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उच्च न्यायालयद्वारा राज्यशासनको प्लास्टिकसे झंडे बनानेवलोंके विरुद्ध कार्यवाही करनेका आदेश

फाल्गुन शुक्ल १०, कलियुग वर्ष ५११४

(प्लास्टिक)अभिघटनसे बने झंडे संबंधी परिष्कृत अध्यादेश, प्रतिबंधात्मक कार्यवाही एवं जनजागृती, इस प्रकार त्रिसूत्रयुक्त अभियान चलाया जाए – मुंबई उच्च न्यायालयद्वारा राज्यशासनको स्पष्ट निर्देश

हिंदू जनजागृती समितिकी जनहित याचिका

मुंबई, २० मार्च (वार्ता.) – (प्लास्टिक)अभिघटनसे बने झंडेके उपयोगपर पाबंदी लगानेवाला अध्यादेश ख्रिस्ताब्द २००८ में अमलमें लाया गया है; किंतु पाच वर्षेके पश्चात भी कुछ परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है । अत: अभिघटनसे बनाए जानेवाले झंडोंकी निर्मितिपर प्रतिबंध करने हेतु प्रावधान सुझाकर परिष्कृत अध्यादेश पारित किया जाए । प्लास्टिकके झंडे दुबारा वितरीत न किए जाए, इसलिए प्रतिबंधात्मक कार्यवाहीको प्रारंभ करे, तथा  उसके संबंधमें जनजागृती करे, इस प्रकार त्रिसूत्री अभियान राज्यके गृहमंत्रालयद्वारा चलाया जाए; इस प्रकारका स्पष्ट निर्देश, २० मार्च २०१३ के दिन मुंबई उच्च न्यायालयके न्यायमूर्ति अजय खानविलकरजीके खंडपीठ द्वारा दिया गया था । उस समय समितिकी ओरसे अधिवक्ता आनंद पाटीलजीने इसका उत्तरदायित्व लिया था । प्लास्टिकके झंडेपर पाबंदी लाने हेतु हिंदू जनजागृती समितिद्वारो मुंबई उच्च न्यायालयमें जनहित याचिका प्रविष्ट की गई है तथा इस विषयके संबंधमें न्यायालयद्वारा निरंतर तीन बार अवसर प्रदान करनेपर भी राज्यके गृहमंत्रालयने इस संबंधमें कोई प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत नहीं किया । अत: १८ मार्चको उच्च न्यायालयद्वारा गृहमंत्रालयके अतिरिक्त सचिवोंको न्यायालयमें उपस्थित रहनेका आदेश दिया था । ( न्यायालयके आदेशको न माननेवाली काँग्रेस सरकार ! – संपादक, ‘दैनिक सनातन प्रभात’ ) उसके अनुसार अतिरिक्त गृहसचिव २० मार्च २०१३के दिन न्यायालयमें उपस्थित हुए एवं शासनकी भूमिकाको स्पष्ट किया । प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत करनेमें विलंब होनेके कारण अतिरिक्त गृहसचिवकेद्वारा क्षमायाचना ! इस अवसरपर अतिरिक्त गृहसचिव अमिताभ राजनजीने स्पष्ट किया कि, यह धारिका मेरे पटलपर सर्वप्रथम १८ मार्चके दिन अर्थात अधिक विलंबसे आई । यह धारिका मेरे सहाय्यक सचिव अथवा सहसचिवके पटलतक नहीं पहुंची थी । अत: उचित समयपर प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत नहीं कर सके; इसलिए न्यायालयसे क्षमायाचना करता हूं । इस प्रकरणके संबंधमें जिन्होंने अपना उत्तरदायित्व नहीं निभाया हैं; उन अधिकारियोंपर हम अत्यंत कडी कार्यवाही करनेवाले है, जिससे अपने उत्तरदायित्वके प्रति अधिकारियोंमें सर्तकता निर्माण होगी । उस समय न्यायमूर्ति खानविलकरजीने सूचित किया कि, इस प्रकारके महत्वपूर्ण प्रकरणके संबंधमें आपका इस प्रकार कारण मिमांसा करना सर्वथा अनुचित है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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