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तेलंगना के करीमनगर जिले में हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से साधना शिविर

साधना शिविर में मार्गदर्शन किये गए विषयों के कारण, साथ ही वहां के आनंददायक और चैतन्यमय वातावरण के कारण धर्माभिमानी प्रभावित !

शिविर को संबोधित करती हुई (बाईं ओर) श्रीमती तेजस्वी वेंकटपुर एवं श्रीमती विनुता शेट्टी

करीमनगर : तेलंगना के करीगमनगर जिले में २३ मार्च को हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से धर्मप्रेमियों के लिए साधना शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में १० धर्माभिमानी उपस्थित थे। इस शिविर में श्री. चेतन गाडी, श्रीमती तेजस्वी वेंकटपुर एवं श्रीमती विनुता शेट्टी ने ‘साधना का महत्त्व’, ‘स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन हेतु प्रयास’, ‘नामजप का महत्त्व’, ‘आध्यात्मिक कष्ट एवं उन पर उपाय’, ‘प्रार्थना का महत्त्व’ आदि विषयों पर मार्गदर्शन किया गया।

साधना शिविर में मार्गदर्शन किये गए विषयों के कारण, साथ ही वहां के चैतन्यमय वातावरण के कारण उपस्थित धर्माभिमानी प्रभावित हुए।

क्षणिकाएं

१. धर्माभिमानी श्री. चंद्रशेखर को बुखार था; किंतु ऐसी स्थिति में भी वे दिनभर शिविर में उपस्थित थे। दोपहरतक उनका बुखार अल्प हो गया। इसे अनुभूति मानते हुए उन्होंने कहा कि शिविर में विद्यमान चैतन्य के कारण ही यह संभव हो सका !

२. धर्माभिमानी श्री. रामकृष्ण ने आधे दिनतक ही शिविर में उपस्थित रहुंगा ऐसे सूचित किया था। दोपहर पश्‍चात वे कार्यालय जानेवाले थे; किंतु शिविर में प्रस्तुत किये गए विषयों को सुनने के पश्‍चात उन्होंने संपूर्ण दिन के लिए छुट्टी ली और वे शिवीर संपन्न होने तक उपस्थित रहे !

३. धर्माभिमानी श्री. वेंकटचारी अपने एक पूर्वनियोजित कार्यक्रम के कारण शिविर में उपस्थित रहूं अथवा न रहूं; इस संदर्भ में वे दुविधा में थे। शिविर से एक दिन पहले उन्हें उनका पूर्वनियोजित कार्यक्रम निरस्त किए जाने की सूचना मिली; इसलिए उन्हें इस शिविर में उपस्थित होना संभव हुआ। उनके लिए यह एक बडी अनुभूति थी !

४. शिविर के आरंभ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमाओं को समर्पित पुष्पमालाएं रात के ९ बजे तक भी ताजा थीं ! शिविर में सभी ने भगवान श्रीकृष्ण एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अस्तित्व की अनुभूति ली !

५. इस शिविर का आयोजन मंदिर के प्रांगण में किया गया था। वहां पर आए एक जिज्ञासु ने शिविर का विषय सुना। शिविर के अंत में उन्होंने कहा कि मैने विगत २० वर्षों में अनेक चूकें की हैं, यह मेरे ध्यान में आया। मुझे स्वयं में विद्यमान अहं का भान हुआ और उपायों का महत्त्व भी ध्यान में आया। उन्होंने उपाय की सामग्री का भी विक्रय किया।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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