- भारत की स्वयं को हिन्दुत्वनिष्ठ कहलानेवाली भाजपा सरकार तथा बडे हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन श्रीलंका के अल्पसंख्यक हिन्दू और मंदिरों की रक्षा के लिए कुछ करेंगे, यह अपेक्षा न कर अब हिन्दुआें को संगठित होकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है !
- श्रीलंका में हिन्दुआें की धार्मिक वास्तुएं असुरक्षित !
इन चित्रों द्वारा किसी की धार्मिक भावनाआें को आहत करने का उद्देश्य नहीं है, अपितु हिन्दू वास्तुआें का किस प्रकार अनादर किया जा रहा है, यह ध्यान में आए; केवल इसीलिए इन चित्रों को प्रकाशित किया गया है – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात
मन्नार (श्रीलंका) : महाशिवरात्रि की कालावधि में श्रीलंका के हिन्दुआें को प्रतिकूल स्थिति का सामना करना पडा । ४ मार्च २०१९ को मन्नार के श्री तिरुकेतिश्वरम् मंदिर के प्रवेशद्वारपर खडी की गई कमान को हिन्दूविरोधियों के एक गिरोह ने तोड डाला, साथ ही २८ फरवरी को कुछ हिन्दूद्वेषियों ने त्रिंकोमली के तिरुकोनेश्वरम् मंदिर के परिसर में रखे गए शिवलिंग को तोड डाला । स्थानीय प्रसारमाध्यमों ने कहा है कि इस क्षेत्र में पुलिस प्रशासन और सेनादल का २४ घंटे पहरा होते हुए भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं ।
१. श्रीलंका के राष्ट्रीय एकत्रीकरण, आधिकारिक भाषा एवं हिन्दू धार्मिक व्यवहार विभाग के मंत्री मनो गणेशन् ने बताया कि तिरुकेतिश्वरम् मंदिर के प्रवेशद्वारपर खडी की गई स्वागतकमान के प्रकरण में समझौता किया गया है और न्यायालय ने इस स्वागतकमान के पुनर्निर्माण का आदेश दिया है ।
२. श्रीलंका में ईसाई मिशनरियों द्वारा वहां के अल्पसंख्यक हिन्दुआेंपर किए जानेवाले आक्रमणों की निंदा करना, साथ ही मन्नार का तिरुकेतिश्वरम् मंदिर, त्रिंकोमली का तिरुकोनेश्वरम् मंदिर और हिन्दुआें की अन्य वास्तुआेंपर किए जा रहे आक्रमणों के निषेध हेतु श्रीलंका के मन्नार एवं यजपनाम् जनपदों में ८ मार्च २०१९ में भव्य निषेधफेरी निकाली गई ।
तिरुकेतिश्वरम् एवं तिरुकोनेश्वरम् मंदिर का प्राचीन इतिहास
रावणासुर के संहार के पश्चात लगे ब्रह्महत्या के पापक्षालन हेतु प्रभु श्रीरामजीने श्रीलंका के पंचईश्वर के स्थानपर जाकर पूजा-अर्चना की थी । तिरुकेतिश्वरम में रावण की पत्नी मंदोदरी के पिता मयन महर्षि का निवास था । उन्होंने यहां शिवलिंग की स्थापना की है । आगे जाकर महर्षि भृगु एवं उसके पश्चात केतु ग्रह के द्वारा भी यहां पूजा-अर्चना की गई । इसीलिए इस स्थान का नाम केतिश्वरम् पडा ।
तिरुकोनेश्वरम् मंदिर का इतिहास भी प्राचीन है । पुराण में इसके उल्लेख मिलते हैं कि जब कैलास में शिवजी एवं पार्वतीजी के विवाह समारोह में सभी देवता उपस्थित थे; तब उसके कारण पृथ्वी की उत्तरी दिशा में भार बढकर वह एक बाजू में मुड गई । इसपर उपाय के रूप में भगवान शिवजी अगस्ति महर्षिजी को दक्षिण में भेज दिया । उस समय महर्षि अगस्तीजी ने तिरुकोनेश्वरम् में शिवजी द्वारा प्रदान किए गए शिवलिंग की स्थापना किए जानेपर पृथ्वी पुनः स्थिर हुई । स्वयं प्रभु श्रीरामजी ने इन दोनों स्थानोंपर शिवपूजन किया है ।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात