पाकिस्तान के सिंध प्रांत के घोटकी जिले के दहारकी शहर में दो हिन्दू बहनों के अपहरण का मामला पिछले दिनों सामने आया। दोनों बहनों को उनके घर से उठाकर पाकिस्तानी पंजाब के शहर ‘रहीम यार खान’ ले जाया गया। ये अपहरण पाकिस्तान के सिंध इलाके के ग्रामीण हिस्से के उमरकोट में हो रहे इस तरह के अपहरणों की श्रृंखला में जुडा एक और मामला है।
पाकिस्तान के सिंध के थरपारकर और घोटकी जिले की आर्थिक रूप से कमजोर हिन्दू लडकियों और जवान महिलाओं का (जो विवाह के लायक हैं) अचानक अपहरण होता है। जिसके बाद वे आसानी से ढूंढ ली जाती है। परंतु जब वे मिलती हैं तो उनकी नई पहचान होती है। वे इस्लाम कबूल कर चुकी होती हैं।
पाकिस्तान के सिंध की हिन्दू महिलाओं की सुरक्षा से जुडी रिपोर्ट पाकिस्तानी अखबार डॉन ने एक लेख के जरिए ३१ मार्च को प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट को बलूचिस्तान में तैनात एक पुलिस अधिकारी ने लिखा है। रिपोर्ट लिखने वाले का नाम अखलाक उल्लाह तरार है।
अखलाक की पोस्टिंग बलूचिस्तान के दक्षिणी जिले लासबेला में हैं। उनके सब-डिविजन में ८ प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू है और यहां पर काफी गहरा भाईचारा (अंतर-सांप्रदायिक सद्भाव) है। ऐसा सदियों से है। यहां सभी धर्म के लोग एक-दूसरे की इज्जत करते हैं। हाल ही में लासबेला के बहुत से मुसलमानों ने पूरे जोश-ओ-खरोश से होली समारोह में हिस्सा लिया।
पाकिस्तान के सिंध के दहारकी शहर में फिर से हुआ अपहरण ऐसा सवाल खडा करता है कि बलूचिस्तान में हिन्दुओं का जबरन धर्मांतरण क्यों नहीं कराया जा रहा है ? पाकिस्तान के आंतरिक सिंध में इस तरह की घटनाएं इतनी प्रबल क्यों है ? ऐस क्यों हो रहा है कि एक हिन्दू लडकी, चाहे वह छोटी हो या उसकी उम्र शादी के लायक हो, वह एक मुसलमान के प्रति मोहित होती है या उसका अपहरण कर जबरण निकाह किया जाता है और फिर वह लडकी अपना मजहब बदलकर इस्लाम कबूल कर लेती है।
रिपोर्ट बताती है कि बलूचिस्तान में हिन्दुओं का जबरन धर्मांतरण इसलिए नहीं होता क्योंकि यहां के हिन्दुओं ने हमेशा धार्मिक दृष्टि से ज्यादा सुरक्षित महसूस किया। वहां के आदिवासी चीफ हमेशा हिन्दुओं या किसी अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक को अपने परिवार के सदस्यों के रूप में मानते हैं। उन्हें अपनी आस्था के मुताबिक जीने की आजादी देते हैं।
बलूचिस्तान के आदिवासी चीफ ने वहां के हिन्दुओं को बदलने के लिए कभी कोई मिशनरी उत्साह हासिल नहीं किया। लासबेला और बुगती के आदिवासी प्रमुख हमेशा से सुरक्षात्मक रहे हैं। बलूचिस्तान में हिन्दूओं के पूजा स्थल उनकी जनसंख्या के अनुपात में एकदम सही हैं। यहां के हिन्दू आर्थिक रूप से संपन्न हैं।
अब बात करते हैं पाकिस्तान के आंतरिक सिंध की। यहां की स्थिति ब्लूचिस्तान की तुलना में पूरी तरह अलग है। यहां सामाजिक और आर्थिक विषमताएं हैं। यहां का समाज अपने नागरिकों के लिए पूरी तरह असमान है। यहां कुछ व्यक्ति हर शय का आनंद लेते हैं। जबकि बाकी बचे अपने मूल अधिकारों के लिए भी संघर्ष करते हैं।
पाकिस्तान के सिंध के हिन्दू समुदाय में वित्तीय सशक्तिकरण की कमी है। वे पूरी तरह उन लोगों पर निर्भर हैं जो उत्पादन के साधनों को नियंत्रित करते हैं। यही वजह उन्हें दोगुना असुरक्षित बनाती है।
पाकिस्तान के सिंध की गरीब लडकी या महिला के लिए मजहब बदलना अपने लिए बेहतर चुनने जैसा है। बेहतर जिंदगी पाने की इच्छा के विचारों ने युवा लडकियों में बुजुर्ग मुस्लिम पुरुषों के प्रति मोहित होने में अहम भूमिका निभाई। जिनसे बाद में वे शादी भी कर लेती हैं।
पाकिस्तान के सिंध में हिन्दू लडकी का पलायन उसके मजहब के लिहाज से एक दोष के समान है। घर से भाग जाने के बाद, उसके पास लौटने का कोई पर्याय नहीं बचता। क्योंकि घर से भागकर वह अपने ही समुदाय से अलग हो चुकी होती है। वह अपनी शादी में पछताए या दुखी हो तो भी उसे स्वीकार करती हैं।
स्त्रोत : न्युज १८