ईसाई पादरियों द्वारा नन्स का किया जानेवाला यौन शोषण
भारत के तथाकथित आधुनिकतावादी, निधर्मीवादी, महिला संगठन, साथ ही भारतीय प्रसकारमाध्यम नन्स के इस अभियान की उपेक्षा करेंगे, इसे ध्यान में लें !
रोम (इटली) : पिछले फरवरी के मास में सर्वोच्च ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रान्सिस ने पहली बार रोमन कैथॉलिक चर्च के पादरियों द्वारा किए जानेवाले नन्स के यौन शोषण की स्वीकृती दी । ईसाई धर्म का मुख्यालय विगत अनेक वर्षों से ऐसी घटनाओं को दबाने में सफल हो रहा था; किंतु विगत कुछ वर्षों से विश्वभर में चलचित्रजगत तथा अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में महिलाओं के हो रहे यौन शोषण के विरुद्ध ट्विटरपर हैशटैग #MeToo के माध्यम से सामाजिक माध्यमों में आवाज उठाई जा रही थी । अब उसी पथपर चलते हुए सामाजिक माध्यमों में #NunsToo नामक एक नया हैशटैग आरंभ हुआ है और उसपर अनेक पीडित नन्स ने पादरियों द्वारा उनके साथ किए गए यौन शोषण के प्रमाण प्रस्तुत किए हैं । इस अभियान का प्रारंभ वैटिकन से प्रकाशित होनेवाले ईसाई धर्म के मुखपत्र से ही हुआ है ।
वैटिकन से प्रकाशित होनेवाले ईसाई धर्म के मुखपत्र की संपादक, इतिहास की प्राध्यापक तथा ‘माता एवं महिला’ स्वतंत्रता की समर्थक ल्युसेटा स्काराफ्फा ने इस अंक में एक लेख लिखकर विश्वभर के पादरियों द्वारा अल्पायु बच्चे और नन्स के किए गए यौन शोषण के सैकडों उदाहरण दिए हैं ।
१. ल्युसेटा स्काराफ्फा ने इस लेख में नन्स की मानसिक स्थिति सामने रखी है । सर्वसामान्यरूप से सर्वत्र यह अवधारणा फैली है कि नन्स के साथ यौन अत्याचार होना बहुत कठिन है; क्योंकि उन्हें अस्वीकृति अधिकार का उपयोग करने का संपूर्ण अधिकार होता है, साथ ही यह सिखाया जाता है कि नन्स ही पादरियों का वशीकरण कर उन्हें ऐसे कृत्य करने के लिए बाध्य बनाती हैं । ऐसे में यदि ये नन्स गर्भवती हुईं, तो उन्हें चर्च से निकाल दिया जाता है । ऐसी निर्धन नन्स अपने अनौरस संतान के साथ दयनीय जीवन व्यतीत करती हैं । कुछ घटनाओं में तो उनका गर्भपात भी करवाया जाता है और उसका व्यय पादरी ही करते हैं ।
२. एक विश्वविद्यालय में प्राध्यापिका के पदपर कार्यरत सिस्टर कथेरिन औबिन कहती हैं, ‘‘वैटिकन में पुरुषों का वर्चस्व होता है । कुछ थोडे लोग ही धर्म के प्रति प्रामाणित होते हैं । दूसरों के सिर में अधिकारों की उन्मत्तता बढती है और उसी के करण नन्स के साथ अत्याचारों की घटनाएं होती हैं । वैटिकन में ये नन्स न होने की ही स्थिति में होती हैं; क्योंकि कोई भी उनका सम्मान नहीं करता ।’’
३. वर्ष १९८४ में पहली बार सिस्टर मौरा डोनोह्यू ने नन्स के साथ होनेवाले अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई । उन्होंने आफ्रिका, इटली, फिलिपीन्स तथा अमेरिका में नन्स के साथ हुए अत्याचारों की जानकारी एकत्रित कर वैटिकन को एक ब्यौरा प्रस्तुत किया । सिस्टर मौरा डोनोह्यू के अनुसार आफ्रिका में एड्स की प्रबलता होने से पादरी सुरक्षित नन्स का उपभोग लेते थे ।
४. जब आफ्रिका की एक वरिष्ठ सिस्टर ने वहां की २९ नन्स गर्भवती होने का ब्यौरा दिया, तब उसे ही वहां से निकाल दिया गया । एक नन की तो गर्भपात के समय मृत्यु हुई और उसके अंतिमसंस्कार के लिए उसके साथ अत्याचार करनेवाले पादरी की ही नियुक्ति की गई थी ।
५. भारत के बिशप मुलक्कल द्वारा एक नन के साथ किए गए अत्याचार का प्रकरण तो सर्वविदित है । चिली देश में भी ऐसा ही एक प्रकरण वहां के समाचारवाहिनीपर चर्चा का विषय बना हुआ है ।
६. एक समाचारसंस्था द्वारा किए गए निरीक्षण के अनुसार युरोप, एशिया, आफ्रिका एवं दक्षिण अमेरिका के आरोपी पादरियों के विरुद्ध वैटिकन ने कोई भी कार्यवाही नहीं की । उसी कारण ही इस #NunsToo अभियान के माध्यम से ऐसी घटनाएं उजागर हो रही हैं ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात