लोगों का विश्वास फिर से बहाल करने के उद्देश्य से यह कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई।
चार दिनों के कॉन्फ्रेंस के समापन पर पोप ने कहा, ‘हमारे काम ने हमें एक बार फिर बच्चों के यौन शोषण की बुराई की गंभीरता का अहसास कराया है। ऐतिहासिक रूप से यह बुराई सभी संस्कृतियों और समाजों में व्याप्त रही है।’ उन्होंने बच्चों के शोषण की तुलना नरबलि से करते हुए कहा, ‘मुझे क्रूर धार्मिक परंपराओं के बारे में याद है…जो कभी कुछ खास संस्कृतियों में फैली थी…नरबलि की प्रथा…खासकर बच्चे…गैर ईसाई परंपराओं में। जो पादरी बच्चों को शिकार बनाते हैं, वे शैतान का रूप हैं। इस बुराई पर ध्यान देना हमारा दायित्व है।’
यौन शोषण के सबूत जलाने की बात कार्डिनल ने कबूली
चर्चों की प्रक्रिया पर कुछ अतंरराष्ट्रीय संगठनों ने सवाल उठाए हैं। इसी कॉन्फ्रेंस में जर्मन कार्डिनल रीनहार्ड मार्क्स ने पादरियों के हाथों बच्चों के यौन शोषण की समस्या के समाधान पर कहा, ‘जिन फाइलों से (बाल यौन शोषण के) भयावह कृत्यों की पूरी कहानी सामने आती और गुनहगारों का खुलासा होता, उन्हें नष्ट कर दिया या उन्हें तैयार ही नहीं किया गया।’ ईसीए (इंटरनैशनल असोसिएशन ऐंडिंग कर्ल्कियल अब्यूज) ने इस बयान पर बेहद सख्त प्रतिक्रिया दी। चर्चों के इस कदम को गैर-कानूनी बताते हुए इसके खिलाफ जांच की मांग की। हालांकि, चर्च में होनेवाले यौन शोषण से वेटिकन को जानकारी रही है और पूर्व में खुद वेटिकन की तरफ से भी बाल यौन शोषण से जुड़े ऐसे दस्तावेजों को सौंपने से इनकार किया जा चुका है।
हितों के टकराव का मामला है यहां ?
इस कॉन्फ्रेंस में चर्च में यौन शोषण की शिकार दो महिलाओं ने भी हिस्सा लिया और उन्होंने कॉन्फ्रेंस के आयोजन की मंशा पर सवाल उठाए। हितों के टकराव का हवाला देते हुए एक पीड़ित महिला ने कहा कि यहां पर यौन शोषण की घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाने की बात हो रही है। पीड़िता ने कहा, ‘दशकों से चल रही शोषण की परंपरा को जारी रखनेवाले ही अब इसके खिलाफ कानून बनाएंगे। कानून बनानेवालों में महिलाओं की, सामाजिक लोगों की, यौन शोषण के पीड़ितों की और यौन शोषण के शिकार लोगों की मदद करनेवाले विशेषज्ञों की भागीदारी नहीं है।’
संदर्भ : नवभारत टाइम्स