‘छत्रपति शिवाजी महाराज के मावलों (सैनिकों) ने अपने सामने ‘हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना’ और स्वातंत्र्यपूर्व काल के क्रांतिकारकों ने केवल ‘स्वतंत्रता’ का लक्ष्य रखा था ! इसके लिए उन्होंने जाति, प्रांत, मातृभाषा आदि से परे हो कर केवल राष्ट्रहित के लिए संघर्ष किया !
इसके विपरीत स्वातंत्र्य के पश्चात राजनेताओंद्वारा अपने सामने केवल सत्ता का ही लक्ष्य रखा; इसलिए वे धर्महित के लिए तो कभी नहीं; अपितु राष्ट्रहित के लिए भी संगठित होकर संघर्ष नहीं कर सकते ! ऐसे राजनेता ‘सुराज्य’ कैसे लाएंगे !
केवल हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ही इसका एकमात्र समाधान है !’
– पू. संदीप आळशी (१३.३.२०१९)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात